राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी के तृतीय सत्र में हुआ कालिदास साहित्य में सौंदर्य और कला दृष्टि के साथ अनुसन्धान के नए आयामों पर मंथन

कालिदास साहित्य पर अनुसन्धान की नई सम्भावनाओं को तलाशें युवा- प्रो. द्विवेदी
समृद्ध परम्परा रही है कालिदास के अनुशीलन की, युवा उसे जानें- पूर्व कुलपति प्रो. शर्मा

उज्जैन। मध्यप्रदेश शासन के तत्वावधान में विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन एवं कालिदास संस्कृत अकादमी द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कालिदास समारोह के अंतर्गत विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी का तृतीय सत्र अभिरंग नाट्य गृह में आयोजित किया गया। सत्र में कालिदास साहित्य में सौंदर्य और कला दृष्टि के साथ अनुसन्धान के नए आयामों पर मंथन हुआ। सत्र की अध्यक्षता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. बालकृष्ण शर्मा ने की। कार्यक्रम के सारस्वत अतिथि काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी के आचार्य एवं विभागाध्यक्ष डॉ. सदाशिव कुमार द्विवेदी, विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ विद्वान प्रो. केदारनाथ शुक्ल, डॉ. रामचन्द्र ठाकुर, महिदपुर, डॉ. तुलसीदास परोहा, डॉ. रमण सोलंकी एवं प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कालिदास साहित्य पर शोध के विविध आयामों पर विचार व्यक्त किए।

सारस्वत अतिथि प्रो. सदाशिव कुमार द्विवेदी वाराणसी ने अपने उद्बोधन में कहा कि हमें कालिदास की रचनाओं पर अनुसंधान के नए आयामों को तलाशने के लिए सन्नद्ध होना चाहिए। साहित्य शास्त्र और सौंदर्य चिंतन की व्यापक दृष्टि से कालिदास के साहित्य को देखना चाहिए। कालिदास साहित्य का पाठभेद के आधार पर विचार किया जाना चाहिए। कालिदास के साथ किसी अन्य कवि की तुलना कर उनके साहित्य के अनछुए पक्षों को भी उद्घाटित किया जा सकता है।

अध्यक्षीय उद्बोधन पूर्व कुलपति विक्रम विश्वविद्यालय, प्रो. बालकृष्ण शर्मा ने शोधकर्ताओं को बधाई देते हुए कहा कि कालिदास साहित्य के अनुशीलन की समृद्ध परम्परा को जानें। उन्होंने नई दिशा में शोध के लिए प्रवृत्त होने का आह्वान युवा पीढ़ी से किया।

सारस्वत अतिथि डॉ. केदारनाथ शुक्ल ने अपने वक्तव्य में कालिदास के साहित्य में सौंदर्य तत्व की चर्चा की करते हुए कहा कि कालिदास के पूर्व समय में ऐसे कौन से सौंदर्य मानदंड थे, जिन्हें कालिदास ने आगे बढ़ाया। उनकी नए संदर्भ के साथ समीक्षा करनी चाहिए। नव शोधार्थियों को रामायण और कालिदास की सौंदर्य दृष्टि का तुलनात्मक अध्ययन करना चाहिए।

सारस्वत अतिथि पुरातत्ववेत्ता डॉ. आर.सी. ठाकुर ने अपने उद्बोधन में कहा कि कालिदास के साहित्य में जिन मुद्राओं का वर्णन है उनसे तत्कालीन सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक स्थितियों का पता चलता है। उज्जैन से ऐसी असंख्य प्रकार की मुद्राएं प्राप्त हुई हैं जिसमें शिव लीला वर्णन मिलता है। हमें इस क्षेत्र में कार्य करना चाहिए और ऐसे और साक्ष्यों को खोजना चाहिए।

डॉ. रमण सोलंकी ने अपने वक्तव्य में मुद्राओं पर बात करते हुए कहा कि कालिदास के साहित्य में वर्णित विषयों पर मुद्राएं, शिलालेख, अभिलेख आदि हमें उज्जयिनी के आस-पास के क्षेत्र, मंदसौर आदि में मिले हैं जिनसे कालिदास एवं विक्रमादित्य के काल के महत्वपूर्ण प्रमाण प्राप्त होते हैं।

प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि महाकवि कालिदास समृद्ध कवि परम्परा के अंग हैं लेकिन उन की सौंदर्य दृष्टि तक कोई दूसरा पहुंच नहीं सका है। पार्वती, सीता और शकुंतला के सौंदर्य चित्रण में उन्होंने त्याग और तापस जीवन के साथ अंतर्बाह्य सौंदर्य के सम्बन्धों को प्रकट किया है। उनके काव्य ने अलंकार शास्त्र को नई दिशा दी।

डॉ. तुलसीदास परोहा, डॉ. उपेंद्र भार्गव उज्जैन आदि ने भी विचार व्यक्त किए। इस सत्र में डॉ. शोभा मिश्रा कानपुर, प्रो. के. येडूकोंडुलु विशाखापत्तनम, आंध्रप्रदेश, प्रो. श्रीनिवासन अय्यर, उदयपुर, अंगिरा तिवारी, वाराणसी, डॉ. धर्मेंद्र मेहता और डॉ. नवीन मेहता, सांची का संयुक्त पत्र, डॉ. अनीता सिंह, आगरा, डॉ. श्रुति कीर्ति, शिमोगा, कर्नाटक, प्रो. शशिकांत द्विवेदी, वाराणसी, डॉ. राज किशोर आर्य, वाराणसी, राजश्री जोशी, डॉ. शैलेन्द्र कुमार साहू, वाराणसी, डॉ. वैशाली गवली, भोपाल, गुरु अभिलाषा, आगरा, डॉ. अनुज मिश्रा, वाराणसी, सतीश दवे उज्जैन, डॉ. ज्योति यादव खाचरोद आदि ने शोध पत्र वाचन किया।

अतिथियों को साहित्य, विक्रम रिसर्च जर्नल एवं पुष्पमाल अर्पित करते हुए उनका सम्मान कालिदास समिति के सचिव प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा, डॉ. योगेश्वरी फिरोजिया, डॉ. सर्वेश्वर शर्मा, डॉ. महेंद्र पंड्या ने किया। आयोजन में देश के विभिन्न राज्यों के विद्वान, शिक्षक प्रबुद्ध जन और शोधार्थी बड़ी संख्या में उपस्थित थे। सत्र का संचालन डॉ. रश्मि मिश्रा ने किया और आभार डॉ. सर्वेश्वर शर्मा ने व्यक्त किया।

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