निप्र, पलामू। ज्ञान विज्ञान समिति झारखंड के अध्यक्ष शिव शंकर प्रसाद ने प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए कहा कि कोरोना महामारी पिछले 19 महीने से अधिक समय से कहर ढा रहा है। समाज के हर तबके पर इसका बुरा असर पड़ा है खासकर बच्चों की पढ़ाई बहुत प्रभावित हुई है। सरकारी विद्यालय हो या प्राइवेट सभी स्तर के बच्चे इससे प्रभावित हुए हैं। सरकारी दावों की मानें तो ऑनलाइन पढ़ाई के जरिए शैक्षणिक गतिविधियां चालू है पर जमीनी हकीकत बेहद डरावना है।
ज्ञान विज्ञान समिति झारखंड इस काल में इन बच्चों की शैक्षणिक दशा दिशा और जमीनी सच्चाई से रूबरू होने के लिए राज्य के 17 जिलों में 5118 घरों में सर्वे किया जिसमें पलामू के 553 घर शामिल हैं। पलामू के 13 प्रखंडों की 96 पंचायतों में 103 ज्ञान विज्ञान कार्यकर्ताओं ने सर्वे में हिस्सा लिया। 62 प्राइवेट स्कूल एवं 491 सरकारी स्कूलों में सर्वे किया गया।
जब बच्चों से पूछा गया कि आप इस दौरान कितनी बार अपने शिक्षकों से मिले तो केवल 20% बच्चे बोले कि कई बार मिले हैं। जब सवाल किया गया क्या आपके पास स्मार्टफोन या इंटरनेट की सुविधा है तो लगभग 87% का जवाब था कि नहीं। लगभग 7% बच्चों ने ही हां में जवाब दिया। जब अभिभावक से पूछा गया कि क्या इस दौरान बच्चे पढ़ते हैं तो 59% का जवाब था हां कभी-कभार पढ़ते हैं।
ऑनलाइन पढ़ाई के संबंध में पूछने पर 63% का जवाब था कि समझ नहीं आता। 67% बच्चों के पास स्मार्टफोन नहीं थे वे कभी-कभी परिवार के अन्य सदस्य के फोन से जुड़ते हैं, वह भी नियमित रूप से नहीं। 46% का कहना है कि नेटवर्क की समस्या बनी रहती है। इस सर्वे में 51% पिछड़ी जाति, 27% अनुसूचित जाति, 17% अनुसूचित जनजाति और 5% सामान जाति के सर्वे में 59% किसान, लगभग 29% मजदूर के बच्चे हैं जो आम तौर पर सरकारी स्कूल में ही नामांकित हैं।
जब उन्हें हिंदी के कुछ आसान वाक्य पढ़ाया गया, गणित से जोड़ घटाव गुणा भाग हल करने को दिया गया तो वे भागने लगे। कुछ बच्चों ने कोशिश भी की तो अधिकांश अपने स्तर के अनुरूप नहीं कर पाए। दरअसल बच्चों की मनोवृति होती है कि वे जितनी तेजी से सीखते हैं, अगर उनके अभ्यास निरंतर नहीं हो तो वे उतने ही तेजी से भुलते भी हैं। प्राथमिक स्तर की शिक्षा शिक्षा के बुनियादी को मजबूत करता है और इस कोविड-19 में यह बुनियाद हिलते दिख रहा है। यदि हमें बच्चों के भविष्य को बेहतर बनाना है तो हमें प्राथमिक शिक्षा के मजबूती पर ध्यान देना है। अन्यथा इस समय के बच्चे शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़ जाएंगे।
सर्वे के दौरान जब पूछा गया कि क्या स्कूल को खोलना चाहिए तो लगभग 96% बच्चे और अभिभावक का कहना था कि स्कूल खुलना ही चाहिए। वैसे भी सरकारी शिक्षा व्यवस्था खुद अपने अस्तित्व के लिए संघर्षरत है, इसमें लगे अधिकारी से लेकर शिक्षक तक के बच्चे नहीं पढ़ते। शायद उनको अपनी क्षमता पर विश्वास नहीं है। प्राइवेट शिक्षा इतनी महंगी हो गई है कि गरीब एवं मध्यम वर्ग की पहुंच से बाहर होती जा रही है। सरकारी शिक्षा व्यवस्था को कैसे दुरुस्त किया जाए यह यक्ष प्रश्न बना हुआ है।
ज्ञान विज्ञान समिति पलामू के सचिव अजय साहू ने कहा कि इस तमाम झंझावात के बावजूद ज्ञान विज्ञान समिति पलामू की समझ है कि कोविड- प्रोटोकोल का पालन करते हुए स्कूल को खोला जाए ताकि शैक्षणिक वातावरण कायम रहे। बच्चे के भविष्य की बुनियाद मजबूत हो सके।
शिक्षाविद पंकज कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि सर्वे के आधार पर जमीनी सच्चाई के आधार पर रणनीति बनाने की आवश्यकता है ताकि शैक्षणिक गतिविधि सुचारू रूप से चल सके।