व्यापारी भाइयों को आयकर अधिनियम 1961 की धारा 43 बी (एच) की गंभीरता से स्पष्ट व्याख्या समझना जरूरी

ट्रेडर्स किसी एमएसएमई इकाई से माल खरीदते हैं तो ही धारा 43 बी (एच) के प्रावधान लागू होंगे, वरना नहीं
वित्त मंत्रालय द्वारा कारोबारी संगठनों,व्यापारी बंधुओ को आयकर अधिनियम 1961 की धारा 43 बी (एच)को जागरूकता अभियान चलाकर, व्यापक स्पष्टता से समझाना समय की मांग- एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया

एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र। वैश्विक स्तर पर भारत आज दुनियां की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है, जो बहुत जल्द जापान व जर्मनी को पीछे धकेलते हुए तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर तेजी से अग्रसर है। जिसके लिए हर वर्ष बजट में अनेक वित्तीय कानूनो में संशोधन तेज रफ्तार से करते हुए उन्हें ऐसे सुलभ बनाए जा रहे हैं कि व्यापार, उद्योग, कारोबार में तेजी आए, क्योंकि यह अर्थव्यवस्था के महत्वपूर्ण पहियों में से एक है। यदि कारोबार की गति तेज पकड़ती है तो भारतीय अर्थव्यवस्था को तीसरे नंबर पर आने से कोई नहीं रोक सकता। परंतु उसके लिए यह भी जरूरी है कि वित्तीय कानूनो में जो संशोधन किए जा रहे हैं उसके संदेहों को संबंधित कारोबारीयों को जन जागरण चलकर इसकी व्यापक स्पष्टता से समझाकर उनके संदेहों को दूर करना जरूरी है। अभी पिछले वर्ष बजट 2023 में आयकर अधिनियम 1961 की धारा 43बी (एच) में संशोधन कर केवल, यह बात मैं दोहराना चाहूंगा सिर्फ और सिर्फ एमएसएमई से खरीदे गए सामानों का भुगतान कांट्रैक्ट बेसिस पर 15 से 45 दिनों में करने और इस नए नियम का आकलन गत वर्ष 2023-24 से लागू किया गया है। मेरा मानना है कि इस संशोधनों से व्यापार जगत में संदेह पैदा हो गया है कई कारोबारी संगठन इस मुद्दे को समझने के लिए वकीलों या सीए साथियों को बुलाकर सामूहिक व्याख्यान परामर्श आयोजित कर रहे हैं, ताकि इस प्रावधान को स्पष्टता से समझा जा जा सकेेे।

वित्त मंत्रालय से मेरा अनुरोध है कि कारोबारी संगठनों को इस संशोधन की स्पष्टता से अवगत कराना जरूरी है क्योंकि हर व्यापारी यह समझ रहा है कि पैसों का भुगतान देने में 15 से 45 दिन से दोनों के बीच नहीं किया गया तो उनकी यह भुगतान उनकी आय में जुड़ जाएगा और उस पर टैक्स देना पड़ेगा। इस संबंध में अनेक राज्यों के अनेक शहरों में विशेषज्ञों के परामर्श आयोजन व्यापारी संगठनों द्वारा किए जा रहे हैं। हमारे राइस सिटी गोंदिया महाराष्ट्र में भी इस संबंध में दिनांक 22 मार्च 2024 को व्यापारिक संगठन द्वारा एक परामर्श सभा का आयोजन किया गया। जिसमें विशेषज्ञों ने इसपर अपनी राय रखी, चूंकि ट्रेडर्स किसी एमएसएमई इकाइयों से माल खरीदते हैं तो ही धारा 43 बी(एच) के प्रावधान लागू होंगे वरना नहीं। इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आलेख के माध्यम से चर्चा करेंगे, वित्त मंत्रालय द्वारा कारोबारी संगठन, व्यापारी बंधुओ को आयकर अधिनियम की धारा 43बी (एच) को जागरूकता अभियान चलाकर व्यापक स्पष्ट से समझाना समय की मांग है।

साथियों बात अगर हम आयकर अधिनियम 1961 की संशोधित धारा 43 बी (एच) को विस्तृत रूप से स्पष्टता से समझने की करें तो
(1) यदि आपने किसी व्यापारी (जो कि निर्माता या सेवा प्रदाता नहीं है) से माल खरीदा है तब भी क्या यह प्रावधान लागू होगा? नहीं, यह प्रावधान केवल निर्माताओं और सेवा प्रदाताओं से ख़रीदे माल या सेवा पर ही लागू है क्यों कि एमएसएमई एक्ट 2006 की धारा 2 (जी) में जो एंटरप्राइज की परिभाषा दी गई है उसमें ट्रेडर्स को शामिल नहीं किया गया है अर्थात यदि आपने किसी व्यापारी या ट्रेडर से माल खरीदा है तो यह प्रावधान लागू नहीं है। इसके अतिरिक्त यह प्रावधान केवल सूक्ष्म एवं लघु (माइक्रो एवं स्माल) इकाइयों से की गई खरीद पर ही लागू है और इसमें मीडियम इकाइयाँ शामिल नहीं है। अभी हाल ही में ट्रेडर्स को भी एमएसएमई एक्ट 2006 में शामिल किया गया था लेकिन वह केवल प्रायरिटी सेक्टर के ऋण हेतु था और इसी कारण से इस सम्बन्ध में एक विवाद या भ्रम चल रहा है। लेकिन अभी भी इस कानून के तहत एंटरप्राइज की परिभाषा में कोई परिवर्तन नहीं किया गया है इसलिए अभी जो स्थिति है उसके अनुसार ट्रेडर्स इस प्रावधान से बाहर है अर्थात यदि कोई खरीद ट्रेडर्स से की जाती है तो 43 बी के प्रावधान लागू नहीं होंगे। यहाँ यह ध्यान रखे कि यदि ट्रेंड्स किसी एमएसएमई से माल खरीदते हैं तो उनको समय पर भुगतान करना ही होगा वरना इस धारा के प्रावधान लागू हो जायेंगे।

(2) यदि क्रेता और विक्रेता आपस में एक अग्रीमेंट कर लेते हैं कि वे माल के भुगतान का लेनदेन 90 दिन में करेंगे (जैसा कि कुछ जगह प्रचलन है) तब क्या यह अवधि 90 दिन हो जायेगी। नहीं, अग्रीमेंट के जरिये 15 दिन की अवधि को 45 दिन तक बढाया जा सकेगा लेकिन 45 दिन से अधिक नहीं बढाया जा सकेगा इसलिए यदि क्रेता और विक्रेता आपस में 90 दिन में भुगतान का कोई अग्रीमेंट कर भी लेते हैं तो भी यह प्रावधान 45 दिन बाद ही लागू हो जाएगा। एमएसएमई एक्ट 2006 के अनुसार यदि क्रेता और विक्रेता के बीच कोई एग्रीमेंट नहीं है तो भुगतान 15 दिन में और यदि एग्रीमेंट है तो भुगतान 45 दिन में हो जाना चाहिए।

(3) क्या पूरे बर्ष ही इस धारा 43Bबी के इस प्रावधान से बचने के लिए 15 दिन या 45 दिन में भुगतान करना होगा? आयकर के इस प्रावधान के तहत पूरे साल यदि भुगतान देरी से होती है लेकिन 31 मार्च 2024 के पहले भुगतान हो जाता है तो फिर इस धारा 43 बी (एच) के तहत कुछ भी नहीं जुड़ेगा क्यों कि देरी से किया गया भुगतान, जब भी किया जाए उस वित्त वर्ष में छूट मिल जायेगी। इस प्रकार यदि यह भुगतान 31 मार्च 2024 को या इसके पहले हो जाता है तो फिर उसकी छूट मिल जायेगी। भुगतान में 15 दिन या 45 दिन (जैसी भी स्थिति है) से अधिक देरी होती है तो फिर भुगतान उस वर्ष में मिलेगा जिस वर्ष में भुगतान किया जाता है।

(4) क्या यह प्रावधान उन्हीं निर्माताओं या सेवा प्रदाताओं द्वारा बेचे गए माल या सेवा पर ही लागु होगा जो कि एमएसएमई एक्ट 2006 के तहत रजिस्टर्ड हैं? एमएसएमई एक्ट 2006 की धारा 2 (एन) में जो सप्लायर की परिभाषा दी गई है उसके अनुसार सप्लायर वह है जो कि को इसकी धारा 8(1) तहत एक मेमोरेंडम दाखिल करता है जिसे आप रजिस्ट्रेशन ( उद्यम आधार) भी कह सकते हैं। इसी कानून की धारा 15 जो कि भुगतान की समय सीमा का निर्धारण करती है उसमें भी सप्लायर शब्द का जिक्र है और एमएसएमई एस 2006 यही धारा 15 आयकर कानून की इस नई धारा 43बी (एच) का आधार है और इसलिए यह प्रावधान तभी लागू होगा जब कि आपका विक्रेता इस कानून के तहत धारा 8(1) में लिखा मेमोरेंडम प्रस्तुत कर चुका हो अर्थात उद्यम आधार जारी करवा चुका हो। अब यदि ऐसा है तो यह प्रावधान और भी उलझा हुआ बनाती है क्यों कि पहले तो हर क्रेता को यह मालुम करना होगा कि उसका विक्रेता नेएमएसएमई एक्ट 2006 के तहत मेमोरेंडम भरा है या नहीं उसने उद्यम आधार जारी करवाया भी है या नहीं। यहाँ यह ध्यान रखें कि जब एक कानून के प्रावधान को दूसरे कानून के प्रावधानों से जोड़ा जाता है और फिर एक कानून का प्रावधान बनाया जाता है तो फिर इस तरह के भ्रम बने रहना स्वाभाविक है और इस तरह की स्तिथि से कानून निर्माता यदि बचें तो कर दाताओं को कर कानूनों का पालन करना सरल एवं सुगम हो जाएगा। कानून निर्माताओं सीधा-सीधा कानून यह बनाना चाहिए कि आखिर वे चाहते क्या है ताकि कम से कम भ्रम और असमंजस की स्थिति नहीं रहे।

(5) सूक्षम (माइक्रो) एवं लघु (स्मॉल) इकाइयाँ क्या है? सूक्षम एवं लघु इकाइयों के लिए टर्नओवर एवं प्लांट , मशीनरी एवं उपकरण में निवेश कंपोजिट सीमा निम्न प्रकार से तय की गई है :- इकाई का प्रकार, इकाई पर प्लांट, मशीनरी एवं उपकरण में निवेश एवं टर्नओवर सूक्ष्म उद्यम – माइक्रो इंटरप्राइजेज 1 करोड़ रूपये से अधिक नहीं 5 करोड़ रूपये से अधिक नहीं लघु उद्यम – स्माल इंटरप्राइजेज 10 करोड़ रूपये से अधिक नहीं 50 करोड़ रूपये से अधिक नहीं।

(6) आयकर कानून की धारा 43 बी पूरे वर्ष ही इस 15 एवं 45 दिन के भुगतान की अवधि को ध्यान में नहीं रखना है लेकिन 31 मार्च 2024 के आस पास की गई खरीद पर इस अवधि का विशेष प्रभाव पडेगा और ध्यान रखना पडेगा कि पूरे वर्ष भुगतान देरी से होने पर भी भुगतान वित्तीय वर्ष की समाप्ती के अंतिम दिन के पहले हो जाए। यह बात समझने में थोड़ी परेशानी आ रही है आप इसे एक उदाहरण के जरिए समझाने का कष्ट करें। आइए इसे एक उदहारण के जरिए समझ लीजिए कि यदि किसी करदाता ने माइक्रो या स्माल इंटरप्राइजेज से कोई माल 10 लाख रूपये में 1 अप्रैल 2023 को खरीदा है तो एमएसएमई 2006 के अनुसार 45 दिन के हिसाब से भी इसका भुगतान 15 मई 2023 को हो जाना चाहिए अब अगर इसका भुगतान 15 मई 2023 तक नहीं होता है तो अब यह खर्च व्यापारिक आधार पर नहीं मिलकर वित्तीय वर्ष में भुगतान के आधार पर मिलेगा। अब इसका भुगतान 31 मार्च 2024 तक भी हो जाता है तो भी भुगतान के आधार पर यह खर्च वित्तीय वर्ष 2023-24 में मिल जाएगा। लेकिन यदि इसका भुगतान 31 मार्च 2024 के बाद किया जाता है तो फिर वित्तीय वर्ष 2023-24 में इसकी छूट नहीं मिलेगी और इसकी छूट उस करदाता को तब मिलेगी जब इसका भुगतान कर दिया जाए. आइये एक और स्थिति देखें कि माल ही जब 25 फरवरी 2024 को खरीदा हो तब 10 अप्रैल 2024 तक भी यदि भुगतान कर दिया जाता है तो भी इस खर्च की छूट वित्तीय वर्ष 2023-24 में मिल जायेगी क्यों कि इसके भुगतान के एमएसएमई के तहत निर्धारित अधिकत्तम तिथि ही 10 अप्रैल 2024 है और इस तिथि तक भुगतान हो गया है तो इसकी छूट वित्त्तीय वर्ष 2023-24 में ही मिल जायेगी। इन दोनों स्थितियों में यह मान लिया गया है कि क्रेता और विक्रेता के मध्य भुगतान करने का 45 दिन का अनुबंध है और यदि ऐसा कोई अनुबंध नहीं है तो फिर यह अवधि 15 दिन ही होगी। इस प्रकार से इस उदहारण से यह स्थिति स्पष्ट हो जाती है कि आयकर कानून के इस नए प्रावधान 43बी (एच) के अनुसार भुगतान की इस अवधि में पूरे वर्ष के दौरान यदि देरी भी हो तो कोई फर्क नही पडेगा बशर्ते कि 31 मार्च 2024 अर्थात वित्तीय वर्ष की समाप्ति के पहले भुगतान हो जाता है।

(7) क्या इस प्रावधान से लघु/सूक्षम उद्योगों को हमेशा लाभ ही होगा? वैसे तो सूक्ष्म और छोटे उद्यम को भुगतान समय पर ही मिलना चाहिए और इसके अतिरिक्त भी सूक्ष्म और छोटे उद्यम को भी दूसरे सूक्ष्म और छोटे उद्यम को भी समय पर भुगतान कर देना चाहिए लेकिन इस प्रावधान के द्वारा हमेशा ही सूक्ष्म और लघु उद्यम को लाभ होगा ऐसा व्यवहारिक रूप से संभव नहीं है। आइये इसे भी एक उदहारण के जरिये समझने का प्रयास करें :- यदि किसी करदाता ने माइक्रो या स्माल इंटरप्राइजेज से कोई माल 10 लाख रूपये में 1 अप्रैल 2023 को खरीदा है तो 45 दिन के हिसाब से भी इसका भुगतान 15 मई 2023 को हो जाना चाहिए। अब अगर इसका भुगतान 15 मई 2023 तक नहीं होता है तो अब यह खर्च व्यापारिक आधार पर नहीं मिलकर रोकड़ या भुगतान के आधार पर मिलेगा। अब इसका भुगतान 31 मार्च 2024 तक भी हो जाता है तो भी भुगतान के आधार पर यह खर्च वित्तीय वर्ष 2023-24 में मिल जाएगा। इसलिए प्रभावी रूप से इस प्रावधान का व्यवहारिक प्रभाव तब ही देखा जा सकता है जब कि खरीद या खर्च वर्ष के आखिरी के महीनों में हुआ हो क्यों कि इस प्रावधान के तहत भुगतान का 31 मार्च तक का समय तो है ही। लेकिन एक बात तो है ही कि उन्हें कम से कम 31 मार्च तक तो भुगतान मिलने की संभावना बढ़ ही जायेगी क्यों कि ऐसा नहीं होने पर विक्रेता को उस बकाया राशि पर आयकर का भुगतना करना पडेगा। लेकिन कई बार ऐसा भी होने की सम्भावना है कि इन उद्यमियों से माल कम खरीदा जाएगा ताकि 43 बी (एच) के प्रावधान से बचा जा सके और विशेष तौर पर वर्ष के अंत में स्टोक को कम से कम रखा जाए या निर्माताओं की जगह व्यपारियों और यदि ऐसा होता है तो सूक्ष्म और लघु इकाइयों को इस प्रावधान से लाभ के साथ-साथ नुक्सान होने की संभावना भी बनती है। देखिये यह सारा एकाधिकार का खेल है। यदि विक्रेता का एकाधिकार है तो फिर उसका भुगतान यों भी नहीं रुकता है और वे अपनी शर्तों पर भुगतान प्राप्त करते हैं और कई बार एडवांस भुगतान भी लेते हैं। लेकिन ये सारी समस्याएँ तब उत्पन्न होती है जब कि क्रेता का एकाधिकार होता है जैसा कि बहुत से प्रोडक्ट्स में होता है जहां प्रतियोगी बाज़ार में माल आधिक्य में उपलब्ध है वहां क्रेता अपनी शर्तें मनवा लेता है और यहीं भुगतान में देरी होती है और इस प्रावधान के बाद भी क्रेता अपनी तरफ से इस प्रावधान के कारण विक्रेताओं के लिए नकारात्मक स्तिथियाँ पैदा कर सकते हैं। जिस एमएसएमई निर्माताओं की जगह ट्रेडर्स से माल खरीदना भी शामिल है। इसलिए यह प्रावधान यों तो एमएसएसई के लाभ के लिए ही लाया गया है। लेकिन आम राय यह है कि एमएसएमई को इस प्रावधान से इस समय नुक्सान अधिक होगा। जैसे हमने ऐसे उदाहरण भी देखने को मिलें हैं कि जहाँ एकाधिकार वाले खरीददारों ने अपने विक्रेताओं को सुझाव दिया है कि वे किसी और के नाम एक ट्रेडिंग फर्म बना लें और फिर उस फर्म से उन्हें सप्लाई करे।

एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी : संकलनकर्ता, लेखक, कवि, स्तंभकार, चिंतक, कानून लेखक, कर विशेषज्ञ

अतः अगर हम उपरोक्त पुरे विवरण का अध्ययन कर इसका विशेषण करें तो हम पाएंगे कि, व्यापारी भाइयों को आयकर अधिनियम 1961 की धारा 43 बी (एच) की गंभीरता से स्पष्ट व्याख्या समझना जरूरी। ट्रेडर्स किसी एमएसएमई इकाई से माल खरीदते हैं तो ही धारा 43 बी (एच) के प्रावधान लागू होंगे, वरना नहीं। वित्त मंत्रालय द्वारा कारोबारी संगठनों, व्यापारी बंधुओ को आयकर अधिनियम 1961 की धारा 43 बी (एच)को जागरूकता अभियान चलाकर व्यापक स्पष्टता से समझाना समय की मांग है।

(स्पष्टीकरण : इस आलेख में दिए गए विचार लेखक के हैं और इसे ज्यों का त्यों प्रस्तुत किया गया है।)

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