परंपरागत पर्वों से बढ़ती दूरियां, तो क्या औपचारिकताएं ही रह जाएंगी?

कुमार संकल्प, आजमगढ़ : मकर संक्रांति का त्योहार पूरे देश में उत्साह के साथ मनाया जाता रहा है। शहरी लोग जहां बस किसी भी पर्व पर परंपराओं का निर्वहन भर करते हैं, वहीं ग्रामीण तबके में अब भी इनमें ‌जिवंतता देने की कोशिश झलकती है। दरअसल समय के साथ ऐसी परंपराओं का निर्वहन करना भी चुनौती से कम नजर नहीं आ रही है।

तो क्या सोशल मीडिया हो रहा हावी?
किसी भी पर्व पर तुरंत एक या दो दिन पहले ही या यूं कहें कि सप्ताह पर पहले ही अलग-अलग तौर पर लोग सोशल मीडिया के हर प्लेटफॉर्म पर लोग एक दूसरे को बधाई देने लगते हैं। बात यदि हम कोविडकाल की छोड़ दें तो हर उत्सव का अलग महत्व रहा है। इसी में शुमार है मकर संक्रांति का त्योहार। देश के अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नामों से मनाया जाने वाला यह पर्व आज भी उसी लोकप्रियता में शामिल है। तमिलनाडु में इस त्योहार को पोंगल कहा जाता है। उत्तर प्रदेश में खिचड़ी, पंजाब में एक दिन पहले लोहिड़ी के रूप में मकर संक्रांति अनोखे अंदाज में मनाई जाती है।

गंगा या नदी में स्नान के बाद दान के साथ पर्व की अनूठी परंपरा की विरासत :
खिचड़ी पर लोग तड़के सुबह अपने समीप की स्थानीय नदी में स्नान करके सूर्य भगवान को अर्घ्य देकर पूजन करके ही कुछ खाते हैं। इससे पहले घर के बाहर ही अलाव जलाकर रखा जाता है, ताकि सर्दी से बचने के साथ ही लोग पर्व का आनंद ले सकें। एक साथ मिलकर सभी इस त्यौहार का आनंद ले सकें। इसके बाद इस दिन खिचड़ी भी प्रायः हर घर में बनती है। बिहार में तो दही व चूड़ा खाने की परंपरा है।

कुरई (बांस की टोकरी) को बनाने की परंपरा हो रही धूमिल :
उत्तर प्रदेश में ज्यादातर जगहों पर ही बांस की टोकरी जिसे कि स्थानीय भाषा में कुरई कहा जाता है, उसे बनाने की परंपरा रही है। वैसे तो प्रायः हर घर में ही इसे युवतियों से लेकर बच्चियां अनोखे व आकर्षक डिजाइन में बनाती थीं। हालांकि अब यह कला सी धूमिल होती नजर आ रही है। कुरई में ही बच्चों को गुड़, तिलकुट, लाई, गट्टा व अन्य सामान खाने के लिए दिए जाते थे। अब यह परंपरा स्टील की थाली या प्लास्टिक की प्लेट में आ चुकी है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

15 − eight =