जयंती विशेष : स्वतंत्रता सेनानी, मिस्टर पार्लियामेन्ट चौधरी दिगंबर सिंह जी

आदित्य चौधरी, नई दिल्ली। मुझे गर्व है कि मैं, चौधरी दिगम्बर सिंह जी का बेटा हूँ। आज 9 जून को उनकी जन्म वर्षगांठ है। 9 जून सन् 1913 को उनका जन्म हुआ था। पिताजी स्वतंत्रता सेनानी थे। 4 बार लोकसभा सांसद रहे। 1952 (एटा-जलेसर), 1962 (मथुरा), 1969 (मथुरा उपचुनाव), 1980 (मथुरा) और 25 वर्ष लगातार, मथुरा जिला. सहकारी बैंक के अध्यक्ष रहे। पहला चुनाव साइकिलों के द्वारा ही लड़ा।

दीनदयाल नगर (डेम्पीयर नगर) में चौधरी साहब द्वारा बनवाया हुआ ‘किसान निवास’ उनकी किसानों के प्रति उनकी दूरदृष्टि का इतिहास कह रहा है। वे सादगी का जीवन जीते थे। कभी कोई नशा नहीं किया और आजीवन पूर्ण स्वस्थ रहे।

राजनैतिक प्रतिद्वंदी ही उनके मित्र भी होते थे। उनकी व्यक्तिगत निकटता पं. नेहरू, लोहिया जी, शास्त्री जी, पंत जी, इंदिरा जी, चौ. चरण सिंह जी, अटल बिहारी वाजपेयी जी, चंद्रशेखर जी आदि से रही।

सभी विचारधारा के लोग उनकी मित्रता की सूची में थे, चाहे वह जनसंघी हो या मार्क्सवादी। सभी धर्मों का अध्ययन उन्होंने किया था। जातिवाद से उनका कोई लेना-देना नहीं था। वे बेहद ‘हैंडसम’ थे। उन्हें पहली संसद 1952 में मिस्टर पार्लियामेन्ट का खिताब भी मिला।

संसद में दिए उनके भाषणों को राजस्थान में सहकारी शिक्षा के पाठ्यक्रम में लिया गया। उनकी सबसे अधिक महत्वपूर्ण बात यह थी कि जब वे संसद में बोलते थे तो अपनी पार्टी के लिए नहीं बल्कि निष्पक्ष रूप से किसान-मजदूर के हित में बोलते थे। इस कारण उनको केन्द्रीय मंत्रिमंडल में लेने से नेता सकुचाते थे कि पता नहीं कब सरकार के ही खिलाफ बोल दें।

उन्होंने जमींदार परिवार से होने के बावजूद अपना खेत उन्हीं को दान कर दिए थे जो उन्हें जोत रहे थे। सांसद काल में उन्होंने राजा-महाराजाओं को मिलने वाले प्रीविपर्स के खिलाफ वोट दिया था जब कि उन्हें उस वक्त लाखों रुपये का लालच दिया गया था। उन जैसा नेता और इंसान होना अब मुमकिन नहीं है।

वे मेरे हीरो थे, गुरु थे और मित्र थे। आज भारतकोश वेब पोर्टल के कारण विश्व भर में मुझे पहचान और सम्मान मिल रहा है किंतु मेरी सबसे बड़ी पहचान यही है कि मैं उनका और अपनी माँ श्रीमती चंद्रकान्ता चौधरी का बेटा हूँ।

लोकसभा में दिए गए उनके एक भाषण का अंश-
“मैं किसानों की तरफ़ से आया हूँ और उनकी तरफ़ से बात कह रहा हूँ।
जो अन्न पैदा करते हैं, जो गेहूँ पैदा करते हैं लेकिन उन्हें खाने को नहीं मिलता।
जो ऊन और कपास पैदा करते हैं लेकिन उनको पहनने के लिए कपड़ा नहीं मिलता।
मैं ऐसे लोगों की बात कहने आया हूँ जो दूध, घी पैदा करते हैं लेकिन उन्हें भूखों मरना पड़ता है।
मैं उस किसान की बात कहता हूँ, जिसने अपने बच्चे को सेना में भेजा है लेकिन उस किसान की रक्षा नहीं होती।
मैं उन लोगों की बात आप से करना चाहता हूँ, जो लोग अपने वोट देकर सरकार बनाते हैं लेकिन उस सरकार की ओर से उनके हितों की रक्षा नहीं होती।”
-30 अप्रेल 1965 लोकसभा

(इस भाषण के समय वे कांग्रेस से सांसद थे और सरकार के ही खिलाफ बोले थे)

(लेखक आदित्य चौधरी www.bharatkosh.org, www.brajdiscovery.org के संस्थापक संपादक हैं।)

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