आशा विनय सिंह बैस, नई दिल्ली। तेजपुर वैसे तो बहुत अच्छी जगह है। सूरज देवता भारतवर्ष के इसी क्षेत्र से सबसे पहले अपनी यात्रा शुरू करते हैं। सुबह उठकर हिमालय की तरफ देखिए तो सफेद चांदी दूर-दूर तक बिखरी नजर आती है। चारों तरफ हरियाली ही हरियाली है और प्रदूषण का नामोनिशान तक नहीं है। शहर जैसी कोई भीड़-भाड़, ट्रैफिक, चिल्ल-पों नहीं है। महिलाएं और युवतियां सुंदर होती हैं। युवक गोरे चिट्टे और पुरुष बुढ़ापे तक युवा से दिखते हैं।
इन सब खूबियों के कारण तेजपुर घूमने के लिए बहुत अच्छी जगह है। लेकिन रहने के लिए उतनी ही बेकार। क्योंकि तेजपुर के लिए परिवहन के साधन सुलभ नहीं है। गुवाहाटी से तेजपुर जाना एक छोटी मोटी जंग जीतने के बराबर है। बड़े बच्चों के पढ़ने के लिए उपयुक्त शिक्षण संस्थान नहीं है। भूजल हल्का पीला, तेल जैसा है। हाथी, बंदर, सांपों का भयंकर आतंक है। भूकंप कभी भी आकर जमीन से लेकर छत तक हिला डुला देता है। ह्यूमिडिटी बहुत अधिक है इसलिए पसीने वाली चिपचिपी गर्मी पड़ती है। खाने-पीने का ज्यादातर सामान मैदानी क्षेत्रों से आता है। इसलिए सब्जी, फल, अनाज, ड्राई फ्रूट सभी महंगे मिलते हैं।
गुवाहाटी से चलने वाली सभी अच्छी रेलगाड़ियां सुबह ही चलती हैं। अतः घर वापस आने के लिए शाम को ही तेजपुर से निकलना पड़ता है और फिर पूरी रात जगकर अगली सुबह ट्रेन पकड़नी होती है। वायुसेना स्टेशन गेट के बाहर निकलते ही सुनसान एरिया शुरू हो जाता है। हमारे समय उल्फा और अन्य चरमपंथियों का भी आतंक था। शायद इन्हीं सब कारणों से जब किसी वायुसैनिक की पोस्टिंग तेजपुर से मैदानी क्षेत्रों में आती थी तो वह अपने सभी जानने वालों को हालेश्वर मंदिर में खिचड़ी खिलाया करते थे और भगवान से प्रार्थना करते थे कि – “हे भोलेनाथ, अब दोबारा इस क्षेत्र में नहीं भेजना।”
‘सिटी ऑफ जॉय’ (कोलकाता) जैसे बड़े, सस्ते और भारत के हर हिस्से से जुड़े हुए शहर से जब मेरी पोस्टिंग तेजपुर आई तो मेरा दिल एक बार के लिए तो बैठ ही गया। ऐसा लगा कि मेरे शरीर में हीमोग्लोबिन अचानक कम हो गया है और मुझे चक्कर आने जैसा महसूस हो रहा है।
फौज की खास बात यह है आपको कोई भी सही या गलत काम दे दिया जाए। कहीं भी पोस्टिंग, टीडी भेज दिया जाए। आप सिविल की तरह धरने पर नहीं बैठ सकते। कोई विक्टिम कार्ड नहीं खेल सकते। इसलिए मेरे पास तेजपुर जाने के सिवाय और कोई रास्ता नहीं था। कई लोगों ने मुझे सहानुभूति दी कि यह चार साल भी ‘कट’ जाएंगे। कुछ तो इतने दुखी होकर मिले गोया कि -“अब जो होना था, वह तो हो चुका।”
जब मन कुछ शांत हुआ तो मैंने यह सोचा कि फैमिली को यहीं बैरकपुर में रख दूंगा। अकेले तेजपुर में 4 साल रह लूंगा। फिर सोचा कि एक बार अकेले जाकर देख आता हूं, अगर माहौल ठीक रहा तो फैमिली लेकर जाऊंगा। इसी उधेड़बुन में था कि मुझे याद आया कि तेजपुर में मेरे मित्र आशीष सिंह की पोस्टिंग है। वह मेरे साथ हैदराबाद में थे और उनके साथ मेरे पारिवारिक संबंध हैं। उनसे बात करना ठीक रहेगा।
उसी शाम मैंने आशीष को बताता कि मेरी पोस्टिंग तेजपुर आ गई है। सोच रहा हूं एक बार अकेले आ कर देख लूं। अगर ठीक रहेगा तो फैमिली ले आऊंगा। आशीष छूटते ही बोले- “सर मेरे रहते आपको कोई भी चिंता करने की जरूरत नहीं है। आप फैमिली लेकर आइए। सब व्यवस्था हो जाएगी।” आशीष ने यह बात पूरे विश्वास और अधिकार से कही थी। आशीष ने मुझे यह भी बता दिया था कि शेष भारत का सिम यहां पर कार्य नहीं करता है। अतः सभी जरूरी नंबर डायरी में नोट कर लेना और इमरजेंसी में किसी पीसीओ बूथ से फोन कर लेना। दूसरी बात यह है कि ऐसी ट्रेन से गुवाहाटी आना की वह शनिवार रात या रविवार सुबह को गुवाहाटी पहुंचे। ताकि गुवाहाटी स्टेशन के बाहर से तेजपुर वायुसेना स्टेशन के लिए जाने वाली बस मिल सके।
आशीष की बताई हुई सारी बातों का ध्यान रखते हुए मैं रविवार सुबह गुवाहाटी पहुंच गया। अब विडंबना देखिए कि वहां पर मेरे पास फोन था, फोन में पैसे भी थे और बैटरी भी फुल थी। लेकिन उससे मैं किसी को कॉल नहीं कर सकता था। अतः एक पीसीओ से कॉल करके आशीष को बताया कि मैं गुवाहाटी पहुंच गया हूं। आशीष बोले कि सर स्टेशन के बाहर ही तेजपुर की बस खड़ी है। आशीष के कहे अनुसार मैं उस बस में बैठ गया और करीब 3 घंटे की यात्रा के बाद जब मिशन चराली पहुंचा तो ड्राइवर के पास फोन आया कि आपकी गाड़ी में वीके सिंह सर बैठे हैं, उनको आप सीधे मेरे घर ले आइएगा। कहीं और छोड़ने की जरूरत नहीं है। ड्राइवर आशीष का दोस्त था। सभी सवारियों को छोड़ने के बाद वह गाड़ी लेकर सीधा आशीष के सरकारी आवास पहुंच गया। उस समय जनवरी का महीना था और भयंकर ठंड पड़ रही थी। आशीष ने चाय, पानी, मिठाई आदि से हम लोगों का भरपूर स्वागत किया।
थोड़ा आराम करने के बाद बाद मैंने आशीष से कहा कि जब तक मुझे सरकारी आवास नहीं मिल जाता तब तक के लिए रहने की व्यवस्था कहीं कर दो। मैंने सुना है कि यहां पर एक गेस्ट रूम भी है। उसमें मेरे लिए एक रूम बुक कर दो। इस पर आशीष लगभग गुस्सा होते हुए बोले-” सर जब तक मैं हूं तब तक आपको कहीं और जाने की जरूरत नहीं है। आपको जब तक अच्छा सरकारी आवास नहीं मिलता, तब तक आप मेरे घर में ही रहेंगे।” मैं चुप हो गया।
जैसा कि सभी वायुसैनिकों के साथ होता है आशीष के पास भी एक ही बेड था। रात में हम सभी के लिए बेड पर सोने की व्यवस्था करके वह खुद जनवरी की कड़ाके की ठंड में सपरिवार जमीन पर बिस्तर बिछा कर सोने लगे। मुझसे यह देखा नहीं गया। लेकिन आशीष की जिद के कारण मुझे ऐसा करना पड़ा।
दूसरे दिन सोमवार को मैंने ऑर्डरली रूम में रिपोर्ट किया तो उन्होंने बताया कि कई आवास खाली हैं लेकिन पुराने क्वार्टर में। नया क्वार्टर चाहिए तो आठ-दस दिन का इंतजार करना पड़ेगा। मैंने कहा कि आप मुझे कोई भी आवास दे दो। मैं रह लूंगा। इस पर क्लर्क बोला – ” सर, ए के सिंह सर (आशीष) ने मना किया है। वह बोल के गए हैं कि जब नए क्वार्टर में फर्स्ट फ्लोर मिले तभी देना।”
बताते चलूं कि तेजपुर में ग्राउंड फ्लोर में कीड़े मकोड़ों, सांपों और सीलन की दिक्कत रहती है। टॉप फ्लोर में सीमेंट वाली छत नहीं होती है। इसलिए बारिश और धूप दोनों में ही समस्या होती है। ऊपर चढ़ने-उतरने में जो दिक्कत होती है सो अलग।
यह बात आशीष से बताई तो वह बोले कि सर मुझे सब पता है। मुझे सारी जानकारी रहती है। आपको सबसे अच्छा और नया क्वार्टर मिलेगा, आप इंतजार करिए।
“लेकिन तुम सपरिवार जमीन पर सोते हो यह मुझे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता।” मैंने कहा।
आशीष बोले -“सर जब मुझे दिक्कत नहीं है तो आप क्यों दिल पर लोड ले रहे हैं। आज चलो स्टेशन मंदिर घूम आते हैं। बहुत बढ़िया और सात्विक स्थान है, मन शांत हो जाएगा। ”
आशीष ने बात बदल दी।
अगले दस दिन तक आशीष जमीन पर सपरिवार सोते रहे। हमारे लिए खुशी-खुशी खाने पीने, चाय नाश्ते की व्यवस्था भी करते रहे। जब मुझे नए क्वार्टर में फर्स्ट फ्लोर मिला तभी मुझे वहां से जाने दिया।
पता नहीं कौन से लोग कहते हैं कि- “वायु सैनिकों की दोस्ती सिर्फ गार्डरूम तक होती है।”
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