प्रांजल वर्मा, कोलकाता। महिलाओं के प्रति हिंसा, चाहे वह कोलकाता हो या महाराष्ट्र का बदलापूर, यह एक गहरी सामाजिक और सांस्कृतिक समस्या को उजागर करता है। बलात्कार जैसे अपराधों से यह साबित होता है कि समाज में कुछ पुरुषों की मानसिकता में महिलाओं के प्रति आदर और समानता की कमी है। कानून का भय या तो पर्याप्त रूप से लागू नहीं हो रहा, या फिर वह प्रभावी नहीं है। कई मामलों में आरोपियों को राजनीतिक संरक्षण मिलता है, जिससे वे कानून से बच निकलते हैं। यह भी सच है कि समाज में गहराई तक पैठी पितृसत्तात्मक मानसिकता के कारण अपराधी को दंड का भय नहीं होता।
नेताओं और प्रभावशाली व्यक्तियों द्वारा संरक्षण भी अपराधियों को और अधिक साहसी बना सकता है, जिससे वे निर्भीक होकर ऐसे घिनौने कृत्य करते हैं। कानूनों को सख्ती से लागू करना, त्वरित न्याय और समाज में जागरूकता बढ़ाने से ही इस समस्या को जड़ से समाप्त किया जा सकता है। महिलाओं के खिलाफ हिंसा और यौन उत्पीड़न, चाहे वह कोलकाता जैसी महानगरीय जगह हो या महाराष्ट्र के बदला पूर जैसे ग्रामीण क्षेत्र, हमारे समाज में व्याप्त गहरी और चिंताजनक समस्याओं की ओर इशारा करता है। बलात्कार जैसे जघन्य अपराध यह सिद्ध करते हैं कि कुछ पुरुषों की मानसिकता अब भी महिलाओं को बराबरी का दर्जा देने से इंकार करती है। यह न केवल उनके व्यक्तिगत और सामाजिक दृष्टिकोण को दर्शाता है, बल्कि यह भी बताता है कि उन्हें कानून का डर नहीं है या फिर वे कानून से बच निकलने के रास्ते जानते हैं।
इस समस्या की जड़ में पितृसत्तात्मक मानसिकता, सामाजिक असमानताएँ, और कानून व्यवस्था का कमजोर होना प्रमुख कारण हैं। कानून के प्रति भय की कमी का एक बड़ा कारण यह हो सकता है कि कई बार अपराधियों को राजनीतिक संरक्षण प्राप्त होता है। नेताओं और प्रभावशाली व्यक्तियों के इस संरक्षण से अपराधियों को यह एहसास होता है कि वे बिना किसी गंभीर परिणाम के अपने कृत्य को अंजाम दे सकते हैं। ऐसा तब होता है जब न्यायिक प्रक्रिया धीमी हो, अपराधियों को जल्दी सज़ा न मिले और पीड़ितों को न्याय की जगह सामाजिक अपमान सहना पड़े।
समाज में बलात्कार और यौन अपराधों को लेकर लोगों की सोच भी बदलाव की मांग करती है। अक्सर पीड़ितों को दोषी ठहराने की प्रवृत्ति और अपराधियों को बचाने की कोशिशें इस समस्या को और गहरा बना देती हैं। कानून का सख्ती से पालन और प्रभावी न्याय प्रणाली की आवश्यकता है, ताकि दोषियों को त्वरित और कठोर सज़ा मिल सके। इसके साथ ही, हमें सामाजिक स्तर पर भी महिलाओं के प्रति सम्मान और समानता की भावना को बढ़ावा देने की जरूरत है।
इस विकट स्थिति को सुधारने के लिए कानूनों को और अधिक सख्त बनाना, उनके क्रियान्वयन में तेजी लाना, और समाज में जागरूकता फैलाने की आवश्यकता है। शिक्षा, सामाजिक संवाद और महिलाओं के प्रति दृष्टिकोण में सकारात्मक बदलाव ही इस समस्या का दीर्घकालिक समाधान हो सकता है। जब तक समाज की सोच में बदलाव नहीं आता और कानून व्यवस्था कठोर नहीं होती, तब तक ऐसी घटनाओं पर काबू पाना कठिन रहेगा। महिलाओं की सुरक्षा केवल कानून का ही नहीं, समाज का भी दायित्व है और इसमें हर नागरिक की भूमिका अहम है।
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