आधुनिक विकास की आंधी में भारतीय संस्कृति, सभ्यता, विरासत, पुरातत्व, पांडुलिपि को बचाना अत्यंत जरूरी

भारतीय विजन 2047 के विकास पथ में विकास के साथ संस्कृति व विरासत पर ज़ोर देना समय की मांग
युवाओं को भारतीय संस्कृति, सभ्यता, विरासत, पांडुलिपि, कला, प्रथाओं, धरोहर, स्मारक के प्रति जागरूकता फैलाना अत्यंत जरूरी- एड. के.एस. भावनानी

एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र। वैश्विक स्तर पर दुनियां के हर देश में विकास की एक आंधी सी चल रही है। हर देश वैश्विक वित्तीय मंचों संस्थाओं से अपने देश के लिए धन आवंटित कराने की दिशा में कार्य कर रहे हैं, ताकि अपने देश को आधुनिकता की दिशा में आगे बढ़ा सकें। भारत ने भी अपना विजन 2047 रूपी विकसित भारत का विकास पत्र तैयार किया है, जिसमें आगे बढ़ाने की प्लान हमने पूर्ण बजट 23 जुलाई 2024 में भी देखें। परंतु इस बजट में ध्यान देने योग्य बात यह है कि माननीय वित्तमंत्री ने अपने बजट भाषण में देश के विकास पथ में विकास और विरासत दोनों पर सरकार के जोर को रेखांकित किया जो ध्यान देने योग्य बात है। वित्तमंत्री ने 2024 के लिए संस्कृत क्षेत्र के लिए 326.93 करोड़, पुरातत्व सर्वेक्षण क्षेत्र के लिए 1273.91 करोड़, पुस्तकालय एवं अभिलेखागार के लिए 188.21 करोड़ व संग्रहालय के लिए 123.72 करोड़ व पर्यटन के लिए 2479.62 करोड रुपए आवंटित किए हैं जो रेखांकित करने वाली बात है।

बता दें 21-31 जुलाई 2024 तक 16वां विश्व धरोहर समिति सत्र 2024 शुरू है, जो भारत में पहली बार हो रहा है, जिसमें 150 देशों से अधिक के 2000 से अधिक प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं हालांकि हम विकास पथ पर तीव्रता से आगे बढ़ रहे हैं परंतु हमें भारत की पौराणिक व पारंपरिक संस्कृति विरासत पांडुलिपि धरोहर स्मारकों को सहेज कर रखने के लिए हमारी नई पीढ़ी, युवाओं को जागरूक करने की अत्यंत आवश्यकता है, जिसके लिए सरकार ने भी मेरा गांव मेरी धरोहर, भारतीय संस्कृति व विरासत के बारे में युवाओं में जागरूकता फैलाने व राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन तथा राष्ट्रीय संस्कृति कोष जैसी योजनाएं चल रहा है जिसकी जानकारी सरकार ने 25 जुलाई 2024 को केंद्रीय संस्कृति व पर्यटन मंत्री ने राज्यसभा में एक लिखित उत्तर में दी, जिसकी चर्चा हम नीचे पैराग्राफ में करेंगे। चूंकि आधुनिक विकास की आंधी में भारतीय संस्कृति विरासत पुरातत्व पांडुलिपि को बचाना अत्यंत जरूरी है, इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे, भारतीय विजन 2047 के पथ में विकास के साथ संस्कृति व विरासत पर जोर देना समय की है, व युवाओं को भारतीय संस्कृति, विरासत, पांडुलिपि कला प्रथाओं धरोहर स्मारक के प्रति जागरूकता फैलाना अत्यंत जरूरी है।

साथियों बात अगर हम केंद्रीय सांस्कृतिक मंत्रालय द्वारा मेरा गांव मेरी धरोहर योजना की करें तो, कला और संस्कृति को बढ़ावा देने हेतु वित्तीय सहायता योजना का विवरण और योजना के लिए आवंटित धन का विवरण इस योजना में निम्नलिखित उप-घटक हैं वे,
1) राष्ट्रीय उपस्थिति वाले सांस्कृतिक संगठनों को वित्तीय सहायता इस योजना घटक का उद्देश्य पूरे देश में कला और संस्कृति को बढ़ावा देने में शामिल राष्ट्रीय उपस्थिति वाले सांस्कृतिक संगठनों को बढ़ावा देना और समर्थन करना है। यह अनुदान ऐसे संगठनों को दिया जाता है जिनके पास उचित रूप से गठित प्रबंध निकाय है, जो भारत में पंजीकृत है; इसके संचालन में राष्ट्रीय उपस्थिति के साथ अखिल भारतीय चरित्र होना; पर्याप्त कार्य शक्ति; और पिछले 5 वर्षों में से 3 वर्षों के दौरान सांस्कृतिक गतिविधियों पर 1 करोड़ रुपये या उससे अधिक खर्च किये हैं। इस योजना के अंतर्गत अनुदान की मात्रा 1.00 करोड़ रुपये है जिसे असाधारण मामलों में 5.00 करोड़ रुपये तक बढ़ाया जा सकता है।

2) सांस्कृतिक समारोह एवंउत्पादन अनुदान इसयोजना घटक का उद्देश्य संगोष्ठी, सम्मेलन अनुसंधान कार्यशालाओं त्यौहारों प्रदर्शनियों, संगोष्ठियों, नृत्य, नाटक थिएटर, संगीत आदि के उत्पादन के लिए गैर सरकारी संगठनों सोसाइटियों/ट्रस्टों/विश्वविद्यालयों आदि को वित्तीय सहायता प्रदान करना है। इस योजना के अंतर्गत एक संगठन के लिए अनुदान बढ़ाकर 5 लाख रुपये किया जा सकता है। असाधारण मामलों में 20.00 लाख रुपये हो सकता है।
3) हिमालय की सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण और विकास के लिए वित्तीय सहायताइस योजना घटक का उद्देश्य ऑडियो विजुअल कार्यक्रमों के माध्यम से अनुसंधान प्रशिक्षण और प्रसार के माध्यम से हिमालय की सांस्कृतिक विरासत को बढ़ावा देना और संरक्षित करना है। हिमालय क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले राज्यों यानी जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश में संगठनों को वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।

4) बौद्ध, तिब्बती संगठन के संरक्षण एवं विकास के लिए वित्तीय सहायता इस योजना के अंतर्गत बौद्ध/तिब्बती सांस्कृतिक और परंपरा के प्रचार-प्रसार और वैज्ञानिक विकास और संबंधित क्षेत्रों में अनुसंधान में लगे मठों सहित स्वैच्छिक बौद्ध/तिब्बती संगठनों को वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। योजना घटक के अंतर्गत वित्त पोषण की मात्रा एक संगठन के लिए प्रति वर्ष 30.00 लाख है, जिसे असाधारण मामलों में 1.00 करोड़ तक बढ़ाया जा सकता है।
5) स्टूडियो थिएटर सहित भवन निर्माण अनुदान के लिए वित्तीय सहायता। इस योजना घटक का उद्देश्य एनजीओ, ट्रस्ट, सोसायटी, सरकार को वित्तीय सहायता प्रदान करना है। इस योजना घटक के तहत सांस्कृतिक बुनियादी ढांचे (यानी स्टूडियो थिएटर, ऑडिटोरियम, रिहर्सल हॉल, कक्षा आदि) के निर्माण और बिजली, एयर कंडीशनिंग, ध्वनिकी, प्रकाश और ध्वनि प्रणाली आदि जैसी सुविधाओं के प्रावधान के लिए प्रायोजित निकाय, विश्वविद्यालय, कॉलेज आदि। अनुदान की अधिकतम राशि मेट्रो शहरों में 50 लाख रुपये तक और गैर-मेट्रो शहरों में 25 लाख रुपये तक है।

6) संबद्ध सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए वित्तीय सहायताइस योजना घटक का उद्देश्य नियमित आधार पर और खुले/बंद क्षेत्रों/स्थानों में त्योहारों के दौरान सजीव प्रदर्शन का प्रत्यक्ष अनुभव देने के लिए संबद्ध सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए ऑडियो-विज़ुअल तमाशा को बढ़ाने के लिए संपत्ति के निर्माण के लिए सभी पात्र संगठनों को वित्तीय सहायता प्रदान करना है।
7) अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की सुरक्षा के लिए योजना : यह योजना 2013 में संस्कृति मंत्रालय द्वारा देश की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत और विविध सांस्कृतिक परंपराओं की सुरक्षा के लिए विभिन्न संस्थानों, समूहों, गैर सरकारी संगठनों आदि को पुनर्जीवित करने और पुनर्जीवित करने के उद्देश्य से शुरू की गई थी ताकि वे गतिविधियों/परियोजनाओं में संलग्न हो सकें। भारत की समृद्ध अमूर्त सांस्कृतिक विरासत को मजबूत करना, सुरक्षा करना, संरक्षित करना और बढ़ावा देना।
यह जानकारी केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री श्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने आज राज्य सभा में एक लिखित उत्तर में दी।

साथियों बात अगर हम केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय द्वारा भारतीय संस्कृति और विरासत के जनजागरण अभियान के तहत योजनाओं की करें तो संयह निरंतर प्रयास रहा है कि देश के युवाओं सहित समाज के सभी वर्गों में भारतीय संस्कृति और विरासत के बारे में जागरूकता फैलाई जाए। तदनुसार, मंत्रालय युवाओं के लिए योजनाएं संचालित करता है जैसे कि विभिन्न सांस्कृतिक क्षेत्रों में युवा कलाकारों को छात्रवृत्ति और संस्कृति के क्षेत्र में उत्कृष्ट व्यक्तियों को फेलोशिप प्रदान करना, जिनका विवरण इस प्रकार है-
1) विभिन्न सांस्कृतिक क्षेत्रों में युवा कलाकारों के लिए छात्रवृत्ति योजना : एक बैच वर्ष में 400 तक छात्रवृत्तियां प्रदान की जाती हैं। इस योजना के तहत, 18-25 वर्ष की आयु के उत्कृष्ट प्रतिभावान युवा कलाकारों को भारतीय शास्त्रीय संगीत, भारतीय शास्त्रीय नृत्य, रंगमंच, मूकाभिनय, दृश्य कला, लोक, पारंपरिक और स्वदेशी कला और सुगम शास्त्रीय संगीत आदि के क्षेत्र में भारत में उन्नत प्रशिक्षण के लिए 5,000/- रुपये प्रति माह की दर से 2 वर्षों के लिए वित्तीय सहायता दी जाती है। छात्रवृत्ति की धनराशि चार बराबर छह मासिक किश्तों में जारी की जाती है।

2) क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्र स्थापित किए हैं। ये जेडसीसी पूरे वर्ष देश भर में नियमित आधार पर विभिन्न सांस्कृतिक गतिविधियों और कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं, जिसके लिए उन्हें वार्षिक अनुदान सहायता प्रदान की जाती है। इन सांस्कृतिक कार्यक्रमों गतिविधियों में अपनी प्रतिभा दिखाने के लिए कलाकारों को जेडसीसी द्वारा लगाया जाता है, वर्ष 2015 से अब तक संस्कृति मंत्रालय द्वारा देश भर में चौदह क्षेत्रीय उत्सव तथा चार क्षेत्रीय उत्सव आयोजित किए जा चुके हैं। ये क्षेत्रीय उत्सव कला एवं संस्कृति के विकास के लिए हर वर्ष कम से कम 42 क्षेत्रीय उत्सव भी आयोजित करते हैं।संस्कृति मंत्रालय शिक्षा मंत्रालय सहित भारत सरकार के सभी मंत्रालयों/ विभागों को उनकी विभिन्न पहलों/ कार्यक्रमों के लिए नियमित रूप से सांस्कृतिक सहायता प्रदान करता है। इसलिए, संस्कृति मंत्रालय द्वारा शिक्षा मंत्रालय के सहयोग से स्कूली पाठ्यक्रम में हमारी समृद्ध संस्कृति एवं विरासत के अध्यायों को शामिल करने के लिए कोई अलग कदम नहीं उठाया गया है।

केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री ने आज राज्यसभा में एक लिखित उत्तर में यह जानकारी दी। देश में प्रचीन संस्मारक तथा पुरातत्वीय स्थल और अवेश अधिनियम 1958 के तहत राष्ट्रीयमहत्व के रूप में घोषित 3697 प्राचीन स्मारक तथा पुरातत्वीय स्थल हैं। स्मारकों की राज्य-वार संख्या तथा पिछले पांच वर्षों के दौरान इनस्मारकों और स्थलों के संरक्षण परिरक्षण तथा रख-कखाव पर किया गया व्य अनुबंध में दिया गया है।संरक्षित स्मारकों और क्षेत्रों का संरक्षण, परिरक्षण तथा अनुरक्षण कार्य एक सतत प्रक्रिया है जिसे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा आवश्यकता और प्राथमिकता के अनुसार किया जाता है और तदनानुसार इसके लिए निश्चित निधियां आवंटित की जाती हैं।सुरक्षा और संरक्षण तथा पर्यटक सुविधाएं/अवसंचरना उपलब्ध कराने की दृष्टि से स्मारकों की पहचान करना एक नियमित प्रक्रिया है। तमिलनाडु के स्मारकों के लिए निर्गत आवंटन निम्नानुसार है। यह जानकारी केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री श्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने आज राज्य सभा में एक लिखित उत्तर में दी।

साथियों बात अगर हम राष्ट्रीय संस्कृति कोष की करें तो, सरकार ने राष्ट्रीय संस्कृति निधि की स्थापन भारत की सांस्कृतिक विरासत के संवर्धन, संरक्षण और परिरक्षण के लिए सार्वजनिक निजी भागीदारियों (पीपीपी) के माध्यम से अतिरिक्त संसाधन जुटाने के उद्देश्य से पूर्त विन्यास अधिनियम 1980 के अंतर्गत 28 नवंबर 1996 को एक न्यास के रुप में की थी। राष्ट्रीय संस्कृति निधि हेतु अशंदान आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 80 जी (ii) के अंतर्गत कर में 100 फीसदी छूट के लिए पात्र हैं।

साथियों बात अगर हम राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन की करें तो इसके मुख्य उद्देश्य भारत की पांडुलिपि विरासत का दस्तावेजीकरण, संरक्षण, डिजिटली करण और ऑनलाइन प्रसार करना है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, मिशन ने पूरे भारत में 100 से अधिक पांडुलिपि संसाधन केन्‍द्र और पांडुलिपि संरक्षण केन्‍द्र स्थापित किए हैं। यह जानकारी केन्‍द्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री ने आज राज्यसभा में एक लिखित उत्तर में दी।

एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी : संकलनकर्ता, लेखक, कवि, स्तंभकार, चिंतक, कानून लेखक, कर विशेषज्ञ

अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि आधुनिक विकास की आंधी में भारतीय संस्कृति,सभ्यता विरासत पुरातत्व पांडुलिपि को बचाना अत्यंत ज़रूरी। भारतीय विज़न 2047 के विकास पथ में विकास के साथ संस्कृति व विरासत पर ज़ोर देना समय की मांग। युवाओं को भारतीय संस्कृति,सभ्यता विरासत पांडुलिपि कला, प्रथाओं धरोहर स्मारक के प्रति जागरूकता फैलाना अत्यंत जरूरी है।

(स्पष्टीकरण : इस आलेख में दिए गए विचार लेखक के हैं और इसे ज्यों का त्यों प्रस्तुत किया गया है।)

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