कोलकाता। कोलकाता में ट्रांसजेंडर्स समुदाय के लोग अर्द्धनारीश्वर की मूर्ति के साथ दुर्गा पूजा का पर्व मना रहे हैं। असोसिएशन ऑफ ट्रांसजेंडर्स की सदस्य रंजीता सिन्हा ने बताया कि केंद्र सरकार के सामाजिक न्याय मंत्रालय की तरफ से मिले शेल्टर होम में इस बार त्योहार मनाया जा रहा है। शिव और पार्वती की अर्द्धनारीश्वर की मूर्ति की पूजा के बाद इसे यहां पर रखा जाता है।
आज तकनीक का हाथ पकड़कर मंगल तक का सफर कर चुकी मानवीय सभ्यता अभी भी तीसरे लिंग यानी ट्रांसजेंडर समुदाय को बराबरी का ओहदा देने से हिचकिचाती है लेकिन मां जिनके संतान सारे हैं, वह कभी भेदभाव नहीं करतीं। इसी संदेश के साथ इस बार राजधानी कोलकाता में ट्रांसजेंडर समुदाय ने अनोखी दुर्गा पूजा आयोजित की है।
अमूमन पूरे देश में दसवीं के दिन दुर्गा प्रतिमा का विसर्जन कर दिया जाता है लेकिन बाईपास के कालिकापुर में दशमी के दिन से ये दुर्गा प्रतिमाओं का विसर्जन नहीं करते बल्कि उन्हें दोबारा सजाकर रखते हैं और उसी प्रतिमा की सालभर पूजा अर्चना करते हैं। यहां वैशाली दास, सोहिनी बराल, रूही, ऋत, अयन, शुभश्री आदि ने भी सप्तमी के दिन गंगा स्नान कर मां की आराधना भी शुरू की है।
पूजा के संस्थापक और प्रोजेक्ट मैनेजरों में से एक सायंतनी बसाक ने बताया, ‘हम मूर्तियों को विसर्जित करने में विश्वास नहीं करते। इसलिए हम दशमी के बाद मूर्ति की शुद्धि नहीं करते हैं। हमलोग फिर से मां दुर्गा को सजाते हैं और उनकी पूजा करते हैं। हमने राज्य सरकार से अपील की है कि लिंग परिवर्तन करने वालों की इस पूजा को सार्वभौमिक मान्यता दी जाए।
राज्य सरकार ने पूजा के लिए 50 हजार रुपये का अनुदान दिया है। ट्रांसजेंडर अर्ध-नारिश्वर में विश्वास करते हैं। इसलिए इस बार दुर्गा पंडाल में जो प्रतिमा स्थापित की गई है वह भी अर्धनारीश्वर की है। रंजीता सिन्हा ने बताया कि मैं जिसकी पूजा करती हूं, उसका त्याग कैसे करूं? इसलिए मैं हर साल उसी मूर्ति की पूजा करती हूं। यहां नवरात्र के अंत में बर्तनों को फेंक दिया जाता है।
दशमी सिंदूर खेल के बाद मूर्ति को पुनर्व्यवस्थित किया जाता। फिर मूर्ति को एक सदस्य को सौंप दिया जाता है। उनके घर में अगले एक साल तक इस मूर्ति की पूजा की जाती है। ट्रांसजेंडर को समाज में उचित सम्मान न मिलने के सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि फिलहाल वह इस चर्चा में नहीं पड़ना चाहते बल्कि उत्सव का आनंद लेना चाहते हैं।
यहां स्थापित मूर्ति को दो ट्रांसजेंडर कलाकारों अरी रॉय और वैशाली दास ने बनाया है। वे पिछले तीन साल से एक ही मूर्ति की पूजा कर रहे हैं। पूजा के नौ दिनों तक सारे लोग शाकाहारी रहते हैं और अन्य नियमों का पालन करते हैं। पूजा के दिन कुंवारी कन्या की पूजा करने के बाद जरूरतमंदों को भोजन कराया जाता है।