श्राद्ध के सरल और सही नियम जानिए

वाराणसी। आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में मनाया जाने वाला श्राद्ध पक्ष पितृ पक्ष कहलाता है। इस वर्ष 10 सितंबर, शनिवार से पितृ पक्ष शुरू हो रहा है, जो कि 25 सितंबर, रविवार तक जारी रहेगा। इस पक्ष में पूर्वजों का श्राद्ध उनकी तिथि के अनुसार, पितरों की शांति के लिए श्रद्धा भाव रखते हुए विधि-विधान से करना चाहिए।

श्राद्ध कर्म की शास्त्रीय विधि की जानकारी के अभाव में हम यहां आपके लिए लेकर आए हैं एकदम सरल विधि, जिसका पालन करके आप इस विधि से अपने पितरों को प्रसन्न कर सकते हैं। आइए जानें…

  • पितृ पक्ष के दिनों में सुबह उठकर स्नान करके देव स्थान व पितृ स्थान को गाय के गोबर लिपकर व गंगाजल से पवित्र करें।
  • घर आंगन में रंगोली बनाएं।
  • महिलाएं शुद्ध होकर पितरों के लिए भोजन बनाएं।
  • श्राद्ध का अधिकारी श्रेष्ठ ब्राह्मण (या कुल के अधिकारी जैसे दामाद, भतीजा आदि) को न्यौता देकर बुलाएं।
  • ब्राह्मण से पितरों की पूजा एवं तर्पण आदि कराएं।
  • पितरों के निमित्त अग्नि में गाय का दूध, दही, घी एवं खीर अर्पित करें।
  • गाय, कुत्ता, कौआ व अतिथि के लिए भोजन से चार ग्रास निकालें।
  • ब्राह्मण को आदरपूर्वक भोजन कराएं, मुखशुद्धि, वस्त्र, दक्षिणा आदि से सम्मान करें।
  • ब्राह्मण स्वस्तिवाचन तथा वैदिक पाठ करें एवं गृहस्थ एवं पितरों के प्रति शुभकामनाएं व्यक्त करें।
  • घर में किए गए श्राद्ध का पुण्य तीर्थस्थल पर किए गए श्राद्ध से आठ गुना अधिक मिलता है।
  • आर्थिक कारण या अन्य कारणों से यदि कोई व्यक्ति बड़ा श्राद्ध नहीं कर सकता लेकिन अपने पितरों की शांति के लिए वास्तव में कुछ करना चाहता है, तो उसे पूर्ण श्रद्धा भाव से अपने सामर्थ्य अनुसार उपलब्ध अन्न, साग-पात, फल और जो संभव हो सके उतनी दक्षिणा किसी ब्राह्मण को आदर भाव से दे देनी चाहिए।
  • यदि किसी परिस्थिति में यह भी संभव न हो तो 7-8 मुट्ठी तिल, जल सहित किसी योग्य ब्राह्मण को दान कर देने चाहिए। इससे भी श्राद्ध का पुण्य प्राप्त होता है।
  • हिन्दू धर्म में गाय को विशेष महत्व दिया गया है। किसी गाय को भरपेट घास खिलाने से भी पितृ प्रसन्न होते हैं।
  • यदि उपरोक्त में से कुछ भी संभव न हो तो किसी एकांत स्थान पर मध्याह्न समय में सूर्य की ओर दोनों हाथ उठाकर अपने पूर्वजों और सूर्य देव से प्रार्थना करनी चाहिए।
  • प्रार्थना में कहना चाहिए कि, ‘हे प्रभु मैंने अपने हाथ आपके समक्ष फैला दिए हैं, मैं अपने पितरों की मुक्ति के लिए आपसे प्रार्थना करता हूं, मेरे पितर मेरी श्रद्धा भक्ति से संतुष्ट हो’। ऐसा करने से व्यक्ति को पितृ ऋण से मुक्ति मिलती है।
  • जो भी श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करता है उसकी बुद्धि, पुष्टि, स्मरणशक्ति, धारणाशक्ति, पुत्र-पौत्रादि एवं ऐश्वर्य की वृद्धि होती। वह पर्व का पूर्ण फल भोगता है।
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    पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री

ज्योतिर्विद वास्तु दैवज्ञ
पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री
मो. 9993874848

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