पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री, वाराणसी : आप जानते हैं आपका क्रोधी स्वभाव कहीं कुंडली में बने मंगल एवं राहु तथा मंगल एवं केतु के कारण तो नहीं क्योंकि मंगल के साथ यदि राहु केतु होते हैं तो अंगारक योग बनता है। कुंडली में मंगल का राहु अथवा केतु में से किसी के साथ स्थान अथवा दृष्टि से संबंध स्थापित हो जाए तो ऐसी कुंडली में अंगारक योग का निर्माण हो जाता है जिसके कारण जातक का स्वभाव आक्रामक, हिंसक तथा नकारात्मक हो जाता है तथा इस योग के प्रभाव में आने वाले जातकों के अपने भाईयों, मित्रों तथा अन्य रिश्तेदारों के साथ संबंध भी खराब हो जाते हैं। लाल किताब के अनुसार किसी कुंडली में अंगारक योग बन जाने पर ऐसा जातक अपराधी बन जाता है तथा उसे अपने अवैध कार्यों के चलते लंबे समय तक जेल अथवा कारावास में भी रहना पड़ सकता है।
किन्तु यहां पर यह बात ध्यान देने योग्य है कि वास्तविकता में किसी जातक को अंगारक योग के साथ जोड़े जाने वाले अशुभ फल तभी प्राप्त होते हैं जब कुंडली में अंगारक योग बनाने वाले मंगल, तथा राहु अथवा केतु दोनों ही अशुभ हों तथा कुंडली में मंगल तथा राहु केतु में से किसी के शुभ होने की स्थिति में जातक को अधिक अशुभ फल प्राप्त नहीं होते और कुडली में मंगल तथा राहु केतु दोनों के शुभ होने की स्थिति में इन ग्रहों का संबंध अशुभ फल देने वाला अंगारक योग न बना कर शुभ फल देने वाला अंगारक योग बनाता है।
उदाहरण के लिए किसी कुंडली के तीसरे घर में अशुभ मंगल का अशुभ राहु अथवा अशुभ केतु के साथ संबंध हो जाने की स्थिति में ऐसी कुंडली में निश्चय ही अशुभ फल प्रदान करने वाले अंगारक योग का निर्माण हो जाता है जिसके चलते इस योग के प्रबल प्रभाव में आने वाले जातक अधिक आक्रामक तथा हिंसक होते हैं तथा कुंडली में कुछ अन्य विशेष प्रकार के अशुभ प्रभाव होने पर ऐसे जातक भयंकर अपराधी जैसे कि पेशेवर हत्यारे तथा आतंकवादी आदि बन सकते हैं। दूसरी ओर किसी कुंडली के तीसरे घर में शुभ मंगल का शुभ राहु अथवा शुभ केतु के साथ संबंध हो जाने से कुंडली में बनने वाला अंगारक योग शुभ फलदायी होगा जिसके प्रभाव में आने वाले जातक उच्च पुलिस अधिकारी, सेना अधिकारी, कुशल योद्धा आदि बन सकते हैं जो अपनी आक्रमकता तथा पराक्रम का प्रयोग केवल मानवता की रक्षा करने के लिए और अपराधियों को दंडित करने के लिए करते हैं।
कुंडली के 12 भाव में अंगारक योग से होने वाला नुकसान :
▪ प्रथम भाव में अंगारक योग होने से पेट रोग, शरीर पर चोट, अस्थिर मानसिकता, क्रूरता होती है।
▪द्वितीय भाव में अंगारक योग होने से धन में उतार-चढ़ाव व व्यक्ति का घर-बार बरबाद हो जाता है।
▪तृतीय भाव में अंगारक योग होने से भाइयों से कटु संबंध बनते हैं परंतु व्यक्ति धोखेबाजी से सफल हो जाता है।
▪चतुर्थ भाव में अंगारक योग होने से माता को दुख व भूमि संबंधित विवाद होते हैं।
▪पंचम भाव में अंगारक योग होने से संतानहीनता व जुए-सट्टे से लाभ होता है।
▪छटम भाव में अंगारक योग होने से ऋण लेकर उन्नति होती है। व्यक्ति खूनी या शल्य-चिकित्सक भी बन सकता है।
▪सप्तम भाव में अंगारक योग होने से दुखी विवाहित जीवन, नाजायज संबंध, विधवा या विधुर होना परंतु सांझेदारी से लाभ भी मिलता है।
▪अष्टम भाव में अंगारक योग होने से पैतृक सम्पत्ति मिलती है परंतु सड़क दुर्घटना के प्रबल योग बनते हैं।
▪नवम भाव में अंगारक योग होने से व्यक्ति भाग्यहीन, वहमी, रूढ़ीवादी व तंत्रमंत्र में लिप्त होते हैं।
▪दशम भाव में अंगारक योग होने से व्यक्ति अति कर्मठ, मेहनतकश, स्पोर्टमेन व अत्यधिक सफल होते है।
▪एकादश भाव में अंगारक योग होने से प्रॉपर्टी से लाभ मिलता है। व्यक्ति चोर, कपटी धोखेबाज़ होते हैं।
▪द्वादश भाव में अंगारक योग होने से इम्पोर्ट-एक्सपोर्ट व रिश्वतख़ोरी से लाभ। ऐसे व्यक्ति बलात्कार जैसे अपराधों में भी लिप्त होते हैं।
कुंडली के बारह घरों में मंगल-राहु अंगारक योग के उपाय :
1- कुंडली के पहले घर में मंगल-राहु अंगारक योग होने पर रेवडिय़ां, बताशे पानी में बहाएं। ॐ अंग अंगारकाय नमः का नियमित जाप करें। हनुमान चालीसा का पाठ करें। प्रत्येक मंगलवार को गाय को गुड़ खिलाएं।
2- कुंडली के दूसरे भाव में अंगारक योग होने पर चांदी की अंगूठी उल्टे हाथ की लिटील फिंगर में पहनें। ॐ अंग अंगारकाय नमः कानियमित जाप करें। हनुमान चालीसा का पाठ करें। गोमती चक्र पास में रखें।
3- जिन लोगों की कुंडली के तीसरे भाव में ये योग होता है वह घर में हाथी दांत रखें। ॐ अंग अंगारकाय नमः का नियमित जाप करें। हनुमान चालीसा का पाठ करें।
4- कुंडली के चौथे भाव में ये योग होने पर सोना, चांदी और तांबा तीनों को मिलाकर अंगूठी पहनें। ॐ अंग अंगारकाय नमः का नियमित जाप करें। हनुमान चालीसा का पाठ करें। सात गोमती चक्र रखें।
5- कुंडली के पांचवें भाव में अंगारक योग होने पर रात को सिरहाने पानी का बर्तन भरकर रखें और सुबह उठते ही पेड़-पौधों में डालें। ॐ अंग अंगारकाय नमः का नियमित जाप करें। हनुमान चालीसा का पाठ करें।
6- जिन लोगों की कुंडली के छठे घर में अंगारक योग होने पर कन्याओं को दूध और चांदी का दान दें। ॐ अंग अंगारकाय नमः का नियमित जाप करें। हनुमान चालीसा का पाठ प्रतिदिन करें। प्रत्येक मंगलवार को सुंदरकांड का पाठ करें।
7- कुंडली के सातवें भाव में अंगारक योग होने पर चांदी की ठोस गोली अपने पास रखें। ॐ अंग अंगारकाय नमः का नियमित जाप करें। हनुमान चालीसा का पाठ करें।
8- जिन लोगों की कुंडली के आठवें घर में अंगारक योग बनता है तो एक तरफ सिकी हुई मीठी रोटियां कुत्तों को डालें। ॐ अंग अंगारकाय नमः का नियमित जाप करें। हनुमान चालीसा का पाठ करें।
9- कुंडली के नवें घर में ये योग बनता है तो मंगलवार को हनुमान जी को सिंदूर चढ़ाएं। ॐ अंग अंगारकाय नमः का नियमित जाप करें। हनुमान चालीसा का पाठ करें। प्रत्येक मंगलवार को गाय को गुड़ खिलाएं।
10- दसवें भाव में अंगारक योग जिन लोगों की कुंडली में होता है वो हनुमान मूंगा रत्न धारण करें। ॐ अंग अंगारकाय नमः कानियमित जाप करें। हनुमान चालीसा का पाठ करें।
11- कुंडली के लाभ भाव यानि ग्यारहवें भाव में अंगारक योग होने पर मिट्टी के बर्तन में सिन्दूर रख कर, उसे घर में रखें। ॐ अंग अंगारकाय नमः का नियमित जाप करें। हनुमान चालीसा का पाठ करें।
12- बारहवें भाव में अंगारक योग होता है वह उज्जैन जाकर अंगारेश्वर मंदिर में भात पूजा कराएं, चांदी का हाथी गले में धारण करें, सात गोमती चक्र रखे। ॐ अंग अंगारकाय नमः का नियमित जाप करें। हनुमान चालीसा का पाठ करें। प्रत्येक मंगलवार को गाय को गुड़ खिलाएं।
*अंगारक योग होने पर रेवडिय़ां, बताशे पानी में बहाएं, ॐ अंग अंगारकाय नमः का नियमित जाप करें, हनुमान चालीसा का पाठ करें और प्रत्येक मंगलवार को गाय को गुड़ खिलाएं।
*इस योग के प्रभाव को कम करने के लिए मंगलवार के दिन व्रत करें और मंगल ग्रह के बीज मन्त्र का जाप करें।
*भगवान शिव के पुत्र कुमार कार्तिकेय की आराधना करें।
*हनुमान जी की आराधना करने से इन दोनों ग्रहों के खराब प्रभाव से मुक्ति मिलती है, यह एक उत्तम उपाय है।
*मंगल और राहु की शांति के लिए निर्दिष्ट दान करना लाभकारी होता है।
अंगारक स्तोत्र :
विनोयग- अस्य श्री अंगारकस्तोत्रस्य विरूपांगिरस ऋषिः अग्निर्देवता गायत्रीच्छंदः भौमप्रीत्यर्थं जपे विनोयगः।
स्तोत्रम्
अंगारकः शक्तिधरो लोहितांगो धरासुतः।
कुमारो मंगलो भौमो महाकायो धनप्रदः।।
ऋणहर्ता दृष्टिकर्ता रोगकृद्रोगनाशनः।
विघुत् प्रभो व्रणकरः कामदो धनह्रत् कुजः।।
सामगानप्रियो रक्तवस्त्रो रक्तायतेक्षणः।
लोहितो रक्तवर्णश्च सर्वकर्माविरोधकः।।
रक्तामाल्यधरो हेमकुण्डली ग्रहनायकः।
नामान्येतानि भौमस्य यः पठेत् सततं नरः।।
ऋणं तस्य हि दौर्भाग्यं दारिद्रयं च विनश्यति।
धनं प्राप्नोति विपुलं स्त्रियं चैव मनोरमाम्।।
वंशोघोतकरं पुत्रं लभते नाऽत्र संशयः।
योऽर्चयेदह्नि भौमस्य मंगलं बहुपुष्पकैः।।
सर्वा नश्यति पीडा च तस्य ग्रहकृता ध्रुवम्।।
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जोतिर्विद वास्तु दैवज्ञ
पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री
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