देहरादून। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी (एनआईएच), रुड़की के अनुसार जमीन धंसने के कारण जोशीमठ एक बड़ी चुनौती का सामना कर रहा है और एनटीपीसी परियोजना स्थल के पानी के नमूनों की प्रोफाइल समान नहीं है। साथ ही कस्बे के कई घरों में बड़ी दरारें पड़ने से घरों के नीचे से बहने वाले जल स्रोत का वेग अब कम होता जा रहा है। उत्तराखंड आपदा प्रबंधन सचिव रंजीत सिन्हा के मुताबिक, उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित कस्बे में पानी का डिस्चार्ज घटकर 100 लीटर प्रति मिनट रह गया है।
इसे देखते हुए शहर में तैनात तकनीकी संस्थानों के निदेशकों और वैज्ञानिकों को आगे की कार्रवाई के लिए अध्ययन रिपोर्ट जल्द से जल्द साझा करने को कहा गया है। उन्होंने कहा कि 6 जनवरी को पानी का रिसाव 540 लीटर/मिनट था, जो वर्तमान में घटकर 100 लीटर/मिनट हो गया है। आपदा प्रबंधन सचिव ने बताया कि मुख्य सचिव एसएस संधू ने कस्बे में कार्यरत विभिन्न तकनीकी संस्थानों के निदेशकों और वैज्ञानिकों को प्रभावित क्षेत्र का तत्काल अध्ययन कर जल्द से जल्द रिपोर्ट उपलब्ध कराने को कहा है।
उन्होंने कहा कि यह भी कहा गया है कि जोशीमठ में दरारों और भू-धंसाव का अध्ययन समयबद्ध तरीके से किया जाए। उन्होंने कहा कि विभिन्न तकनीकी संस्थानों को भी अपनी स्टडी रिपोर्ट एक दूसरे से साझा करनी चाहिए साथ ही स्टडी रिपोर्ट की स्पष्टता के साथ समाधान पर भी चर्चा होनी चाहिए। सिन्हा ने कहा कि जोशीमठ में अस्थायी रूप से चिन्हित राहत शिविरों में 615 कमरे हैं, जिनमें 2,190 लोग रह सकते हैं।
पीपलकोटी में 2,205 लोगों की क्षमता वाले 491 कमरे हैं। अब तक 849 इमारतों में दरारें आ चुकी हैं। फिलहाल सर्वे का काम चल रहा है। गांधीनगर में एक, सिंह धार में दो, मनोहर बाग में 5, सुनील में 7 वाडरें को असुरक्षित घोषित किया गया है। जबकि 181 भवन असुरक्षित जोन में मौजूद हैं और 258 परिवारों को सुरक्षा के मद्देनजर अस्थायी रूप से विस्थापित किया गया है।