भारत सरकार का उपभोक्ताओं को झटका तगड़ा- तेल का आयात शुल्क अगड़ा- प्याज का निर्यात शुल्क पिछड़ा- जनता का किचन बजट बिगड़ा!

भारत सरकार ने तेलों का आयात शुल्क बढ़ाया, प्याज का निर्यात शुल्क घटाया- त्योहारों की सीजन में महंगाई को कृत्रिम रूप से बढ़ाया?
क्या भारत सरकार उपभोक्ताओं और किसानों दोनों के हितों को संतुलित करने का प्रयास कर रही है? बिगड़े किचन बजट को रेखांकित करना जरूरी – एड. के.एस. भावनानी

एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र। वैश्विक स्तर पर भारत को सबसे बड़ा कृषक देश माना जाता है, क्योंकि यहां की अधिकतम आबादी ग्रामीण क्षेत्र से व कृषि व्यवसाय से जुड़ी है। यह दुनियां का प्रचलन है कि दुनियां का हर देश का शासन प्रशासन अपने नागरिकों के सबसे बड़े वर्ग को नाराज करना नहीं चाहेगा क्योंकि उन्हें फिर सत्ता में आना है। ठीक उसी तरह भारत में भी एक सबसे बड़ा वर्ग किसान व उपभोक्ता है इसे भी नाराज नहीं किया जा सकता इसलिए ही हम अनेक देशों में भी देखते हैं की एमआरपी के चक्कर में, किसान व महंगाई के चक्कर में उपभोक्ता अनेकों आंदोलन करते रहते हैं जो हम वर्तमान में भी कई देशों में देख सकते हैं, इसलिए सरकार दूरदर्शिता को देखते हुए उपभोक्ताओं और किसानों दोनों को हितों को संतुलित करने का प्रयास करते रहती है। आज हम इस विषय पर बात इसलिए कर रहे हैं क्योंकि हम जानते हैं खासकर तेल पर आयात शुल्क अति कम था तो प्याज पर निर्यात शुल्क 40 प्रतिशत था जिस पर किसान सहज महसूस कर रहे थे, परंतु दिनांक 14 सितंबर 2024 से भारत सरकार ने खाने वाले तेल पर 20 प्रतिशत आयात शुल्क बढ़ाया तो 13 सितंबर 2024 को प्याज पर 20 प्रतिशत निर्यात शुल्क घटा दिया।

यानी दोनों तरफ से उपभोक्ता परेशान हो गए, जो रेखांकित करने वाली बात है, जिस पर दोनों के रेट एकदम बढ़ गए। मैं खुद अपनी छोटी सी राइस सिटी गोंदिया में इस बात की जानकारी करने मार्केट पहुंचा तो मुझे इसका सटीक प्रमाण मिल गया, प्याज 60 से 80 रुपए तथा फॉर्चून सनफ्लावर डब्बा जो मैंने 12 सितंबर 2024 को 1680 रुपए में खरीदा था, वह दिनांक 19 सितंबर 2024 को 2180 रुपए बताया गया। 15 रूपए वाली प्याज 70 रुपए यानी किचन का ज़ायका पूरी तरह से बिगड़ने की कगार पर आ गया है। इधर दिनांक 18 सितंबर 2024 को उपभोक्ता मंत्रालय द्वारा बयान दिया गया कि ट्रेडरों को कीमत नहीं बढ़ाने की सख्त हिदायत दी गई है, परंतु मैं तो प्रत्यक्ष रूप से ग्राउंड रिपोर्टिंग कर भाव बढ़ने की जानकारी कर ली है दूसरी ओर दिनांक 18 सितंबर 2024 को जारी आंकड़ों के अनुसार रोजाना की जरूरत वाला सामान सस्ता होने से अगस्त महीने में थोक महंगाई घटकर 1.31 प्रतिशत पर आ गई है। ये इसके 4 महीने का निचला स्तर है।

अप्रैल में ये 1.26 प्रतिशत पर थी। वहीं एक महीने पहले जुलाई में थोक महंगाई घटकर 2.04 प्रतिशत पर आ गई थी। इससे पहले 12 सितंबर को सरकार ने रिटेल महंगाई के आंकड़े जारी किए गए थे। अगस्त महीने में रिटेल महंगाई बढ़कर 3.65 प्रतिशत हो गई है। जुलाई महीने में ये 3.54 प्रतिशत पर थी। सब्जियों के महंगे होने से अगस्त महीने में रिटेल महंगाई बढ़ी है। चुंकि भारत सरकार ने तेलों का आयात शुल्क बढ़ाया, प्याज का आयात शुल्क घटाया, त्योहारों की सीजन में महंगाई को कृत्रिम रूप से बढ़ाया? तथा क्या भारत सरकार उपभोक्ताओं और किसानों दोनों के हितों को संतुलित करने का प्रयास कर रही है? बिगड़े किचन बजट को रेखांकित करना जरूरी है। इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आलेख के माध्यम से चर्चा करेंगे, भारत सरकार का उपभोक्ताओं को झटका तगड़ा, तेल का आयात शुल्क अगड़ा प्याज का निर्यात शुल्क पिछड़ा, जनता का किचन बजट बिगड़ा!

साथियों बात अगर हम केंद्र सरकार नें तेल पर 14 सितंबर 2024 से आयात शुल्क को बढ़ाने की करें तो केंद्र सरकार ने कच्चे और रिफाइडं खाद्य तेलों पर लगने वाले आयात शुल्क में 20 प्रतिशत की वृद्धि की है। पाम ऑयल, सोया ऑयल और सूरजमुखी तेल पर सीमा शुल्क बढ़ा देने से सभी खाद्य तेलों के दामों बढ़ोतरी हो गई है। जिसका असर सीधे आम जनता पर पड़ गया है। जल्द ही त्योहारी सीजन शुरू होने वाला जिसमें लोगों को खाद्य तेल के बढ़े दाम लोगों को परेशान कर सकते हैं। इस फैसले से किसानों को राहत मिल सकती है और उनकी कमाई भी बढ़ सकती है, लेकिन दूसरी ओर आम जनता पर इसका बोझ बढ़ेगा। इससे पहले भी सरकार ने किसानों को राहत देने के लिए सोयाबीन की खरीदारी समर्थन मूल्य पर खरीदने का निर्देश दिया था। अब 20 प्रतिशत तक आयात शुल्क बढ़ाने की कोई आवश्यकता यहां नजर नहीं आती है। इसके असर से खाद्य तेलों के भाव 15 से 22 प्रतिशत प्रति किलो तक बढ़ गए हैं। इस फैसले से छोटे किसान तो नहीं बल्कि स्टॉक करने वाले बड़े व्यापारियों को अधिक फायदा हो सकता है।

पिछले एक से दो हफ्ते पहले खाद्य तेलों के दामों 10 से 12 प्रतिशत की वृद्धि पहले ही देखी जा चुकी है। जिसमें रिफाइंड ऑयल के दाम 10 प्रतिशत और सरसों का तेल 12 प्रतिशत तक बढ़ चुके हैं। इस साल देश भर में अच्छे मॉनसून की वजह से चार राज्यों महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्य प्रदेश और तेलंगाना में सोयाबीन की अच्छी फसल होने की उम्मीद है। वहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सोयाबीन के सबसे बड़े उत्पादक देश अर्जेंटीना और ब्राजील तथा अमेरिका में भी फसल अच्छी आने की संभावना है। रूस और यूक्रेन द्धारा सूरजमुखी के तेल बेचने की होड़ के चलते खाद्य तेलों के दाम नीचे आ गए थे। इस वजह से सोयाबीन के दाम भी समर्थन मूल्य के नीचे चले गए थे।

महाराष्ट्र में वर्ष के अंत में विधानसभा चुनाव और अन्य राज्यों के किसान संगठनों द्वारा सरकार पर बनाए गए दबाव के कारण कुछ दिन पहले ही इन चार राज्यों में समर्थन मूल्य पर सोयाबीन खरीदने के आदेश सरकार ने जारी किय थे। गत दो महीनों से खाद्य तेलों का भारत का आयात कम रहा है। आगामी त्योहारों को देखते हुए मांग को पूरा करने के लिए भी व्यापारियों ने स्टॉक कर लिया है। वहीं दूसरी ओर सरकारी एजेंसियों द्वारा खरीदी गई सरसों की बिक्री का आदेश दिया गया, तब पता चला कि सरसों की गुणवत्ता एवं उपलब्धता दोनों की मात्रा में अंतर पाया गया। जिसकी वजह से खाद्य तेलों के दामों पिछले कुछ सप्ताह में 10 से 15 प्रतिशत तक बढ़ गए हैं और अब 20 प्रतिशत की ड्यूटी की वृद्धि महंगाई को बढ़ाएगी।

साथियों बात अगर हम तेल आयात पर सीमा शुल्क की वृद्धि को जानने की करें तो, सरकार की ओर से जारी अधिसूचना में कहा गया है कि कच्चे पाम तेल, कच्चे सोया तेल और कच्चे सूरजमुखी तेल पर 20 प्रतिशत मूल सीमा शुल्क लगाया गया है। इसमें तीनों तेलों पर कुल आयात शुल्क 5.50 प्रतिशत से बढ़कर 27.5 प्रतिशत हो जाएगा। रिफाइंड पाम तेल, रिफाइंड सोया तेल और रिफाइंड सूरजमुखी तेल के आयात पर 13.75 आयात शुल्क के मुकाबले अब 35.75 प्रतिशत आयात शुल्क लगेगा।

घरेलू सोयाबीन की कीमतें लगभग 4,600 रुपये (54.84 डॉलर) प्रति 100 किलोग्राम है जो राज्य द्वारा निर्धारित समर्थन मूल्य 4,892 रुपये से कम है। घरेलू बाजार में खाद्य तेलों की मांग 65 से 70 प्रतिशत है, जिसको आयात द्वारा पूरा किया जाता है। क्रूड पर बेसिक कस्टम ड्यूटी 0-20 प्रतिशत, जबकि रिफाइंड ऑयल पर अब ये 12.5 -32.5 प्रतिशत की गई है। बेसिक कस्टम ड्यूटी में इजाफे के बाद अब क्रूड ऑयल और रिफाइंड तेलों पर प्रभावी शुल्क क्रमश: 5.5 फीसदी से बढ़कर 27.5 फीसदी और 13.75 फीसदी से बढ़कर 35.75 फीसदी हो गए। फाइनेंस मिनिस्ट्री की ओर से जारी नोटिफिकेशन में कस्टम ड्यूटी की बदलाव में बाद नई दरें, 14 सितंबर 2024 से लागू कर दी गई हैं।

साथियों बात अगर हम प्याज की निर्यात शुल्क 20 प्रतिशत घटाने की करें तो, प्याज के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के करीब दस महीने बाद, केंद्र ने शुक्रवार (13 सितंबर, 2024) को 550 डॉलर प्रति मीट्रिक टन के न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) के आदेश को खत्म कर दिया और मई में प्याज की खेप पर लगाए गए 40 प्रतिशत निर्यात शुल्क को आधा कर दिया। देश के सबसे बड़े प्याज उत्पादक महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव से पहले रुख में यह बदलाव आया है। सरकार ने पिछले साल दिसंबर में कमजोर मानसून के बाद घरेलू कमी की आशंका के चलते राजनीतिक रूप से संवेदनशील रसोई के इस प्रमुख उत्पाद के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था।

मार्च में प्रतिबंध को अगले आदेश तक बढ़ा दिया गया था, हालांकि कुछ देशों के राजनयिक अनुरोधों के आधार पर कुछ शिपमेंट की अनुमति दी गई थी।सरकार ने हाल ही में प्याज से निर्यात शुल्क 20 फीसदी घटा दिया इसकी वजह से सब्जी मंडी में प्याज के थोक दाम बढ़ गए हैं। दावा है कि आने वाले दिनों में प्याज का रेट और बढ़ सकता है। दिल्ली की गाजीपुर, ओखला और आजादपुर सब्जी मंडी समेत सभी सब्जी मंडियों में मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, कर्नाटक से प्याज की सप्लाई होती है। एक जानकार ने कहा कि तीन दिन पहले मंडी में प्याज का थोक दाम 35 से 45 रूपये प्रति किलो था। लेकिन सरकार की ओर से प्याज निर्यात शुल्क 20 फीसदी घटा दिया गया। इसकी वजह से मंडी में प्याज के थोक रेट में प्रति किलो 5 रुपये की बढ़ोतरी हो गई।

एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी : संकलनकर्ता, लेखक, कवि, स्तंभकार, चिंतक, कानून लेखक, कर विशेषज्ञ

अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि भारत सरकार का उपभोक्ताओं को झटका तगड़ा- तेल का आयात शुल्क अगड़ा- प्याज का निर्यात शुल्क पिछड़ा- जनता का किचन बजट बिगड़ा! भारत सरकार ने तेलों का आयात शुल्क बढ़ाया, प्याज का निर्यात शुल्क घटाया- त्योहारों की सीजन में महंगाई को कृत्रिम रूप से बढ़ाया? क्या भारत सरकार उपभोक्ताओं और किसानों दोनों के हितों को संतुलित करने का प्रयास कर रही है? बिगड़े किचन बजट को रेखांकित करना जरूरी है।

(स्पष्टीकरण : इस आलेख में दिए गए विचार लेखक के हैं और इसे ज्यों का त्यों प्रस्तुत किया गया है।)

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