हिंदी माध्यम से स्तरीय एवं गुणवत्ता पूर्ण पाठ्य पुस्तक लेखन के लिए लेखकों की कार्यशाला का उद्घाटन संपन्न

कार्यशाला में सम्मिलित हो रहे हैं देश के विभिन्न राज्यों के उच्च शिक्षा से जुड़े विशेषज्ञ और लेखकगण

उज्जैन। विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन में यूजीसी, नई दिल्ली एवं भारतीय भाषा समिति, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार के सौजन्य से हिंदी माध्यम से स्तरीय एवं गुणवत्ता पूर्ण पाठ्य पुस्तक लेखन के लिए विभिन्न विषयों के लेखकों की दो दिवसीय कार्यशाला 6 दिसंबर 2024 को प्रारम्भ हुई। कार्यशाला का शुभारंभ शुक्रवार सुबह विक्रम विश्वविद्यालय के पर्यावरण प्रबंधन अध्ययनशाला सभागार में हुआ। आयोजन के सारस्वत अतिथि पूर्व कुलपति प्रो. बालकृष्ण शर्मा थे। अध्यक्षता कुलगुरु प्रो. अर्पण भारद्वाज ने की। कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि डॉ. चंदन श्रीवास्तव, वाराणसी, कुलानुशासक प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा, डॉ सुनीता सिंह, नई दिल्ली आदि ने सम्बोधित किया।

विक्रम विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति और संस्कृत मनीषी प्रो. बालकृष्ण शर्मा ने अपने वक्तव्य में भारतीय ज्ञान परम्परा और ग्रन्थ लेखन की महत्ता पर बात करते हुए कहा कि भारत में ज्ञान, परम्परा और शब्द की अपार महिमा रही है। ज्ञान एक भावनात्मक संपृक्ति है, वह एक भाव है, बोध है। समस्त ज्ञान को शब्दात्मक माना गया है। ग्रन्थ निर्माण में अनुबंध चतुष्टय का महत्व है। लेखक को चार बातों – अधिकारी, विषय, संबंध और प्रयोजन को ध्यान में रख कर ही पुस्तक लेखन करना चाहिए।

विशिष्ट अतिथि डॉ. चंदन श्रीवास्तव, वाराणसी ने अपने उद्बोधन में कहा कि इस कार्यक्रम का लक्ष्य हिंदी माध्यम से स्तरीय और गुणवत्ता पुस्तक लेखन का है। इन पुस्तकों को नई शिक्षा नीति 2020 के अनुसार भारतीय ज्ञान परंपरा को जोड़ते हुए लिखा जाएगा। हमें अच्छी पुस्तकों की आवश्यकता है और इसके लिए देश के प्रबुद्ध लेखकों को एक साथ मिल कर कार्य करना होगा।

अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में विक्रम विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रो. अर्पण भारद्वाज ने कहा कि यह कार्यशाला बहुत आवश्यक है। हिंदी भाषा में पाठ्यक्रम का होना सामाजिक आवश्यकता है। अपनी भाषा में व्यक्ति अच्छे से समझ पाता है और अपनी भाषा में ही उन्नति अच्छे से होती है।

कुलानुशासक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा ने पीठिका प्रस्तुत करते हुए कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 शैक्षिक क्षेत्रों के सभी स्तरों पर भारतीय भाषाओं पर महत्वपूर्ण बल देती है। पाठ्य पुस्तकों को प्रभावी और व्यावहारिक बनाने के लिए जरूरी है कि उसमें प्रामाणिकता के साथ विषयवस्तु और भाषा-शैली में संतुलन हो। देश की भाषाई समृद्धि और बहुभाषी समाज को देखते हुए, भारतीय भाषाओं में पुस्तक निर्माण अत्यंत महत्वपूर्ण है। हिंदी भाषा के लिए विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन को नोडल विश्वविद्यालय बनाया गया है। कार्यशाला राष्ट्रीय शिक्षा नीति की संकल्पना के अनुरूप भारतीय भाषाओं में स्तरीय और गुणवत्तापूर्ण पाठ्य पुस्तक और सन्दर्भ ग्रंथों के लेखन एवं प्रकाशन की दिशा में महत्वपूर्ण सिद्ध हो रही है।

प्रारम्भ में विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों द्वारा कुलगान किया गया। अतिथियों को स्मृति चिन्ह मुख्य समन्वयक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा, विभागाध्यक्ष प्रो. डी.एम. कुमावत, समन्वयक गण डीएसडब्ल्यू प्रो. एस.के. मिश्रा, प्रो. जगदीश चंद्र शर्मा, प्रो. डी.डी. बेदिया एवं प्रो. सन्दीप कुमार तिवारी ने अर्पित किए।

दोपहर में हुए कार्यशाला के दो तकनीकी सत्रों में विशेषज्ञ वक्ता के रूप में डॉ. चंदन श्रीवास्तव, डॉ. सुनीता सिंह, नई दिल्ली, प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा, प्रो. अनिल कुमार जैन, प्रो. सुनील गोयल, महू आदि ने व्याख्यान सह प्रस्तुतीकरण किया। इस कार्यशाला में देश के विभिन्न राज्यों के लेखकगण भाग लेने के लिए आए हैं। प्रथम दिवस पर भारतीय भाषाओं में पुस्तक लेखन के प्रयास, आवश्यकता एवं लेखन प्रक्रिया, पुस्तक लेखन में कॉपीराइट एवं एंटी प्लेगेरिज्म मुद्दे और सुझाव पर चर्चा की गई।

कार्यक्रम का संचालन ललित कला विभागाध्यक्ष डॉ. जगदीश चंद्र शर्मा ने किया। आभार प्रदर्शन पर्यावरण प्रबंधन अध्ययनशाला के विभागाध्यक्ष प्रो. देवेंद्र मोहन कुमावत ने किया।

7 दिसंबर को तीन तकनीकी सत्रों में होगी स्तरीय पुस्तक लेखन में शब्दावली और अनुवाद पर चर्चा

कार्यशाला के अन्तर्गत 7 दिसम्बर को तीन तकनीकी सत्र होंगे, जिनमें पाठ्य पुस्तक लेखन में शब्दावली प्रयोग, निर्माण एवं अनुवाद के साथ विभिन्न विषय क्षेत्रों में पुस्तक लेखन पर गहन मंथन होगा। इन सत्रों में डॉ. चंदन श्रीवास्तव, वाराणसी, डॉ. रचना विश्वकर्मा, गया, बिहार, डॉ. रामकिशोर, नई दिल्ली, डॉ. सुनीता सिंह, नई दिल्ली, प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा, प्रो. डी.एम. कुमावत, प्रो. एस.के. मिश्रा, प्रो. सन्दीप तिवारी, प्रो. जगदीश चंद्र शर्मा, डॉ. डी.डी. बेदिया आदि सम्मिलित होंगे।

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