शास्त्रो में शिवलिंग की महिमा क्या है जाने, पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री से

पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री, वाराणसी :
★ कुछ लोग लिंग शब्द की व्याख्या ठीक नहीं करते।
★ कुछ लिंग शब्द की व्याख्या ही गलत करते हैं।
★ कुछ ऐसे भी हैं जो लिंग शब्द की व्याख्या अपने अनुरूप करते हैं।

आइये देखते हैं – लिंग का अर्थ आखिर है क्या???

लिंग का अर्थ होता है “प्रमाण” –

★ ब्रह्म सूत्र के चौथे अध्याय के पहले पाद का दूसरा सूत्र है- “लिंगाच्च”
★ वेदों और वेदान्त में लिंग शब्द सूक्ष्म शरीर के लिए आया है।
★ सूक्ष्म शरीर 17 तत्त्वों से बना है.
★ शतपथ ब्राह्मण-5-2-2-3 में इन्हें सप्तदशः प्रजापतिः कहा है।
★ मन बुद्धि पांच ज्ञानेन्द्रियाँ, पांच कर्मेन्द्रियाँ, पांच वायु।
★ इस लिंग शरीर से आत्मा की सत्ता का प्रमाण मिलता है। वह भासित होती है।

★ आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी के सात्विक अर्थात ज्ञानमय अंशों से पांच ज्ञानेन्द्रियाँ और मन बुद्धि की रचना होती है।
★ आकाश सात्विक अर्थात ज्ञानमय अंश से श्रवण ज्ञान, वायु से स्पर्श ज्ञान, अग्नि से दृष्टि ज्ञान जल से रस ज्ञान और पृथ्वी से गंध ज्ञान उत्पन्न होता है।
★ पांच कर्मेन्द्रियाँ हाथ, पांव, बोलना, गुदा और मूत्रेन्द्रिय के कार्य संचालन करने वाला ज्ञान।
★ प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान, ये पांच वायु हैं। यह आकाश, वायु, अग्नि, जल, और पृथ्वी के रज अंश से उत्पन्न होते हैं।
★ प्राण वायु नाक के अगले भाग में रहता है, सामने से आता जाता है।
★ अपान गुदा आदि स्थानों में रहता है, यह नीचे की ओर जाता है।
★ व्यान सम्पूर्ण शरीर में रहता है, सब ओर यह जाता है।
★ उदान वायु गले में रहता है। यह उपर की ओर जाता है और उपर से निकलता है।
★ सामान वायु भोजन को पचाता है।

◆ आइये अब देखते हैं शिव का अर्थ क्या होता है – “मंगलमय और कल्याणकर्ता”

अब इन दोनों अर्थो को मिला कर देखिये – शिव + लिंग = मंगलमय और कल्याणकर्ता + प्रमाण

तो इससे सिद्ध है कि, शिवलिंग का अर्थ हुआ, वह ईश्वर जो मंगलमय और कल्याणकर्ता है।

उसका यह प्रमाण है कि – मृत्यु के उपरान्त प्राणी की आत्मा को आवृत्त रखने वाला वह सूक्ष्म शरीर जो पाँचों प्राणों, पाँचों ज्ञानेन्द्रियों, पाँचों सूक्ष्म भूतों, मन, बुद्धि और अहंकार से युक्त होता है, परन्तु स्थूल अन्नमय कोश से रहित होता है।
लोक-व्यवहार में इसी को सूक्ष्म-शरीर कहते हैं।

विशेष : कहते हैं कि जब तक पुनर्जन्म न हो या मोक्ष की प्राप्ति न हो, तब तक यह शरीर बना रहता है।

शिव कल्याणकर्ता है, मंगलमय है इसीलिए वह ईश्वर (शिव) यह कर्मफल व्यवस्था है कि, आप जब तक मोक्ष प्राप्त न कर लो, इस हेतु आपका पुनर्जन्म होता रहेगा और ये सूक्ष्म शरीर इसीलिए प्रमाण है कि, आप स्थूल शरीर से उत्तम कर्म करते हुए मोक्ष प्राप्त करो, इसी कारण ईश्वर को शिव अर्थात कल्याणकारी कहा जाता है।

◆ यह है वैज्ञानिक और वेदो के आधार पर “शिवलिंग” का अर्थ।

मैं सभी हिन्दू भाइयो से विनम्र प्रार्थना करता हूँ कि, कृपया सत्य को जाने, वेदो को पढ़िए – ज्ञान और विज्ञानं की और लौटिए – दुराग्रह को त्याग कर सत्य को जाने और शिव को शिव (मंगलमय और कल्याणकर्ता) ही जाने, अन्य नहीं।

शिवलिंग – ईश्वर के कल्याणकारी और मंगलमय होने का प्रमाण।

जोतिर्विद वास्तु दैवज्ञ
पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री
9993874848

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

thirteen + sixteen =