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(प्रथम किश्त)
अशोक वर्मा “हमदर्द” कोलकाता। चमकते हुए चाँद की रोशनी से नहाई हुई उस रात, जब जमीला ने पहली बार आलोक की आँखों में झांका था, तो उसे लगा था जैसे उसे पूरी दुनिया मिल गई हो। दोनों की पहली मुलाकात एक छोटी-सी किताबों की दुकान में हुई थी। जमीला उर्दू शायरी की दीवानी थी और आलोक को प्रेमचंद की कहानियाँ बेहद पसंद थीं।
“आप भी शायरी पढ़ते हैं?” आलोक ने मुस्कुराते हुए पूछा।
“हाँ, मुझे शायरी में अपना दिल दिखता है,” जमीला ने शर्माते हुए जवाब दिया।
उस पहली बातचीत में ही दोनों के बीच एक ऐसा जुड़ाव हुआ, जो शब्दों से परे था। आलोक की सरलता और जमीला की गहराई ने उन्हें एक-दूसरे की ओर खींच लिया। धीरे-धीरे उनकी मुलाकातें बढ़ने लगीं। गंगा किनारे बैठकर उन्होंने कई शामें बिताईं, जहाँ जमीला अपनी पसंदीदा गजलें सुनाती और आलोक उसे अपनी कहानियाँ सुनाता।
जमीला और आलोक की दुनिया अलग थी। जमीला एक रूढ़िवादी मुस्लिम परिवार से थी, जहाँ परंपराओं और मज़हब की जंजीरों में लड़कियों को बाँधकर रखा जाता था। आलोक हिंदू था, जो अपनी आजाद सोच के लिए जाना जाता था।
एक शाम, जब सूरज डूब रहा था और आसमान लाल रंग से सजा था, आलोक ने जमीला का हाथ थामते हुए कहा, “जमीला, क्या तुमने कभी मेरी आँखों में अपने सवालों के जवाब देखे हैं?”
जमीला ने कुछ नहीं कहा। उसकी आँखें जवाब दे रही थीं।
“मैं तुमसे प्यार करता हूँ,” आलोक ने कहा।
जमीला की आँखें भर आई। उसने धीरे से कहा, “मैं भी तुमसे प्यार करती हूँ, लेकिन हमारी राहें मुश्किलों से भरी हैं। हमारा मजहब, हमारा समाज, सब हमारे खिलाफ हैं।”
उनकी मोहब्बत की ख़ुशबू उनकी दुनिया में फैल चुकी थी। जमीला के घरवालों को उनकी मोहब्बत के बारे में पता चल गया। उसके अब्बू ने उसे कड़े लहजे में कहा, “तुम्हारी ये मोहब्बत हमारे खानदान की इज्जत मिट्टी में मिला देगी। तुम आलोक से कभी नहीं मिलोगी।”
दूसरी तरफ, आलोक के घरवालों ने भी उसे समझाने की कोशिश की।
“ये प्यार नहीं, एक जुनून है। समाज में इस रिश्ते को कोई जगह नहीं मिलेगी,” उसके पिता ने कहा।
जमीला और आलोक दोनों जानते थे कि उनका प्यार किसी गुनाह से कम नहीं समझा जाएगा। लेकिन उन्होंने हार मानने से इनकार कर दिया। उन्होंने भागकर शादी करने का फैसला किया।
भागने से पहले, उन्होंने आखिरी बार गंगा किनारे मिलना तय किया। उस रात चाँदनी रोशनी में दोनों ने एक-दूसरे का हाथ थामा।
“आलोक, अगर हमें जुदा होना पड़े तो क्या तुम मुझे भूल जाओगे?” जमीला ने पूछा।
“नहीं, जमीला। तुम्हारी आँखों में मेरे हर सवाल का जवाब है। तुम मेरी रूह का हिस्सा हो। तुम्हें भुलाना मेरे बस की बात नहीं।”
लेकिन उनकी किस्मत ने उन्हें साथ नहीं रहने दिया। उसी रात जमीला के परिवारवालों ने उसे ढूंढ लिया। उसे जबरदस्ती घर ले जाया गया। आलोक ने उसे रोकने की बहुत कोशिश की, लेकिन वह बेबस था।
घर लौटने के बाद जमीला को उसकी मर्ज़ी के खिलाफ शादी करने के लिए मजबूर किया गया। उसने अपनी जिंदगी को एक बंद किताब की तरह जीना शुरू कर दिया। लेकिन उसकी आँखों में हर समय आलोक की तस्वीर बसी रहती। वह जानती थी कि वह कभी आलोक को भूल नहीं पाएगी।
आलोक ने जमीला के बिना अपनी जिंदगी अधूरी महसूस की। वह हर रोज गंगा किनारे जाता और उसकी यादों में खो जाता। उसने कई बार जमीला से मिलने की कोशिश की, लेकिन हर बार उसे नाकामयाबी ही हाथ लगी।
उसने अपनी मोहब्बत को शब्दों में समेट लिया। उसने जमीला के लिए शायरी लिखना शुरू कर दिया। हर शेर में उसका दर्द छलकता था।
“तेरी यादें मेरे ख्यालों में रहती हैं,
तेरी आँखें मेरे सवालों में रहती हैं।
मैं तुझे भुला नहीं सकता,
क्योंकि तू मेरी हर साँस में बसती है।”
वक्त बीतता गया, लेकिन उनके दिलों का दर्द कभी कम नहीं हुआ। सालों बाद, आलोक को खबर मिली कि जमीला की शादी टूट चुकी है और वह अब अकेली रहती है। उसने उसे ढूंढने की कोशिश की, लेकिन तब तक जमीला शहर छोड़ चुकी थी।
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जमीला और आलोक की कहानी अधूरी रह गई। उनका प्यार समाज की बंदिशों में बंधकर रह गया। लेकिन उनकी मोहब्बत आज भी जिंदा है, उन गंगा किनारों पर, उन किताबों में, और उन शायरियों में, जो आलोक ने जमीला के लिए लिखीं।
“हम मिल न सके, ये किस्मत का खेल था,
पर हमारी मोहब्बत आज भी अमर है।”
क्रमशः
(यह कहानी कॉपी राइट के अधीन है)
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