भारत के वैश्विक नेतृत्व की ओर बढ़ते कदम…अधिकृत यूक्रेन दौरा- पूरी दुनियां की निगाहें लगी

भारत की यूक्रेन यात्रा से दुनियां को शांतिदूत का आभास होना, भारतीयों के लिए गौरवान्वित होने का पल
पूरी दुनियां की राजनीति व अर्थव्यवस्था को हिला देने वाले रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच भारतीय यूक्रेन यात्रा कूटनीति नहीं बल्कि नए साहसी व सक्रिय विदेश नीति के युगों की शुरुआत- एड. के.एस. भावनानी

एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र। वैश्विक स्तर पर भारत की हर गतिविधि पर पूरी दुनियां की नजरें एकटक लगी रहती है या अगर यूं कहें कि भारत ने अगर एक छोटी सी सुई भी बनाया, तो दुनियां में इसके बड़े मायने निकाले जाते हैं कि जरूर इसका दूरगामी बहुत बड़ा परिणाम होगा, क्योंकि उससे भारत के विजन 2047 से हर उस आयाम को जोड़ा जाता है। भारतीय पीएम की हर विदेश यात्राओं के दूरगामी सफल प्रबल सकारात्मक परिणाम में देखा जाता है, उसी कड़ी में माननीय पीएम की 21-22 अगस्त 2024 को 45 वर्षों के बाद पोलैंड यात्रा व भारतीय इतिहास में पहली बार किसी प्रधानमंत्री की 23 अगस्त 2024 को यूक्रेन यात्रा से पश्चिमी देशों सहित पूरी दुनियां की नजरें लगी हुई है। पोलैंड में भारत के अभूतपूर्व सफल दौरे व अभूतपूर्व आयामों को दुनियां ने देखा। अब नजरें 23 अगस्त 2024 को यूक्रेन युद्ध पर लगी हुई है। सबसे बड़ी बात इस यूक्रेन रूस भयानक युद्ध के बारे में भारतीय पीएम की पोलैंड से कीव की 10 घंटे की यात्रा रेल फोर्स वन, ट्रेन से होगी जो अपने आप में बहुत बड़ी बात है।

हालांकि भारतीय पीएम यूक्रेन के नेशनल फ्लैग डे पर कीव यूक्रेन के राष्ट्रपति के अधिकृत निमंत्रण पर जा रहे हैं, परंतु इसमें कयास 8-9 जुलाई 2024 के मास्को रूस दौरे से लगाए जा रहे हैं, जो संभवतः पश्चिमी देशों और यूक्रेन को नागवार गुजरा था और अब 23 अगस्त को यूक्रेन दौरा इसी कड़ी में कहीं शांतिदूत की भूमिका तो नहीं, क्योंकि पिछले ढाई वर्षो से शुरू रूस यूक्रेन युद्ध में दुनियां के कई देशों की राजनीति और अर्थव्यवस्थाओं को हिला दिया है, इसे पूरी दुनियां जानती है। अकेला यूक्रेन इतनी लंबी लड़ाई नहीं लड़ सकता, पूरे पश्चिमी देश उसके साथ खड़े है।

वहीं चीन सहित कुछ देश रूस के साथ खड़े हैं, व कुछ देश न्यूट्रल है, भारत भी उन्हीं न्यूट्रल देशों की कड़ी में से एक है, परंतु भारत इतनी अहमियत व रुतबा रखता है कि रूस यूक्रेन युद्ध में शांतिदूत बनकर अहम कड़ी निभा सकता है, उसे शायद पश्चिमी देशों को अखर सकता है। मेरा ऐसा मानना है कि इस पूरे प्रकरण में रूस की हरी झंडी जरूर होगी। चुंकि यही कदम भारत के वैश्विक नेतृत्व की ओर बढ़ता कदम होगा, क्योंकि भारत की यूक्रेन यात्रा से पूरी दुनियां को शांतिदूत का आभास होना भारतीयों के लिए गौरवान्वित होने का पल होगा। इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आलेख के माध्यम से चर्चा करेंगे, भारत के वैश्विक नेतृत्व की ओर बढ़ते कदम…अधिकृत यूक्रेन दौरा, पूरी दुनियां की एकटक निगाहें लगी हुई हैं।

साथियों बात अगर हम भारतीय पीएम की यूक्रेन के नेशनल फ्लैग डे पर कीव यूक्रेन अधिकृत यात्रा की करें तो, राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की के निमंत्रण पर यूक्रेन की यात्रा पर जा रहे हैं। कीव में दोनों नेता पहली बार आधिकारिक तौर पर मिलेंगे। इससे पहले वे किसी तीसरे देश में ही मिलते रहे हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच पीएम की इस यात्रा को काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। सबसे पहले वो पोलैंड गए थे। वो 23 अगस्त को वार्सा से ट्रेन यात्रा कर यूक्रेन की राजधानी कीव पहुंचेंगे, उनका कीव में करीब सात घंटे रहने का कार्यक्रम है। साल 1992 में दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंध स्थापित होने के बाद यह किसी भारतीय पीएम की पहली यूक्रेन यात्रा होगी इस दौरान राजनीतिक, व्यापार, आर्थिक, निवेश, शिक्षा सांस्कृतिक मानवीय सहायता और द्विपक्षीय संबंधों समेत कई मुद्दों पर बातचीत होने की संभावना है। इससे पहले पीएम जुलाई के दूसरे हफ्ते में रूस की यात्रा पर गए थे। पीएम यूक्रेन के नेशनल फ्लैग डे पर कीव की यात्रा कर रहे हैं। वो पोलैंड से कीव की यात्रा रेल फोर्स वन ट्रेन से करेंगे। यह यात्रा करीब 10 घंटे की होगी। वो कीव में करीब सात घंटे रहेंगे। उनकी कीव से वार्सा वापसी भी इसी ट्रेन से होगी। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन समेत दुनियां के कई नेताओं ने यूक्रेन की सीमा के पास स्थित पोलैंड के रेलवे स्टेशन से ट्रेन के जरिए कीव की यात्रा की है।

साथियों बात अगर हम भारत की यूक्रेन यात्रा को शांतिदूत के रूप में देखने की करें तो, यूक्रेन यात्रा से कई लोगों को इस बात की उम्मीद है कि इससे रूस-यूक्रेन युद्ध खत्म हो सकता है? लेकिन यह तभी संभव है, जब दोनों देश भारत से मध्यस्थता की अपील करें। लेकिन दोनों में से किसी भी देश ने अभी तक इसको लेकर कोई अपील नहीं की है। इस युद्ध में सबसे बड़ी भूमिका अमेरिका की है इसलिए युद्ध खत्म कराने में उसकी बड़ी भूमिका हो सकती है, लेकिन अमेरिका की मौजूदा प्रशासन अभी इस दिशा में कोई पहल करता हुआ नहीं दिख रहा है। नवंबर में होने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के बाद इस दिशा में कोई पहल हो सकती है। पीएम की आगामी यूक्रेन यात्रा एक महत्वपूर्ण मोड़ पर हो रही है। ये दौरा केवल एक साधारण कूटनीतिक यात्रा नहीं है। ये यात्रा उस समय हो रही है जब यूक्रेन और रूस के बीच चल रहे संघर्ष ने पूरी दुनिया की राजनीति और अर्थव्यवस्था को हिला कर रख दिया है। पीएम का ये कदम भारत के एक नए, साहसी और सक्रिय विदेश नीति के युग की शुरुआत है।

23 अगस्त को राष्ट्रपति जेलेंस्की के साथ संभावित वार्ता में भारत और यूक्रेन के बीच में कई मुद्दों पर चर्चा की संभावना है। दोनों देश आपसी हितों, सहयोग बढ़ाने के उपायों पर भी चर्चा करेंगे। सोवियत संघ का हिस्सा होने के दौरान यूक्रेन मशीनरी क्षेत्र का मुख्य केंद्र था। परिवहन विमानों के निर्माण में अग्रणी भूमिका थी। भारतीय वायुसेना का परिवहन विमान एएन-32 का मुख्य कारखाना भी यूक्रेन में ही है। तमाम युद्धपोत, भारी इंजन, मशीनरी के मामले में भी यूक्रेन का कोई जवाब नहीं। ऐसे में पीएम यूक्रेन के साथ अर्थ, विज्ञान, रक्षा क्षेत्र में साजो-सामान समेत तमाम आपसी हित के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने पर चर्चा कर सकते हैं, परन्तु पीएम ने यात्रा का यही समय क्यों चुना और इस यात्रा के पीछे मुख्य रणनीतिकार कौन है, यह बड़ा सवाल है?

साथियों बात अगर हम पीएम की यूक्रेन यात्रा को रूस पश्चिमी देशों व यूक्रेन के ट्रैंगल से देखें तो पीएम की यूक्रेन यात्रा उनकी रूस यात्रा के करीब छह हफ्ते बाद हो रही है। उनकी रूस यात्रा की अमेरिका और यूक्रेन ने भी निंदा की थी। जेलेंस्की ने नौ जुलाई 2024 को कहा था, आज रूस के मिसाइल हमले में 37 लोग मारे गए, इसमें तीन बच्चे भी शामिल थे। रूस ने यूक्रेन में बच्चों के सबसे बड़े अस्पताल पर हमला किया। एक ऐसे दिन दुनियां के सबसे बड़े लोकतंत्र के नेता का दुनियां के सबसे ख़ूनी अपराधी से मॉस्को में गले लगाना शांति स्थापित करने की कोशिशों के लिए बड़ी निराशा की बात है। कुछ विशेषज्ञ आशंका जता रहे हैं कि पीएम की यूक्रेन यात्रा से रूस नाराज होगा, लेकिन ऐसा लगता नहीं है, रूसी राष्ट्रपति के चीन यात्रा के बाद भारत ने कोई आपत्ति नहीं जताई थी। चीन-रूस संबंधों को लेकर रूस और भारत दोनों ने कहा था कि भारत और रूस के बीच संबंध अलग किस्म के हैं।इस दौरे से भारत और रूस के बीच संबंधों पर कोई असर नहीं पड़ता है।ऐसे में उम्मीद है कि पीएम के यूक्रेन दौरे पर रूस भी कोई आपत्ति नहीं जताएगा।

साथियों बात अगर हम भारत यूक्रेन यात्रा की करें तो, राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने 2005 में यूक्रेन की यात्रा की थी। लेकिन किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने अब तक यूक्रेन की यात्रा नहीं की है। पीएम जब 23 अगस्त को कीव पहुंचेंगे तो वे यूक्रेन की यात्रा करने वाले पहले भारतीय पीएम होंगे।भारत कुछ उन देशों में शामिल रहा है, जिन्होंने यूक्रेन को सबसे पहले एक संप्रभु राष्ट्र के रूप में मान्यता दी थी। भारत ने दिसंबर 1991 में यूक्रेन को एक अलग स्वतंत्र और संप्रभु देश के रूप में मान्यता दी। भारत ने यूक्रेन के साथ राजनयिक संबंध जनवरी 1992 में स्थापित किए थे राजधानी कीव में भारत ने अपना दूतावास मई 1992 में खोला था। वहीं यूक्रेन ने भारत में अपना दूतावास फरवरी 1993 में खोला था। यह एशिया में यूक्रेन का पहला दूतावास था।

पीएम ऐसे समय कीव की यात्रा पर जा रहे हैं, जब यूक्रेन रूस में घुसकर हमले कर रहा है, बुद्ध का देश भारत हमेशा से शांति का समर्थक रहा है। वह कभी भी युद्ध की वकालत नहीं करता है। रूस यूक्रेन युद्ध पर भी भारत का रुख रहा है कि कूटनीति और बातचीत से इस युद्ध को सुलझाया जा सकता है। इससे स्थायी शांति स्थापित हो सकती है। स्थायी शांति केवल उन्हीं विकल्पों से हासिल हो सकती है, जो दोनों पक्षों को स्वीकार्य हों। भारत दोनों देशों में बातचीत पर जोर देता रहा है। लेकिन भारत ने अभी तक यूक्रेन पर रूस के हमले की निंदा नहीं की है। भारत ने संयुक्त राष्ट्र में रूस के खिलाफ लाए गए किसी प्रस्ताव का समर्थन भी नहीं किया है। इसके बाद भी भारत ने यूक्रेन में अब तक दवा, कंबल, टेंट और मेडिकल उपकरण के रूप में करीब 135 टन की मानवीय मदद भेजी है। इस साल जुलाई में पुतिन के साथ शिखर वार्ता के दौरान पीएम ने कहा था कि यूक्रेन संघर्ष का समाधान युद्ध के मैदान में संभव नहीं है।बम और गोलियों के बीच शांति वार्ता सफल नहीं होती है।

एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी : संकलनकर्ता, लेखक, कवि, स्तंभकार, चिंतक, कानून लेखक, कर विशेषज्ञ

अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि भारत के वैश्विक नेतृत्व की ओर बढ़ते कदम…अधिकृत यूक्रेन दौरा-पूरी दुनियां की एकटक निगाहें लगी।भारत की यूक्रेन यात्रा से दुनियां को शांतिदूत का आभास होना, भारतीयों के लिए गौरवान्वित होने का पल। पूरी दुनियां की राजनीति व अर्थव्यवस्था को हिला देने वाले रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच भारतीय यूक्रेन यात्रा कूटनीति नहीं बल्कि नए साहसी व सक्रिय विदेश नीति के युगों की शुरुआत होगी।

(स्पष्टीकरण : इस आलेख में दिए गए विचार लेखक के हैं और इसे ज्यों का त्यों प्रस्तुत किया गया है।)

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