अधूरी स्वतंत्रता : महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान की चुनौती

सपना सिंह, चांपदानी। भारत अपनी 78वीं स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि 15 अगस्त 1947 को हमने ब्रिटिश शासन से मुक्ति पाई थी, लेकिन आज, जब हम अपने राष्ट्रीय ध्वज को गर्व से फहराते हैं, यह सवाल उठता है कि क्या हमारी स्वतंत्रता वास्तव में पूरी है?

इस प्रश्न का उत्तर हमें पश्चिम बंगाल में हाल ही में घटी एक दुखद घटना से मिलता है, जहाँ एक युवा डॉक्टर की बर्बर हत्या और बलात्कार ने हमारे समाज की गहरी विफलता को उजागर कर दिया है। इस प्रकार की घटनाएं यह स्पष्ट करती हैं कि हमारी स्वतंत्रता अधूरी है, विशेष रूप से जब बात महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान की हो।

आजादी के इतने वर्षों बाद भी, महिलाओं के खिलाफ हिंसा और अत्याचार थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। यह त्रासदी हमें महाभारत की एक प्रमुख घटना की याद दिलाती है,जब द्रौपदी के अपमान ने एक विनाशकारी युद्ध को जन्म दिया था।

यह स्पष्ट संकेत है कि जब समाज में महिलाओं का सम्मान खतरे में होता है, तो उसका असर केवल व्यक्तिगत स्तर पर नहीं, बल्कि सामाजिक और राष्ट्रीय स्तर पर भी होता है।

महिलाओं के खिलाफ हो रही हिंसा ने हमारे समाज के नैतिक और सामाजिक ताने-बाने को चुनौती दी है। हम यह कहने में असमर्थ हो जाते हैं कि हम एक स्वतंत्र और सुरक्षित समाज में जी रहे हैं, जब महिलाओं को निरंतर भय के साये में जीना पड़ता है।

ऐतिहासिक दृष्टि से देखें तो भारतीय समाज में महिलाओं ने हमेशा महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। रानी लक्ष्मीबाई जैसी वीरांगनाओं से लेकर आज के विज्ञान, शिक्षा, और राजनीति के क्षेत्र में महिलाओं ने अपनी एक अलग पहचान बनाई है।

फिर भी, उनके इस योगदान को समाज में फैली हिंसा और अत्याचार के कारण अक्सर ढक दिया जाता है। यह स्थिति हमें सोचने पर मजबूर करती है कि हमने भले ही राजनीतिक स्वतंत्रता हासिल कर ली हो, लेकिन सामाजिक स्वतंत्रता अभी भी एक दूर का सपना है।

महिलाओं के खिलाफ हिंसा सिर्फ एक सामाजिक मुद्दा नहीं है, बल्कि यह हमारे देश की प्रगति के रास्ते में एक बड़ी बाधा है। जब एक महिला सुरक्षित और सम्मान जनक जीवन जीने में सक्षम होती है, तभी वह अपनी पूरी क्षमता का उपयोग कर समाज में योगदान कर सकती है।

आज, हमें इस सच्चाई का सामना करना होगा कि हमारी स्वतंत्रता तब तक अधूरी रहेगी, जब तक कि हर महिला बिना भय के, सम्मान और गरिमा के साथ इस देश में नहीं जी सकती।

हमें यह भी याद रखना चाहिए कि जैसे हम अपने अतीत को सम्मानित करते हैं, वैसे ही हमें वर्तमान की चुनौतियों का भी सामना करना होगा। महिलाओं की सुरक्षा को राष्ट्रीय प्राथमिकता बनाना होगा।

हमें उन प्रणालीगत विफलताओं को ठीक करने की आवश्यकता है, जो महिलाओं के खिलाफ हिंसा को बढ़ावा देती हैं। केवल तभी हम यह दावा कर सकेंगे कि हम सच में स्वतंत्र हैं।

स्वतंत्रता सिर्फ एक अधिकार नहीं, बल्कि एक जिम्मेदारी भी है और यह जिम्मेदारी हमें अपने समाज को एक ऐसा स्थान बनाने की है, जहाँ हर व्यक्ति, विशेषकर महिलाएं, बिना किसी भय के जी सकें और अपने जीवन का पूर्ण आनंद उठा सकें। तभी भारत सच्ची स्वतंत्रता की ओर बढ़ सकेगा।

सपना सिंह, लेखिका

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