वर्ल्ड सॉइल डे के उपलक्ष में IRES ने मनाया 262वां आयुष समृद्धि इंटरनेशनल वेबिनार

आज का विषय था : आयुष सॉइल एंड मिनरल्स
कोलकाता : झंडू, इमामी, विश्व आयुर्वेद परिषद् IIIRES, एमपी मेड फार्मा एवं पूरी IRES टीम के सहयोग से कार्यक्रम सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। उद्घाटन वक्ता डॉ. आर.वी. कारंथ (वड़ोदरा) भूतपूर्व प्रो. डिपार्टमेंट ऑफ़ जियोलॉजी, विजिटिंग प्रो. IIT मुंबई, अर्थ साइंस डिपार्टमेंट, वरिष्ठ साइंटिस्ट ने रसशास्त्र में खनिज से अपनी बाते शुरू की। उन्होंने डॉक्टर्स और दर्शको को संबोधित किया। मेटल मिनरल्स की पैक्ड दवाई की तरह नष्ट होने की तारीख नहीं होती है। खनिज जो खानों से मिलते हैं वह बहुत ही उपयोगी होते हैं। आयुर्वेद में ये उपरस शोधन करके रसशास्त्र की दवाई बनाई जाती है। उन्होंने अपने प्रेजेंटेशन में कुछ फोटो भी दिखाया। मिट्टी में यह खनिज अलग-अलग आकार और डिजाइन में मिलते हैं। उन्हें केमिस्ट्री लैब में विभिन्न टेस्ट द्वारा पहचान किया जाता है। सोना, चांदी, हीरा ये सभी टेस्ट द्वारा पाए जाते हैं। लेकिन दूसरे मिनरल्स मिक्स कॉम्बिनेशन जैसे सल्फिटस, क्लोरिड, ऑक्साइड, फोसफेट इत्यादि रूप में मिलते हैं। साथ ही उन्होंने बहुत सारी उपयोगी बातें बताइ।

दूसरे वक्ता डॉ. विनीश कुमार गुप्ता देहरादून से थे। प्रो. डिपार्टमेंट ऑफ़ रोग निदान, हिमालयी यूनिवर्सिटी, उत्तराखंड और वाईस प्रेजिडेंट विश्व आयुर्वेद परिषद् उत्तरखंड ने कहा कि, यथा ब्रह्माण्डे तथा पिण्डे। हमारे आचार्य चरक और आचार्य सुश्रुत ने मिट्टी से संबंधित बहुत सारी बातें शास्त्रों में लिखी है, जैसे जंगल, भूमि अनूप होते हैं। दोष, वात, पित्त और कफ की प्रधानता के हिसाब से भी बताया है। वैसे पंच-महाभूतों की अधिकता से भी देखा जाये अगर पार्थिव भूमि, जिसमे पृथ्वी महाभूत अधिक हो, वो श्यामवर्ण, बड़े पत्थर वाली और जलीय भूमि, जल महाभूत अधिकता मृदु चिकनी होगी। उसमे वृक्ष कोमल होंगे और आग्नेय भूमि, पाण्डु वर्ण की होगी जिसमे छोटे छोटे पत्थर होंगे, वायु भूमि, भस्म वर्ण की रूखी सूखी होगी और इसमें वृक्ष पतले और लम्बे होंगे, इसी तरह से आकाशीय भूमि में बड़े बड़े गढ्ढे और श्याम वर्ण की होगी। सूत्र स्थान में रसभेद से भी भूमि का उल्लेख किया गया है।

छः रस! चिकित्सक वैद्य के लिए यह महत्वपूर्ण है कि सही औषध सही भूमि से ले। श्मशान या खंडहर वाली जगह के आसपास की भूमि के औषधि पौधों का गुण अच्छा नहीं होता उन्हें इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। उन्होंने भूमि परीक्षा की बात पर बताया कि रोग की प्रधानता भी भूमि से जान सकते हैं। क्योंकि हमारे आहार-विहार भूमि, देश के हिसाब से होते हैं। आचार्य वाग्भट्ट ने कहा है कि मूल प्रकृति जन्म के समय मिलती है और दोषज प्रकृति दर्शन स्पर्सन जैसे की नाड़ी परीक्षा से बताई जाती है। वैसे ही रोगी के देश की परीक्षा से भी पता करते हैं, उदाहरण के तौर पर जैसे उत्तराखंड अनूप देश है, इसमें पहाड़ी नाड़ी हैं, वह कफ के रोग का प्रधान होता है जैसे आमवात, सर्दी-खासी और अगर ये रोगी सुखी जगह जैसे की राजस्थान, गुजरात जाये तो व्याधि बल कम होने से थोड़ा आराम मिलेगा।

वैसे ही अश्मरी के रोगी भी ज्यादा दिखते हैं, और चिकित्सा की दृष्टि से वहां उसी भूमि पर उसकी औषधि भी मिलती है। उत्तराखंड में कुल्थी बहुत परिमाण में पाए जाते हैं, वहां पुराने लोग इसे दाल के रूप में लेते हैं। यहाँ का पानी हार्ड वाटर और कैल्शियम ज्यादा होने से रीनल स्टोन्स या पथरी शरीर में होती है। कुल्थी इत्यादि प्रकृति ने ठीक करने के लिए पहले से तैयार की हुई है! ठीक उसी प्रकार से रस औषधि मेटल मिनरल्स धरती में पाए जाते हैं। आयुर्वेदीय रसशास्त्र से उनका शोधन मरण करके शरीर के लिए सात्म्य किया जाता है। उन्होंने और भी बहुत सारे आर्युवेद शास्त्रों का औषधि गुण वनस्पति भूमि के हिसाब से उल्लेख किया।

अगले वक्ता डॉ. दिलीप कुमार जानी, द्रव्यगुण डिपार्टमेंट, गवर्नमेंट आयुर्वेद कॉलेज, वड़ोदरा से जुड़े। उन्होंने आयुर्वेद हर्बल मेडिसिन इंडस्ट्री का उल्लेख किया। उन्होंने बताया कि मेटाबोलिक डिसऑर्डर बढ़ रहे हैं और लोग अब कन्वेंशनल मेडिसिन से अल्टरनेटिव या हर्बल मेडिसिन की ओर आ रहे हैं। आयुर्वेद का बूम चल रहा है। नया मॉलिक्यूल केमिकल वालो को नहीं मिल रहा है इसलिए नेचुरल की ओर आ रहे हैं। उन्होंने बहुत सारे वृक्षों और फलों का भी उल्लेख किया।

आखिरी वक्ता डॉ. विष्णु प्रसाद शर्मा (गौहाटी) और प्रो. वी.के. अग्निहोत्री ने समापन वक्तव्य दिया। उन्होंने कहा कि बीज क्षेत्र ही गुण क्षेत्र है। सीड-सॉइल कांसेप्ट स्वस्थ के हिसाब से भूमि सही होनी जरूरी है। आज वर्ल्ड सॉइल डे बहुत ही अनोखे ढंग से वेबीनार से जुड़े सभी लोगों के सहयोग से मनाया गया।

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