बच्चों को समाज मे घट रही श्रद्धा जैसी घटनाओ से अवगत कराएं!

डॉ. विक्रम चौरसिया, नई दिल्ली । आप भी अपने बच्चों को खूब जरुर पढ़ाएं, आजादी भी दें, मगर इतनी भी नहीं कि वो जंगलों में टुकड़े टुकड़े होकर मिले, संस्कारविहिन हो जाए। आपकी हमारी सतर्कता ही हमारे बहन बेटियों का बचाव है अन्यथा ये एक ऐसी उम्र होती ही है जो कि अक्सर बहक जाते ही है। आखिर ये बढ़ती अश्लीलता, प्यार के नाम पर धोखे का जिम्मेदार कौन है? याद कीजिए एक 8 साल के बच्चे ने राजा हरिश्चंद्र फिल्म देखा, फिल्म से प्रेरित होकर उसने सत्य का मार्ग चुना वो बड़ा होकर महान व्यक्तित्व के रूप में जाना गया। लेकिन आज 8 साल के बच्चें टीवी पर क्या देखता है? यह किसी से आज छुपा हुआ नही है। ये मन मस्तिष्क पर बचपन से ही बच्चों के संस्कार को धूमिल करते जा रहे हैं।

हम श्रद्धा कांड में देख रहे है की टुकड़े-टुकड़े करके जंगलों में हैवान फेेंकता रहा। ऐसे ही अन्य हिस्सों से भी अक्सर खबरे आती ही रहती है। इससे हमे अब सीखते हुए सतर्क होने की जरूरत है। इसीलिए आप भी एक बार अपने काम, नौकरी, व्यापार धंधे से फुर्सत लेकर कभी-कभी देख लिजिए कि आपकी बेटी या बेटा कोचिंग ही जा रहे है न! स्नेप चैट का इस्तेमाल कर रहे हो तो चैट डिलीट का आप्शन तो नहीं है। घंटों अपने कमरे में या अपने दोस्तों के साथ तो समय नहीं बिता रहे है। प्रोजेक्ट है, प्रोजेक्ट है कहकर दोस्तों के घर बार-बार तो नहीं जा रहे हैं। अगर आपकी बेटी या बेटे का स्कूल आपसे सच्चाई कहे तो स्कूल की बात गंभीरतापूर्वक सुनें न कि गुस्सा हों।

कपड़ों की पहनावा मर्यादा मे तो हैं ना! देर रात तक फोन का इस्तेमाल तो नही किया जा रहा है ना। अगर बेटी या बेटा कही बाहर हॉस्टल मे रहते है तो बिना बताए अचानक कभी-कभार मिलने पहुच ही जाए। बेटी या बेटे के दोस्तों से उनके बारे मे फीडबैक लेते रहें। शापिंग के लिए भले ही सहेलिया साथ मे जा रही हो लेकिन परिवार का कोई न कोई सदस्य भी संभव हो तो साथ मे जाए। एक्स्ट्रा क्लास के नाम पर विशेष सतर्क रहें। बच्चे के दोस्त और सहेलिया कौन है, उनका व्यवहार चरित्र और चाल चलन कैसा है इसपर विशेष नजर रखें। घर के सभी तीज त्यौहारो पूजा-पाठ, धार्मिक कार्यो मे इन्हें शामिल करें। समाज मे घट रही श्रद्धा जैसी घटनाओं से उन्हे अवगत कराएं।

आज देखे तो भारतीय समाज बुरी तरह से पश्चिमी संस्कृति से प्रभावित हो चुका है। इतना ज्यादा कि कई बार कॉपी करने के मामले में पश्चिमी लोगों को भी भारतीय समाज पीछे छोड़ दे रहा है। वही अक्सर भारतीय माता-पिता ‘कूल’ बनने की कोशिश में लगे रहते हैं। वही देखे तो बड़े शहरों में माता-पिता, बच्चों को आधुनिक बनाने के चक्कर में, पश्चिमी संस्कृति सिखाने के चक्कर में उन्हें अपनी जड़ों से दूर कर दे रहे हैं। उन्हें अपनी संस्कृति के बारे में, अपने धर्म के बारे में, अपनी जड़ों के बारे में कुछ बताते ही नहीं है जिसका प्रतिफल आज देखने को मिल रहा है।

आप सभी से विनम्र निवेदन है कि आप अपने बच्चों के लिए समय जरुर निकाले उन्हें ये भी बोलते रहे हैं की हर एक नारी मां का ही स्वरूप होती है जो 9 माह कोख में रखकर हमे जन्म देती है। चाहे उनसे हमारा कोई भी रिश्ता हो कभी वह मां, बहन, दादी मां, पत्नी, दोस्त और भी ना जाने कितने रिश्ते में समेटकर हमे इस धरा पर संवार कर मजबूत करती हैं। याद रहे संस्कार, सतर्कता व जागरूकता ही समाज में ऐसी घटनाओं को रोक सकती है।

डॉ. विक्रम चौरसिया

चिंतक/आईएएस मेंटर/पत्रकार/दिल्ली विश्वविद्यालय/इंटरनेशनल यूनिसेफ काउंसिल दिल्ली डॉयरेक्टर

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

5 − three =