वाराणसी । शुक्र अस्त (डूबने) के कारण इस वर्ष करवाचौथ व्रत का उद्यापन (मोख) नही होगा। करवाचौथ का व्रत कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को किया जाता है। सनातन धर्म में व्रत एवं त्योहारों की मान्यता बहुत अधिक है। इस वर्ष करवाचौथ का व्रत 13 अक्टूबर गुरूवार को है। करवाचौथ का उपवास सुहागन स्त्रियों के लिए बहुत अधिक विशेष महत्व रखता है। इस दिन सुहागन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र की प्रार्थना करती हैं और उनका गृहस्थ जीवन सुखद रहे इसके लिए व्रत करती हैं। पूरे भारत में इस त्योहार को धूमधाम से मनाया जाता है। लेकिन उत्तर भारत खासकर जम्मू कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश आदि में तो इस त्योहार की अलग ही रौनक देखने को मिलती है। चांद देखने के बाद ही महिलाएं अपना व्रत खोलती हैं। इस दिन कुंवारी कन्याएं भी व्रत रखती हैं जिनकी सगाई हो गई हो।
सुहागिन महिलायें अपने सुहाग की रक्षा के लिए उपवास रखने के बाद आसमान के चमकते चांद का दिदार कर अपने पति के हाथों से निवाला खाकर अपना उपवास खोलती हैं। करवाचौथ का व्रत सुबह सूर्योदय से पहले ही 4 बजे के बाद शुरु हो जाता है और रात को चंद्रदर्शन के बाद ही व्रत को खोला जाता है। इस दिन श्रीगणेश, भगवान शिव, माता पार्वती, स्वामी कार्तिकेय और चंद्रदेव की पूजा अर्चना की जाती है और करवाचौथ व्रत की कथा सुनी जाती है। सामान्यत: विवाह के बाद 12 या 16 साल तक लगातार इस उपवास को किया जाता है। लेकिन इच्छानुसार जीवनभर भी विवाहिताएं इस व्रत को रख सकती हैं। अपने पति की लंबी उम्र के लिये इससे श्रेष्ठ कोई उपवास अथवा व्रत आदि नहीं है। इस दिन महिलाएं श्रृंगार करके पूजा करने जाती हैं और फिर आकर घर के बड़ों का आशीर्वाद लेती हैं। महिलाओं में ये त्योहार बहुत ही प्रचलित होता है।
करवाचौथ पूजन का शुभ मुहूर्त इस प्रकार है :
पंचांग के अनुसार इस वर्ष कार्तिक माह कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि का 13 अक्टूबर गुरूवार को प्रात: 02 बजे शरू होगी। चतुर्थी तिथि का समापन अगले दिन 14 अक्टूबर शुक्रवार को प्रात: 03 बजकर 09 मिनट पर हो रहा है। चन्द्रोदयव्यापिनी कार्तिक मास के कृष्ण चतुर्थी तिथि 13 अक्टूबर गुरूवार को प्राप्त हो रही है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार करवा चौथ का व्रत 13 अक्टूबर गुरूवार को रखा जाएगा।
करवाचौथ पूजन शुभ मुहूर्त : 13 अक्टूबर गुरूवार शाम 6 बजकर 05 मिनट से उसी शाम 7 बजकर 05 मिनट के बीच करवाचौथ का पूजन करना सबसे कल्याणकारी होगा।
चंद्र दर्शन का समय इस प्रकार है :-
करवाचौथ व्रत कैसे शुरू करें : करवा चौथ व्रत के दिन व्रती सुबह जल्दी उठ कर शुद्ध जल से स्नान करें घर में पूजा स्थान या घर में कोई पवित्र स्थान में गंगाजल का अभिषेक कर के शुद्ध आसन पर बैठ कर आत्म पूजा कर, यह संकल्प करें ” मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये” संकल्प बोलकर करवा चौथ के व्रत को शुरू करे।
पूजन के बाद क्या करें : इस दिन सुबह उषाकाल पूजन कर सबसे पहले कुछ खाना तथा पीना चाहिए।
करवाचौथ पूजन व्रत विधि : गुरुवार 13 अक्टूबर शाम 06 बजकर 05 मिनट से 07 बजकर 05 मिनट के बीच दीवार पर गेरू से फलक बनाकर पिसे चावलों के घोल से करवा चित्रित करें,नहीं तो आज कल मार्किट से भी चित्र मिलते हैं। आठ पूरियों की अठावरी बनाएं। मीठा और साथ में अलग-अलग तरह के पकवान बनाये,गौरी को लकड़ी के आसन पर बिठाएं,बिंदी आदि सुहाग सामग्री से गौरी मैया का श्रृंगार करें,जल से भरा हुआ लोटा रखें करवा में गेहूं और ढक्कन में शक्कर का बूरा भर दें रोली से करवा पर स्वास्तिक बनाएं श्री गणेश, भगवान शिव, माता पार्वती, स्वामी कार्तिकेय, चंद्रदेव और चित्रितकरवा की विधि अनुसार पूजा करें।
पति की लंबी आयु की कामना करें और इस मंत्र का जाप करे :
”ऊॅ नम: शिवायै शर्वाण्यै सौभाग्यं संतति शुभाम। प्रयच्छ भक्तियुक्तानां नारीणां हरवल्लभे॥”
‘ॐ शिवायै नमः‘ से पार्वती का, ‘ॐ नमः शिवाय‘ से शिव का, ‘ॐ षण्मुखाय नमः‘ से स्वामी कार्तिकेय का, ‘ॐ गणेशाय नमः‘ से गणेश का तथा ‘ॐ सोमाय नमः‘ से चंद्रमा का पूजन करें।
करवा पर 13 बिंदी रखें और गेहूं या चावल के 13 दाने हाथ में लेकर करवा चौथ की कथा खुद करें या सुनें कथा सुनने के बाद करवा पर हाथ घुमाकर अपने सास ससुर सभी बड़ो का आशीर्वाद ले और करवा उन्हें दे दे,तेरह दाने गेहूं के और पानी का लोटा अलग रख लें रात्रि में चन्द्रमा निकलने के बाद छलनी की ओट से उसे देखें और चन्द्रमा को अर्घ्य दें यानि उन्हें जल चढ़ाये और उनकी लंबी आयु की कामना करे और जिंदगी भर आपका साथ बना रहे इसकी कामना करे इसके बाद पति के पैरों को छुए और उन से आशीर्वाद लें और उनके हाथ से जल पीएं उन्हें भोजन कराएं और स्वयं भी भोजन कर लें। धर्मग्रंथों के अनुसार पति के हाथों जल ग्रहण करके व्रत का पारण करें। पारण से ही व्रत पूरा होता है।
करवा चौथ की पूजन सामग्री इस प्रकार है : शुद्ध मिट्टी, चॉदी, सोने या पीतल आदि किसी भी धातु का टोंटीदार करवा व ढक्कन, देसी घी का दीपक, रुई, गेहूँ, शक्कर या बूरा, हल्दी, पानी का लोटा, कुमकुम, शहद, महावर, कंघा, बिंदी, चुनरी, चूड़ी, बिछुआ, धूप, अगरबत्ती, पुष्प, कच्चा दूध, शक्कर, शुद्ध घी, दही, नारियल, मेंहदी, मिठाई, गंगाजल, चंदन, चावल, सिन्दूर, गौरी बनाने के लिए पीली मिट्टी, लकड़ी का आसन, हलुआ, छलनी, आठ पूरियों की अठावरी, फूल माला श्रद्धा स्वरुप दान के लिए दक्षिणा।
इस दिन महिलाओ को सोलह श्रृंगार करना चाहिए वह इस प्रकार है : इस दिन महिलाएं सोलह श्रृंगार करती हैं। सोलह श्रृंगार में माथे पर लंबी सिंदूर अवश्य हो क्योंकि यह पति की लंबी उम्र का प्रतीक है। मंगलसूत्र, मांग टीका, बिंदिया, काजल, नथनी, कर्णफूल, मेहंदी, कंगन, लाल रंग की चुनरी, बिछिया, पायल, कमरबंद, अंगूठी, बाजूबंद और गजरा ये 16 श्रृंगार में आते हैं।
शुक्र अस्त (डूबने) के कारण इस वर्ष करवाचौथ व्रत का उद्यापन (मोख) नही होगा।
यह व्रत 12 वर्ष तक अथवा 16 वर्ष तक लगातार हर वर्ष किया जाता है। अवधि पूरी होने के पश्चात इस व्रत का उद्यापन (उपसंहार) किया जाता है। जो सुहागिन स्त्रियाँ आजीवन रखना चाहें वे जीवनभर इस व्रत को कर सकती हैं।
करवाचौथ व्रत कथा : महाभारत काल माना जाता है। इसी व्रत के प्रभाव से पाण्डव विजयी हुए। द्रौपदी का सौभाग्य सुरक्षित रहा। सर्वप्रथम इस व्रत को श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को बताया था। महाभारत काल में एकबार अर्जुन नीलगिरी पर्वत पर तपस्या करने गए। द्रौपदी ने सोचा कि यहां हर समय जीव-जंतु सहित विघ्न-बाधाएं रहती हैं। उसके शमन के लिए अर्जुन तो यहां नहीं हैं। यह सोचकर द्रौपदी ने भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान किया और अपने कष्टों का निवारण पूछा। उन्होंने करवाचौथ के बारे द्रौपदी को बताया था। करवाचौथ की और भी कथाएं है।
वर्तमान में महामारी के चलते घर पर रहकर ही मनाये और जो महिलाएं पहले से ही हृदय रोग, सुगर, बीपी व अन्य बीमारी से पीड़ित हैं, उन्हें अपने डॉक्टर की सलाह लेकर ही व्रत रखना चाहिए अगर स्वयं निर्णय लेकर व्रत रखती है तो उनकी सेहत पर बुरा असर पड सकता है।
ज्योतिर्विद वास्तु दैवज्ञ
पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री
मो. 9993874848