समाज सेवा हो तो ऐसी, सेवादारी मंडल जैसी

ऐसी सेवा, जो मानव की मृत्यु होने पर उसकी शव से लेकर…पूरे क्रिया कर्म व अंतिम संस्कार तक
सेवादारी मंडल के सेवादारियों को सैल्यूट-1981 में मंडल के गठन से लेकर आज तक प्रचार, पद मैं मैं का स्वार्थ व मोह नहीं देखा- एड. के.एस. भावनानी

एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र। वैश्विक स्तर पर सेवा एक ऐसी क्रिया है जिसके रूप अनेक हैं, परंतु मंजिल एक ही है, कि सृष्टि के प्राणियों को उनके स्तर की परेशानियों, दिक्कतों, समस्याओं से बचाना। यह सेवा कोई अकेले, परिवार, चार दोस्तों से मिलकर या फिर संस्था, समिति, संगठन या पार्टी बनाकर की जाती है, जो भारत में तो आदि अनादि काल से हो रही है। परंतु वक्त के बदलते पहिए के साथ सेवा करने का ट्रेंड भी बदला हुआ दिख रहा है। मेरा मानना है कि इस सेवा में अब कुछ हद तक स्वार्थ भी घुस गया है, यानें उसे सेवा के पीछे छिपी एक निजी स्वार्थ की कड़ी भी होती है। मैंने देखा जैसे कोई प्राकृतिक संपदा, रेती, बजरी गिट्टी, मुरूम इत्यादि सप्लाई का कार्य करते हैं, स्वाभाविक है इसमें वन टू का फोर वाला गेम होता है, उसमें कोई बढ़ती सेवा समिति बना कर संस्थापक बन जाते हैं। अपने पारिवारिक सदस्यों और रिश्तेदारों निजी खास दोस्तों को जोड़कर व स्थानीय नेताओं, विधायकों से तालमेल कर फाइनेंस से समिति संचालित करने से लेकर उसकी आड़ में पहचान के बलपर अवैध प्राकृतिक संसाधनों का खनन दोहन का धंधा शुरू है। जो समिति की आड़ में बेखौफ, बेरोक-टोक बिंदास शुरू है।

जबकि ऐसे भी अनेक सामाजिक मंडल, सेवा समितियां व संस्थाएं हैं जो बिल्कुल निस्वार्थ मानवीय सेवा कर राष्ट्रहित में अपना योगदान दे रहे हैं, जिनका किसी भी प्रकार से स्वार्थ या निजी हित से कोई मतलब नहीं रहता। किसी भी प्रकार के कोई मीडिया प्लेटफॉर्म पर प्रचार नहीं होता। किसी भी सदस्य को किसी पद का लालच नहीं होता। संस्था या मंडल में कोई भी मैं मैं वाला संस्थापक बंदा नहीं होता। अगर उनको अध्यक्ष का पद संभालने को बोला जाए तो नहीं बोलता है। उनके मंडल का या संस्था में कभी चुनाव नहीं हुआ। सर्वसम्मति से अध्यक्ष का कार्यभार व कार्यकारिणी का गठन होता है जो आज के दौर में पार्टी अध्यक्ष के लिए ही नहीं बल्कि कार्यकारिणी के लिए भी मारामारी वाद-विवाद होता है। सचिव बनने के लिए अड़े रहते हैं पर सहसचिव नहीं बनते, उनकी शान के खिलाफ होता है। अध्यक्ष या अन्य पदों पर संस्थापक खुद के मोहरे रखता है। आज हम समाज सेवा स्तर पर बात इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि ऐसे ही प्रचार, पद, वैभव से दूर एक संस्था सिंधी सेवादारी मंडल के अध्यक्ष पद का चुनाव बिना किसी तामझाम के आपसी सहमति से हुआ और अध्यक्ष कपिल नानिकराम होतचंदानी चुने गए। किसी ने मेरे एक व्हाट्सएप ग्रुप में बधाई संदेश डाला, तो मेरा ध्यान इस ओर गया।

चूंकि मैं इस संस्था को इसकी स्थापना 1981 से लेकर जानता हूं। इसके संस्थापक स्व. सनमुखदास ईंदनदास भावनानी रहे थे व अध्यक्ष स्व. चोइथराम गलानी, स्व. बुधरमल चुगवानी, स्व. गुलाबराय छतानी, धर्मदास चावला, कमल लालवानी सहित अनेको अध्यक्ष रहे परंतु खासियत यह रही कि यह समिति परिवारवाद से बिल्कुल हटकर रही। उपरोक्त अध्यक्षों के परिवार वालों से आज भी इस समिति का कोई अधिकारी, पदाधिकारी नहीं बना जो रेखांकित करने वाली बात है। चूंकि इस मंडल की सेवा जीवित मानव से नहीं बल्कि मानव की मृत्यु होने पर उसकी बॉडी के क्रियाकर्म से शुरू होकर उसके पूरे अंतिम संस्कार के क्रियाकर्म तक होती है। जो सामान्य मृत्यु तक तो ठीक है पर कोविड-19 के दौर में जब गोंदिया में सैकड़ो मृत्यु हुई तो इस सिंधी सेवादारी मंडल की ऐतिहासिक अभूतपूर्व सेवा को भुलाया नहीं जा सकता। जब परिवार वाले भी शव को हाथ लगाने से भी डर रहे थे तो सिंधी सेवादारी मंडल के सदस्यों ने उनके अंतिम संस्कार में 3 से 4 घंटे तक समय देते थे। कोई वित्तीय सहायता नहीं लेते, कहीं से कोई फाइनेंस नहीं मिलता, खुद सदस्य अपने पास से थोड़े-थोड़े रुपए इकट्ठा करके सेवा में सहयोग करते हैं जो रेखांकित करने वाली बात है। इसलिए आज हम सिंधी सेवादारी मंडल के सदस्यों से बैठक में चर्चा के आधार पर इस आलेख के माध्यम से चर्चा करेंगे समाज सेवा हो तो ऐसी, सिंधी सेवादारी मंडल जैसी, उनके सभी 16 सदस्यों को सैल्यूट, 1981 से मंडल के गठन से लेकर आज तक प्रचार प्रसार पद व मैं मैं में कभी मोह नहीं देखा जो रेखांकित करने वाली बात है।

साथियों बात अगर हम सिंधी सेवादारी मंडल में सेवाओं की करें तो उनकी सेवाएं नि:शुल्क होती है। चंदे के लिए मार्केट में कभी रसीद बुक लेकर नहीं निकलते, क्योंकि इसमें शारीरिक श्रम होता है। मृतक के परिवार वालों के कहने पर नेत्रदान की व्यवस्था एक अन्य व्यक्ति से मिलकर की जाती है तथा चेट्रीचंदड्र के दिवस पर मृतक के परिवार वालों को स्मृति चिन्ह देखकर उन्हें सम्मानित किया जाता है, जो खर्चा आता है वह सभी सदस्य मिलकर करते हैं। मंडल में कोई आर्थिक लेनदेन नहीं होता, बैंक अकाउंट में भी सिर्फ 6-7 हज़ार मात्र जमा पड़े हैं। मंडल की सेवाओं में सबसे पहले मृतक के परिवार से फोन आने पर उनकी अंतिम यात्रा संस्कार तक की सेवा मृतक के परिवार वालों को उनके मेहमान व बच्चों के लिए अंतिम संस्कार की स्थिति के अनुसार सुबह नाश्ते, दोपहर और रात्रि का खाना की व्यवस्था, अंतिम संस्कार में परिवार आर्थिक सक्षम नहीं है तो अंतिम संस्कार की आर्थिक व्यवस्था, मंडल पूरी तरह से परिवारवाद से दूर सहित कोविड-19 काल में तो सैकड़ो मृतकों की अद्भुत अनोखी अंतिम संस्कार व्यवस्था में सहभागी मंडल के सदस्यों की सेवा काबिल-ए-तारीफ थी। जिसे हम नीचे सेवाओं की प्रक्रिया पर चर्चा करेंगे।

साथियों बात अगर हम मानव की मृत्यु से लेकर पूरी अंतिम संस्कार की प्रक्रिया मंडल सदस्यों द्वारा करने की करें तो, मृत्यु की कोई समय सीमा तारीख निश्चित नहीं होती, यानी मंडल के सदस्य 24×7 हर समय तैयार रहते हैं। मृतक परिवार से फोन आने पर उनके घर पहुंच कर पूरी प्रक्रिया बताते हैं, अंतिम संस्कार का समय निश्चित करवा कर, स्थिति के अनुसार परिवार के बच्चों, मेहमानों को सुबह नाश्ते व भोजन की व्यवस्था में नाश्ता खुद व दोपहर या रात्रि भोजन के लिए एक अन्य संस्था ‘दिशा’ को फोन करते हैं। अंतिम संस्कार के एक घंटा पहले उस परिवार में पहुंचकर यदि मृतक प्राणी के परिवार वालों द्वारा बॉडी को स्नान नहीं करवाया जाता तो, मंडल के सदस्य उस मृतक प्राणी को स्नान करवाकर तथा कांधी नहीं होने की दिशा में कांधी बनकर व आर्थिक स्थिति नहीं होने की दिशा में आर्थिक स्थिति की पूरी मदद कर, अंतिम संस्कार की क्रिया करवाते हैं। अंतिम संस्कार के दूसरे दिन प्राणी ठीक से अग्निव्रत हुआ या नहीं यह देखने जाने में भी सहयोग करते हैं, यदि शरीर अग्निव्रत होने से बचा है तो फिर उसे अग्निव्रत करने की भी सेवाएं देते हैं।

साथियों बात अगर हम मृतक परिवार से फोन आने पर मंडल सदस्यों द्वारा अपने पूर्व नियोजित सभी महत्वपूर्ण कार्यों को कैंसिल करने के सटीक उदाहरण की करें तो, चार मामलों का मैं ख़ुद गवाह हूं।
(1) संस्थापक स्वर्गीय सनमुखदास भावनानी जी अपने समधी जो सीरियस थे उनसे मिलने नागपुर जाने वाले थे, सुबह 5 बजे उन्हें पिंजामल और भागचंद गदलानी की माता की मृत्यु की फोन आई, उन्होंने यात्रा कैंसिल कर दूसरे दिन नागपुर गए और तकदीर ऐसी थी के तीसरे दिन उनके समधि की मृत्यु हो गई।
(2) स्वर्गीय गुलाबराय छतानी के पोते की छठी का कार्यक्रम शुरू था, इस समय उन्हें मृतक परिवार से फोन आने पर छठी प्रोग्राम बीच में ही छोड़कर चले गए जो रेखांकित करने वाली बात है।
(3) कपिल होतचंदानी की शादी के 2 दिन पहले वह अपनी शादी के प्रोग्राम रस्मों में थे तो मृतक परिवार से फोन आने पर वह खुद की शादी की रस्म बीच में छोड़कर सेवा के लिए चले गए।
(4) सुनील छाबड़ा के घर में शादी की रस्म शुरू थी परंतु मृतक परिवार से फोन आने पर बीच में ही शादी छोड़कर चले गए जो रेखांकित करने वाली बात है।

साथियों बात अगर हम कोविड19 के दौरान सैकड़ो मृतकों के इस नाजुक दौर में सेवा की करें तो वह एक ऐसी स्थिति थी जब परिवार वाले भी मृतक के पास नहीं जा रहे थे, परंतु सिंधी सेवादारी मंडल के सदस्य खास करके सुनील छाबड़ा कोविड में मृत प्राणियों के अंतिम संस्कार में भी बिना किसी अपनी स्वास्थ्य डर के सेवा में मग्न रहे, ऐसा नहीं कि सिर्फ अपने समाज में बल्कि अनेक दूसरे समाजो में भी अंतिम संस्कार में सेवा में शामिल हुए थे, जो रेखांकित करने वाली बात है।

साथियों बात अगर हम सिंधी सेवादारी मंडल के मृतक शरीर के परिवार वालों की अनुशंसा पर उनके नेत्रदान करवाने की करें तो, परिवार वालों को नेत्रदान के लिए प्रेरित करने में सिंधी सेवादारी मंडल के सदस्यों का अहम रोल रहता है जिसमें एक अन्य व्यक्ति का भी साथ रहता है। मंडल के सदस्यों का नेत्रदान करवाने में महत्वपूर्ण रोल होता हैं, जिन भी मृतकों का नेत्रदान हुआ है, उनके परिवार वालों को हर वर्ष चेट्रीचंड्र के दिन एक स्मृति चिन्ह देकर उनका सम्मान करते हैं जो रेखांकित करने वाली बात है।

एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी : संकलनकर्ता, लेखक, कवि, स्तंभकार, चिंतक, कानून लेखक, कर विशेषज्ञ

साथियों बात अगर हम इस नेक, ऊंची, दिल के भावों से की गई सेवा की करें तो, प्रत्येक मृतक की अंतिम यात्रा प्रक्रिया में तीन से चार घंटे देना, वित्तीय सहयोग व फंड रसीदों के बल पर मार्केट से वसूली नहीं करना जो हम देखते हैं की अधिकतम संस्थाएं वसूली करती है, आपसी शेयर भरकर मंडल चलाना, मृतक के परिवारों को नाश्ता या दोपहर और रात्रि का भोजन स्थिति अनुसार देना। कांधी बनाकर मृतक को स्नान करवाना, 24*7 घंटे सेवा के लिए तत्पर तैयार रहना, अधजले शव को फिर से जाकर अग्निव्रत सहित पूरी प्रक्रिया निस्वार्थ, निशुल्क सेवा के भाव से करने को रेखांकित करना जरूरी है। ऐसे महा मानवो को सभी को सेल्यूट करना चाहिए। भारत के हर शहर व पूरे विश्व के देशों में इन सिंधी सेवादारी मंडल से प्रेरणा लेकर अपने देश, शहरों, गांवों में भी ऐसी सेवा करने की प्रेरणा इस संगठन से लेनी चाहिए, क्योंकि प्राणी की जीते जी सेवा तो सभी करते हैं, परंतु उसकी मृत्यु के बाद ऐसी भावपूर्ण सेवा विरले ही संस्था समिति मंडल करता है। इसीलिए सिंधी सेवादारी मंडल को एक बार फिर सैल्यूट!

अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि समाज सेवा हो तो ऐसी…सेवादारी मंडल जैसी…ऐसी सेवा, जो मानव की मृत्यु होने पर उसके शव से लेकर…पूरे क्रियाकर्म व अंतिम संस्कार तक। सेवादारी मंडल के सेवादारियों को सैल्यूट-1981 में मंडल के गठन से लेकर आज तक प्रचार, पद, मैं मैं का स्वार्थ व मोह नहीं देखा।

(स्पष्टीकरण : इस आलेख में दिए गए विचार लेखक के हैं और इसे ज्यों का त्यों प्रस्तुत किया गया है।)

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