वाराणसी। जन्म कुंडली में पंचम भाव संतान सुख का भाव होता है। इस भाव में जितने ग्रह हों और जितने ग्रहों की दृष्टि हों उतनी संख्या में संतान प्राप्त होती है। पुरुष ग्रहों के योग और दृष्टि से पुत्र और स्त्री ग्रहों के योग और दृष्टि से कन्या की संख्या का अनुमान लगाया जाता है।
शुभ ग्रहों की दृष्टि : पंचम भाव में सूर्य पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो तीन पुत्रों का योग बनता है। पंचम में विषम राशि का चंद्र शुक्र के वर्ग में हो या चंद्र शुक्र से युत हो तो पुत्र होते हैं।
तीनों ग्रहों के स्पष्ट राश्यादि : गुरु, चंद्र और सूर्य इन तीनों ग्रहों के स्पष्ट राश्यादि जोड़ने पर जितनी राशि संख्या हो उतनी संतानें होती हैं।
पंचम भाव से या पंचमेश से शुक्र या चंद्रमा जिस राशि में हो उस राशि तक की संख्या के बीच में जितनी राशि संख्या हो उतनी संतान प्राप्त होती हैं।
पंचम भाव से या पंचमेश से शुक्र या चंद्र जिस राशि में स्थित हो उस राशि तक की संख्या के बीच जितनी राशियां हों उतनी ही संतान संख्या समझनी चाहिए।
उदाहरण के तौर पर यदि पंचम भाव में पहली राशि मेष हो और चंद्र मिथुन राशि में हो तो तीन संतानों का सुख मिलता है।
पंचम भाव में गुरु हो : पंचम भाव में गुरु हो, रवि स्वक्षेत्री हो, पंचमेश पंचम में ही हो तो पांच संतानें होती हैं।
कुंभ राशि का शनि पंचम भाव में हो तो पांच पुत्र होते हैं।
मकर राशि में 6 अंश 40 कला के भीतर का शनि हो तो तीन पुत्र होते हैं।
पंचम भाव में मंगल हो तो तीन पुत्र, गुरु हो तो पांच पुत्र, सूर्य-मंगल दोनों हो तो 4 पुत्र।
सूर्य-गुरु हो तो 6 संतानें होती हैं, जिनमें पुत्र-पुत्री दोनों हो सकते हैं।
शुक्र हो तो पांच कन्याएं होती
पंचम भाव में चंद्रमा गया हो तो तीन ज्ञानी पुत्रियों की प्राप्ति होती हैं। शुक्र हो तो पांच कन्याएं होती हैं और शनि गया हो तो सात कन्याएं होती हैं।
कर्क राशि का चंद्र पंचम भाव में हो तो अल्पसंतान योग होता है। पंचमेश नीच का होकर छठे, आठवें, 12वें भाव में पापग्रहों से युक्त हो तो दंपती संतान सुख से वंचित रहता है।
आधुनिक मतानुसार देखें तो निम्न तीन तरीकों से संतान संख्या काफी हद तक सही पाई जाती है।
1. अष्टक वर्ग के द्वारा-गुरु ग्रह के अष्टक वर्ग में गुरु ग्रह से पंचम भाव में (गुरु पंचम भाव का तथा संतान का कारक होने के कारण) जितने शुभ बिंदु होंगे उतनी ही संतान होती है। यहां यह ध्यान रखंे कि शत्रु ग्रह, नीच ग्रह द्वारा दी गई बिंदु कुल बिंदुओं से घटाएं। अब जो संख्या बचे वह संख्या पैदा हुई संतानों की संख्या होगी।
2. पंचमेश जितने नवांश गुजार चुका हो उतनी ही संतान होती है यदि उस पर शत्रु ग्रहों का प्रभाव हो तो ग्रहानुसार संख्या घटानी चाहिए।
3. पंचमेश के उच्चबल साधन द्वारा उसकी रश्मियां ज्ञात कर उन रश्मियों के आधार पर संतान संख्या जानी जा सकती है। मंगल, बुध व शनि के उच्च राशि पर होने से इनकी 5-5 रश्मियां गुरु के उच्च राशि होने पर 7 रश्मियां चंद्र के उच्च होने पर 9 तथा सूर्य के उच्च राशि होने पर 10 रश्मियां होती हैं।
उदाहरण के लिए यदि जन्म लग्न में शनि, मंगल अथवा बुध उच्च राशि के हों तो संतान की जन्म संख्या 5 हो सकती है।
पुत्र कितने होंगें? यदि पाप ग्रह पंचमेश होकर पंचम में हो तथा पंचम में अन्य पाप ग्रह हो, तो पुत्र अधिक होते हैं। गुरु, मंगल, सूर्य तथा पंचमेश पुरुष राशि के नवांश में हों अथवा पुरुष ग्रहों से युत या दृष्ट हों तो पुत्रों की संख्या अधिक होती है। पंचम भाव में पंचमेश पुरुष राशि के नवांश में हो अथवा पुरुष ग्रहों से युत या दृष्ट हो तो पुत्रों की संख्या अधिक होती है। मकर राशि में केवल गुरु हो और वह पंचम में हो तो कई पुत्र होते हैं। लग्न में राहु, पंचम में गुरु तथा नवम में शनि हो, तो छह पुत्र होते हैं। कुंभ राशिस्थ शनि एकादश में हो, तो अनेक पुत्र होते हैं। पंचम भाव में तुला राशि हो तथा पंचम भाव पर चंद्र व शुक्र की दृष्टि हो, तो कई पुत्र होते हैं। पंचम भाव में सूर्य शुभ ग्रहों से दृष्ट हो, तो तीन पुत्र होते हैं। पंचम में सूर्य हो, तो एक पुत्र, मंगल हो, तो तीन तथा गुरु हो, तो पांच पुत्र होते हैं। मकर अथवा कुंभ से पंचम राशि क्रमशः वृष या मिथुन में शनि हो तो केवल एक पुत्र होता है।
पुत्रियां कितनी होंगी? एकादश में बुध, चंद्र या शुक्र हो, तो पुत्रियां अधिक होती हैं। चंद्र और बुध पंचम में हो, तो अनेक पुत्रियां होती हैं। लग्न या चंद्र मंगल की राशि में तथा शुक्र के त्रिशांश में हो तो कई पुत्रियां होती हैं। पंचम में सम राशि या नवांश हो, उसमें बुध या शनि स्थित हो तथा उस पर शुक्र या चंद्र की दृष्टि हो तो अनेक पुत्रियां होती हैं। पंचम भाव में चंद्रमा की राशि अथवा शुक्र की सम राशि हो उस पर चंद्रमा या शुक्र की दृष्टि हो तो अनेक पुत्रियां होती हैं। पंचमेश द्वितीय या अष्टम में हो तो अनेक पुत्रियां होती हैं। चंद्र, बुध या शुक्र पंचम में हो तो पुत्रियां अधिक होती हैं। चंद्रमा, बुध या शुक्र पंचमेश होकर द्वितीय या अष्टम में हो तो पुत्रियों की संख्या अधिक होती है।
मकर राशिस्थ शनि पंचम में हो तो पुत्रियां अधिक होती हैं। बुध पंचम या सप्तम भाव में सम राशि में हो तो अनेक पुत्रियां होती हैं। पंचम में सम राशि हो तथा एकादश में बुध, चंद्रमा व शुक्र हो तो पुत्रियां अधिक होती हैं। पंचम में चंद्रमा हो तो दो, बुध हो तीन, शुक्र हो तो पांच तथा शनि हो तो सात पुत्रियां होती हैं। तृतीय भाव में बली बुध हो तथा पंचम में चंद्रमा हो तो पांच पुत्रियां होती हैं। बुध पंचम में हो अथवा पंचमेश बुध हो तो तीन पुत्रियां होती है। कर्क राशि में गुरु पंचम में हो तो कन्याएं अधिक होती हैं। चंद्र या शुक्र मकर राशि में पंचम में हो, तो पुत्रियां अधिक होती हैं।
प्राचीन मत इस प्रकार से है :
1. लग्न से पांचवें गुरु, गुरु से पांचवें शनि, शनि से पांचवें राहु तो एक पुत्र होता है।
2. पंचमेश का नवांशपति यदि स्वराशि के नवांश में हो तो एक पुत्र होता है।
3. पंचम भाव में जितने ग्रहों की दृष्टि हो उतनी संतान होती है।
4. पंचमेश उच्च का हो तो संतान अधिक होती है।
5. पंचम भाव में पंचमेश संग गुरु हो तो अनेक संतान होती है।
6. पंचम भाव में जितने ग्रह हों उतनी संतान होती है।
7. पंचम भाव में जितने स्त्री-पुरुष ग्रहों का प्रभाव होता है उतनी ही स्त्री-पुरुष संतान होती है।
8. कहीं-कहीं पंचमेश की राशि संख्या के अनुसार भी संतान संख्या देखी जाती है। स्पष्ट कहा जा सकता है कि आज के संदर्भ में यह प्राचीन मत कारगर साबित नहीं होते हैं।
नोट :- संतान संबंधित समस्याओं से निवारण के लिए संपर्क करें :
ज्योतिर्विद रत्न वास्तु दैवज्ञ
पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री
मो. 99938 74848
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