भारत-बांग्लादेश की यारी- तीस्ता नदी की पारी- चीन पर भारी

तीस्ता नदी समझौता- बांग्लादेश में तीस्ता नदी पर चीन सोचता रह गया, भारत ने अपनी शक्ति दिखा दी!
विदेशों से कूटनीति संबंधों में, टाइमिंग सबसे बड़ा फैक्टर- संभावनाओं व आशंकाओं का सटीक अंदाजा लगाकर सही समय पर सही निर्णय लेना भारत की खूबी- एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी

एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र। वैश्विक स्तर पर भारत को यूं ही बौद्धिक क्षमता का धनी की संज्ञा नहीं दी गई है, बल्कि इसलिए भी कि आदि अनादि काल से भारत की भूमि पर जन्म लेने वालों की पीढ़ियों में भी अद्भुत सटीक बौद्धिक क्षमता का संचार होता है, इसलिए ही भारत को विदेश नीति में भी माहिर कहा जाता है। जिसका संज्ञान हम पड़ोसी मुल्क से ले सकते हैं जहां पूर्व पीएम ने भारत की विदेश नीति को खूब सराहा था, तो वहां की सेना के टारगेट पर आ गए। वहीं हम विस्तारवादी देश चीन के साथ व्यवहार में भी देखें तो भारत एक मंझी हुई कूटनीति का परिचय देता है। ठीक वैसे ही अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन सहित दुनियां के हर देश के साथ संबंधों में भारत की कूटनीति टाइमिंग को दर्शाता है। इसी सटीक टाइमिंग में दिनांक 22 जून 2024 को भारत के बांग्लादेश से हुए 10 समझौता में से एक तीस्ता नदी का समझौता भी है, जिस पर लंबे समय से चीन की नजर थी, क्योंकि इसी के सहारे भारत को घेरने की आखिरी कड़ी भी था, क्योंकि श्रीलंका, पाकिस्तान, नेपाल और अब बांग्लादेश में तीस्ता नदी समझौते से अप्रत्यक्ष रूप से वह भारत को घेरने की साजिश जैसे उपरोक्त देशो के सहयोग के साथ किया है परंतु भारत ने भी सटीक कूटनीतिक टाइमिंग से बांग्लादेश से तीस्ता नदी समझौता किया है।

क्योंकि दूसरे देशों से कूटनीतिक संबंधों में टाइमिंग को एक बड़ा फैक्टर माना जाता रहा है। अगर हमनें भविष्य की संभावनाओं और आशंकाओं का अंदाजा लगाते हुए सही समय पर बड़े फैसले ले लिए तो हमारे विरोधी चारों खाने चित हो जाते हैं। बांग्लादेश के साथ तीस्ता नदी को लेकर शनिवार को भारत ने जो समझौता किया है वो सरकार की इसी कूटनीतिक टाइमिंग को दर्शाता है। पीएम और बांग्लादेश की पीएम के बीच हुई बैठक के बाद दोनों देश के बीच समझौता तो तीस्ता नदी को लेकर हुआ लेकिन इस समझौते से सबसे ज्यादा मिर्ची चीन को जरूर लग गई होगी। ऐसा इसलिए भी क्योंकि चीन लंबे अर्से से तीस्ता नदी के बहाने भारत को बांग्लादेश की तरफ से भी घेरने की तैयारी में था। चूंकि तीस्ता नदी समझौते पर चीन बांग्लादेश में तीस्ता नदी पर सोचता रह गया और भारत ने अपनी शक्ति दिखा दी है। इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आलेख के माध्यम से चर्चा करेंगे, भारत बांग्लादेश की यारी, तीस्ता नदी की पारी, चीन पर भारी।

साथियों बात अगर हम भारत बांग्लादेश की यारी चीन पर भारी की करें तो, चीन जिस तरह से बांग्लादेश की तीस्ता नदी परियोजना में अपनी रुचि दिखा रहा था, उसे लेकर कई तरह की आशंकाएं जन्म ले रही हैं। कई जानकार मानते हैं कि भारत को चारों तरफ से (श्रीलंका, पाकिस्तान, नेपाल और अब बांग्लादेश) घेरने की अपनी योजना के तहत ही चीन बांग्लादेश को लेकर इतनी रुचि दिखा रहा है। चीन चाहता है कि तीस्ता नदी के बहाने वह किसी तरह से पहले बांग्लादेश में एंट्री करे और फिर धीरे-धीरे उसे अतिरिक्त कर्ज देकर उसे बाध्य करे कि वह उसे अपनी जमीन पर बेस बनाने की अनुमति दे। बता दें कि कुछ वर्ष पहले चीन ने इसी तरह से श्रीलंका में भी अपनी एंट्री की थी, वहां पहले एक बंदरगाह को विकसित करना का ठेका उसने लिया और धीरे-धीरे करके श्रीलंका को इतना कर्ज दे दिया जिसे वो एक समय के बाद चुका पाने की स्थिति में नहीं था।अब चीन श्रीलंका में अपना एक बेस भी तैयार कर चुका है ताकि वो वहां से भारत पर नजर रख सके। चीन ने पाकिस्तान और नेपाल के साथ भी कुछ ऐसा ही किया है।

बांग्लादेश की पीएम अगले महीने बीजिंग की यात्रा पर जाने वाली हैं। जानकारों के अनुसार उनकी बीजिंग यात्रा से भारत ने तीस्ता को लेकर जो समझौता किया है, उसकी वजह से चीन अब बांग्लादेश पर अतिरिक्त दबाव नहीं डाल पाएगा। बता दें कि भारत और बांग्लादेश के बीच 54 नदियों को लेकर अलग-अलग सहयोग चल रहा है। बीते दिनों पीएम ने भी साझा प्रेस वार्ता में कहा था कि 54 साझा नदियां भारत और बांग्लादेश को जोड़ती हैं। लिहाजा बाढ़, प्रबंधन, पेजयल परियोजनाओं पर हम सहयोग करते आए हैं। भारतीय पीएम और बांग्लादेश की पीएम के बीच बीते दिनों दिल्ली में बातचीत हुई थी, इस बातचीत के बाद दोनों देशों ने कई अहम समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं। पीएम ने इस बातचीत के बाद कहा कि बांग्लादेश की पीएम के साथ हुई बातचीत के बाद भारत और बांग्लादेश के बीच डिजिटल, हरित साझेदारी और समुद्र आधारित इकोनॉमी से जुड़े कई अहम समझौते हुए हैं। इसके अलावा भारतीय अंतरिक्ष यान से बांग्लादेश के लिए निर्मित सैटेलाइट को भी अंतरिक्ष में स्थापित करने पर सहमति बनी है। साथ ही साथ बांग्लादेशी नागिरकों को अब भारत में इलाज कराने के लिए उन्हें ई-वीजा उपलब्ध कराने पर भी सहमति बनी है।

साथियों बात अगर हम तीस्ता नदी को जानने की करें तो, तीस्ता नदी वो नदी है जिस पर बांग्लादेश और भारत दोनों को साझा काम करना है। भारत की आपत्तियों के कारण ही फिलहाल परियोजना को रोक चीन को वहां दखल नहीं देने दिया गया है। चीन अपना प्रभाव दक्षिणी एशिया में बढ़ाते जा रहा है। अगर कोई इनवेस्ट करता है तो वो अपने आर्थिक फायदा को भी देखता है, इसके अलावा अपना रणनीतिक फायदा भी देखता है। चीन इस मामले में बांग्लादेश को ध्यान में रखकर कई परियोजना लेके आया है।बीसीआईए इकोनॉमिक कोरिडोर की बात हो या फिर सी पोर्ट को भी डेवपल करने की बात करता है। चीन निश्चित रूप से बंगाल की खाड़ी में अपनी आर्थिक और रणनीतिक स्थिति को काफी मजबूत करने में जुटा हुआ है। यूनान को जो लैंडलाॅक की स्थिति है उसको खोलने के प्रयास में है।

इसको बंगाल की खाड़ी में खोलने की रणनीति चीन बना रहा है। चीन सामयिक और आर्थिक और रणनीतिक तौर पर दक्षिण एशिया के देशों में अपना प्रभाव डाल रहा है और खासकर बांग्लादेश उसके निशाने पर है। सोनादिया का जो डीप सी पोर्ट का एरिया है वो भी सफलता पूर्वक नहीं हो पाया। शेख हसीना ने एक सामरिक और आर्थिक फैसला लिया और उस डील को नकार दिया। अब चीन ने दो नयी परियोजनाएं बांग्लादेश के सामने रखा है जिसमें पहला तो सिलहट एयरपोर्ट है और दूसरा तीस्ता नदी पर बनाई जाने वाली परियोजना है। सिलहट एयरपोर्ट पर जो काम होना है वो भारत के पूर्वी राज्यों के काफी करीब होगा। जो असम, मेघालय के पास होगा। इससे सामरिक महत्व काफी बढ़ जाता हैं, क्योंकि वह भारत के चिकन नेक के तब बिल्कुल ही करीब हो जाएगा।

साथियों बात अगर हम तीस्ता नदी की पारी चीन पर भारी की करें तो, चीन ने एक बिलियन खर्च करके तीस्ता बैरल परियोजना लाने की बात कही है। चीन ये पहले से जानता है कि भारत और बांग्लादेश के बीच में पहले से ही तीस्ता नदी को लेकर कुछ विवाद रहे हैं। करीब एक दशक के आसपास ही सुलझ जाने वाला मामला आज तक सुलझ नहीं पाया है। अगर चीन वहां पर इनवेस्ट करता है तो बांग्लादेश को भारत से दूर करने का प्रयास हर संभव करेगा। इसमें एक महत्वपूर्ण बात है कि हमारे पूर्व विदेश मंत्रालय के सचिव जब बांग्लादेश गए थे तो उन्होंने कहा कि भारत तीस्ता नदी में 1.1 बिलियन डॉलर का प्रोजेक्ट लाएगा। इसके लिए बांग्लादेश को कहा गया कि भारत बांग्लादेश की सभी आवश्यकताओं को ध्यान में रखेगा। तीस्ता नदी का विवाद काफी समय से है। 413 किलोमीटर ये तीस्ता नदी है, उसमें से 305 किलोमीटर नदी भारत में बहती है। 109 किलोमीटर नदी बांग्लादेश में बहती है। सिक्किम और अन्य जगहों से बहते हुए ये नदी पश्चिम बंगाल से होते हुए बांग्लादेश में प्रवेश करती है।

बांग्लादेश में प्रवेश करने से ठीक पहले भारत ने वहां गाजल डोवा नाम का एक प्रोजेक्ट बना रखा है। उसी प्रोजेक्ट के जरिये भारत उत्तर बंगाल को पानी सप्लाई करता है। बंगाल के छह जिले हैं वो सूखाग्रस्त हैं, उन जगह पर पानी को लाने के लिए इस प्रोजेक्ट पर काम किया गया है। बांग्लादेश में डालिया ब्रिज है जहां बाढ़ को रोकने के लिए उसका उपयोग किया जाता है। वहां पर काफी ओवर स्टोरेज की जरूरत है कि इसके लिए वहां पर एक बड़ा प्रोजेक्ट खड़ा करने की बात है। चीन इसके जरिये अपना प्रभाव बनाना चाहता है। तीस्ता नदी के जरिये प्रोजेक्ट लाकर घुसपैठ करने की फिराक में है। सिलिगुड़ी कोरिडोर और वहां का जो चिकन-नेक है, वह भारत को उसके उत्तर पूर्वी राज्यों के साथ जोड़ना चाहता है। वहां पर चीन अपनी उपस्थिति दर्ज कराना चाहता है। उसी तर्ज पर भारत ने अपना एक प्रस्ताव दिया है, जो नदी के जरिये मदद नहीं हो पा रही है वहां पर बराज के जरिये आवश्यकताओं को पूरा करने का प्रयास करेगा। फिलहाल, इतना तो तय है कि भारत और बांग्लादेश की दोस्ती से ड्रैगन के माथे पर बल जरूर पड़ रहे हैं और उसकी पहुंच भी कम हो गयी है।

साथियों बात अगर हम तीस्ता नदी पर भारत बांग्लादेश के हित की करें तो, बांग्लादेश का ये आरोप रहा है कि उसको 7 हजार क्यूसेक पानी की आवश्यकता होती है, उसके सापेक्ष में 1500 से 2000 क्यूसेक पानी ही मिलता है। बांग्लादेश को पर्याप्त मात्रा में पानी नहीं मिल रहा है, इस बात को ध्यान में रखते हुए 2011 में एक समझौते पर पहुंचा गया था। उस समय के पीएम मनमोहन सिंह के बांग्लादेश दौरे के समय ये बात रखी गई थी कि 40 प्रतिशत उस नदी के पानी का उपयोग भारत, 40 प्रतिशत पानी का उपयोग बांग्लादेश उपयोग करेगा, जबकि 20 प्रतिशत को नदी में पानी की स्थिति बनाए रखने के लिए रखा जाएगा। उस समय पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी को उससे दिक्कत थी, उस समय उन्होंने बांग्लादेश से होने वाले समझौते से मना कर दिया।उस समय अपनी राजनीति के कारण उन्होंने ऐसा नहीं किया। बीजेपी और केंद्र में शासित सरकार जो उस समय की थी उनको भी लगा कि अगर बिना ममता बनर्जी के सहमति के ये डील की गयी तो आने वाले समय देश में आंतरिक राजनीतिक स्थिति खराब हो सकते हैं। भारत राज्यों का संघ होने के कारण तीस्ता नदी का मामला नहीं सुलझ पाया था जिसके कारण तीस्ता नदी का विवाद आज तक है और इसका फायदा चीन ले रहा था जिसकी गुंजाइश अब समाप्त होने की और अग्रसर है।

एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी : संकलनकर्ता, लेखक, कवि, स्तंभकार, चिंतक, कानून लेखक, कर विशेषज्ञ

अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि भारत-बांग्लादेश की यारी- तीस्ता नदी की पारी- चीन पर भारी। तीस्ता नदी समझौता- बांग्लादेश में तीस्ता नदी पर चीन सोचता रह गया, भारत ने अपनी शक्ति दिखा दी! विदेशों से कूटनीति संबंधों में, टाइमिंग सबसे बड़ा फैक्टर- संभावनाओं व आशंकाओं का सटीक अंदाजा लगाकर सही समय पर सही निर्णय लेना भारत की खूबी है।

(स्पष्टीकरण : इस आलेख में दिए गए विचार लेखक के हैं और इसे ज्यों का त्यों प्रस्तुत किया गया है।)

ताज़ा समाचार और रोचक जानकारियों के लिए आप हमारे कोलकाता हिन्दी न्यूज चैनल पेज को सब्स्क्राइब कर सकते हैं। एक्स (ट्विटर) पर @hindi_kolkata नाम से सर्च करफॉलो करें।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *