गुरु पूर्णिमा महोत्सव : गुरु, ज्ञान प्रेरणा व मार्गदर्शन का प्रतिबिंब है

गुरू ब्रह्मा गुरू विष्णु, गुरु देवो महेश्वरा
गुरु साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नम:
गुरु पूर्णिमा गुरु और शिष्य के पवित्र संबंध का प्रतीक व ज्ञान, मार्गदर्शन के लिए कृतज्ञता व्यक्त कर चरण स्पर्श करना है- एड. के.एस. भावनानी

एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र। वैश्विक स्तर पर पूरी दुनियां में भारत आध्यात्मिक रीति रिवाजों, मान्यताओं व आस्था में सबसे समृद्ध देश है, जिसका मुकाबला कोई नहीं कर सकता। परंतु पिछले दो दशकों से हम देख रहे हैं कि यह ट्रेंड कुछ अलग दिशा में जा रहा है, जिसमें कुछ तथाकथित बाबाओं, गुरुओं की संख्या में काफी इजाफा हुआ है, तो सरकारों को भी सख्त कदम लेने को मजबूर होना पड़ा है। वहीं गुरुवार दिनांक 18 जुलाई 2024 को मीटिंग के बाद अखाड़ा परिषद के बाबा का मीडिया में बयान आया कि फर्जी बाबाओ की सूची जारी की जाएगी, इसमें इनके खिलाफ एक गाइडलाइंस तैयार करने की मांग प्रशासन से की जाएगी व 2025 में संगम नगरी प्रयागराज में महकुंभ मेले में फर्जी बाबाओ की एंट्री पर रोक होगी। आज हम यह बात इसलिए कर रहे हैं क्योंकि 21 जुलाई 2024 को गुरु पूर्णिमा महोत्सव अति उत्साह से मनाया जा रहा है। अति आस्था में डूबे भक्तों के साथ हाथरस हादसे जैसे अनेकों दुर्भाग्य हो चुके हैं, अनेकों बाबा जेल में है। मेरा मानना है कि हर व्यक्ति का असली गुरु उसका माता-पिता ही है उसके बाद ही वे गुरु हैं, इसलिए गुरु पूर्णिमा गुरु और शिष्य के पवित्र संबंध का प्रतीक है,और ज्ञान व मार्गदर्शन के लिए कृतज्ञता व्यक्त कर चरण स्पर्श करना है। इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आलेख के माध्यम से चर्चा करेंगे, गुरु पूर्णिमा महोत्सव 21 जुलाई 2024 – गुरु, ज्ञान प्रेरणा और मार्गदर्शन का प्रतिबिंब है।

साथियों बात अगर हम गुरु पूर्णिमा उत्सव दिनांक 21 जुलाई 2024 की करें तो, गुरु पूर्णिमा हिंदू धर्म के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। यह त्योहार आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। इस साल गुरु पूर्णिमा 21 जुलाई, 2024 को मनाई जा रही। इस दिन दान-पुण्य का विशेष महत्व होता है। गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा और वेद पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। यह त्योहार गुरु और शिष्य के पवित्र संबंध का प्रतिबिंब होता है। इस साल गुरु पूर्णिमा के दिन ग्रहों का दुर्लभ संयोग बन रहा है। साथ ही कुछ राशियों के लिए यह दिन शुभ साबित होने वाला है। सूर्य, बुध और शुक्र कर्क राशि में हैं। इसके साथ ही गुरु वृषभ राशि में हैं। इस दुर्लभ संयोग का कुछ राशियों पर विशेष प्रभाव पड़ेगा। संयोग सर्वार्थ सिद्धि योग ज्योतिष शास्त्र में शुभ योगों में से एक है। यह योग तब बनता है जब कोई विशेष दिन किसी विशेष नक्षत्र के साथ मिलता है। यह योग 21 जुलाई को सुबह 05 बजकर 36 मिनट से शुरू होकर 22 जुलाई को मध्य रात्रि 12 बजकर 14 मिनट पर समाप्त होगा। साथ ही उत्तराषाढ़ा नक्षत्र भोर से लेकर मध्य रात्रि 12:14 तक रहेगा। इस बार गुरु पूर्णिमा पर प्रीति योग बन रहा है। प्रीति योग को प्रेम योग भी कहा जाता है, जो शुभता और सकारात्मकता का प्रतीक माना जाता है। यह योग 21 जुलाई को रात 09 बजकर 11 मिनट से शुरू होकर 22 जुलाई को शाम 05 बजकर 58 मिनट पर समाप्त होगा। इस योग में किए गए सभी कार्य सफल होते हैं।

गुरु, एक ऐसा शब्द है जो ज्ञान, प्रेरणा और मार्गदर्शन का प्रतिबिंब है। गुरु वे होते हैं जो अंधकार में प्रकाश लाते हैं, अज्ञानता को दूर करते हैं और हमें जीवन का सही मार्ग दिखाते हैं। गुरु पूर्णिमा, जिसे व्यास पूर्णिमा और वेद पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार होता है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार यह त्योहार हर साल के आषाढ़ मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। गुरु पूर्णिमा का महत्व गुरु और शिष्य के पवित्र संबंध का प्रतीक है। इस दिन, शिष्य अपने गुरु के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं और उनके ज्ञान और मार्गदर्शन के लिए उनका सम्मान करते हैं। गुरु पूर्णिमा भारत में अपने आध्यात्मिक गुरु के साथ-साथ अकादमिक गुरुओं के सम्मान में उनके प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए मनाया जाने वाला पर्व है। आइए इस लेख में जानते हैं कि इस साल के गुरु पुर्णिमा की तिथि क्या है और साथ ही गुरु पुर्णिमा के इतिहास और महत्व के बारे में जानेंगे। इस दिन, लोग अपने गुरुओं के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए उनके चरणों में स्पर्श करते हैं, उन्हें मिठाई और फूल भेंट करते हैं, और उनका आशीर्वाद लेते हैं।

गुरु मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। कई जगहों पर, गुरु शिष्य परंपरा को दर्शाने वाले नाटक और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। लोग इस दिन दान-पुण्य भी करते हैं। गुरु पूर्णिमा के दिन जरूर करें ये काम हर इंसान के जीवन में कोई न कोई गुरु होता है, खास बात ये है कि जो किसी को गुरु नहीं मानता है वो भी किसी न किसी से अपने जीवन में सीखता है। हम सब के जीवन में कोई न कोई हमारा आदर्श होता है। वे भी हमारे गुरु के समान होते हैं। गुरु पूर्णिमा के दिन सभी लोगों को अपने गुरु के प्रति सम्मान व्यक्त करना चाहिए। ऐसा करने से न सिर्फ गुरु और शिष्य के बीच का संबंध अच्छा होता है बल्कि दोनों को एक दूसरे के प्रति सम्मान और बढ़ जाता है। बता दें यह सब मान्यताओं के आधार पर है इसका कोई सटीक प्रमाण नहीं है।

साथियों बात अगर हम सर्वश्रेष्ठ प्रथम गुरु हमारे माता-पिता होने की करें तो, वैश्विक स्तर पर आदि अनादि काल से भारत माता की धरती पर माता-पिता को सर्वश्रेष्ठ गुरू मानने के अनेकों या यूं कहें कि अनगिनत उदाहरण से इतिहास भरा पड़ा है परंतु वर्तमान परिपेक्ष में मैं यह महसूस कर रहा हूं कि समाज का एक बहुत बड़ा तबका अपने जीवन शैली को परिवर्तित करने में आतुर है। आदि-अनादि काल से हमारे भगवानों की पूजा अर्चना हो रही थी परंतु वर्तमान समय में उपवास पूजा अर्चना तो क्या उनकी तस्वीर भी हटा दी गई है और बहुत ही जोर-शोर से नए आधुनिक बाबाओ गुरुओं की सेवा में लग गए हैं।अलग-अलग स्तर पर उनकी गुरु दीक्षा लेकर केवल उनके ही हो गए हैं। यहां तक कि अपने माता पिता का दर्जा भी अपने उस गुरु से कम कर दिया है। मैं देख रहा हूं कि आजकल उन भक्तगणों सेवकों के लिए अपने गुरुवर की आज्ञा सर्वोपरि हो गईं है, उन पर सर्वस्व निछावर कर देते हैं। जबकि अपने माता-पिता की अवज्ञा करने में बिल्कुल पीछे नहीं हटते उनका सम्मान की जगह अपमान करते हैं, उनके लिए अपने माता-पिता से भी बड़े गुरु हो गए हैं, जो मेरा मानना है कि उचित नहीं है, मेरे माता-पिता ही सर्वोपरि हैं, उसके बाद मेरे गुरुवर हैं।

साथियों बात अगर हम माता पिता, गुरु और ईश्वर को क्रमिक स्थान देने की करें तो, जन्म लेने के बाद बच्चे की प्रथम गुरु उसकी माता ही होती है जो उसे जीवन दान देने के साथ साथ अच्छे संस्कार भी देती है इसलिए प्रथम स्थान माता को देना चाहिए। जब बच्चा बड़ा होता है तो बहुत सी चीजों की जरूरत होती है जैसे स्कूल के लिए फीस, पढ़ने के लिए किताबें, तन ढकने के लिए वस्त्र इन सभी वस्तुओं को खरीदने के लिए अर्थ की जरूरत होती है जिसकी पूर्ति एक पिता ही कर सकता है तो दूसरा स्थान पिता को देना चाहिए। जब बच्चा बड़ा होकर स्कूल जाता है तो वहां उसके टीचर उसे बाहरी दुनियां से अवगत कराते हैं अच्छे और बुरे लोगो में भेद करना बताते हैं, पढ़ लिखकर क्या करना है? इन सारी दिन दुनियां की जानकारी एक गुरु देता है इस लिए गुरु का तीसरा स्थान होना चाहिए। लेकिन अगर हम अपने धर्म शास्त्रों में जब पढ़ते हैं तो वहां हमे यह पढ़ने को मिलता है कि गुरु का स्थान सबसे ऊपर होता है लेकिन उसमे यह नहीं बताया जाता है कि वह कौन सा गुरु है जिसका स्थान सर्वोपरि होता है?

बेशक!! वह प्रथम गुरु माता ही होती है। लेकिन हम ज्ञान के अभाव में अपने धर्म ग्रंथों में लिखी गई पंक्तियों की सूक्ष्म व्याख्या नहीं कर पाते हैं। अगर माता न होती तो गुरु का शिष्य कहां से आता? वह किसकी बताता कि गोविंद, ईश्वर कौन है? जब जननी ने शिशु को जन्म दिया, पिता ने उसकी परवरिश करने में मदद की तब गुरु को एक शिष्य मिला। बेशक! एक बालक को आदर्शवादी बालक बनाने में गुरु का बहुत बहुत बड़ा योगदान होता है हम इससे पूरी तरह से सहमत हैं। चौथे स्थान पर हम ईश्वर को रखते हैं क्योंकि हमारे अच्छे बुरे कर्मों का लेखा जोखा वही रखता है। अंतिम निर्णय उसी का होता है। उसकी इज़ाजत के बिना पेड़ का एक पत्ता भी नहीं हिलता है। वह जब चाहें माता, पिता, गुरु और शिष्य को अपने पास बुला सकता है। हमारे माता-पिता जन्म दिए है और हमारे पालन पोषण सब क्या है हमारे जिंदगी माता पिता के ही दिए हुए हैं इसलिए सबसे महत्वपूर्ण बातें है की माता पिता ही ईश्वर हमारे है उन्हीं से सोच समझ और दुनिया देखने को मिलते हैं इसलिए प्रथम गुरु माता एवं पिता और गुरु ईश्वर का रूप होता है इसलिए माता-पिता भगवान से भी बढ़कर होते हैं और इसलिए भगवान कहलाते हैं।

साथियों बात अगर हम माता-पिता व गुरु का महत्व दोहों से समझने की करें तो, गुरू ब्रह्मा गुरू विष्णु, गुरु देवो महेश्वरा गुरु साक्षात परब्रह्म, तस्मै श्री गुरुवे नम: अर्थात गुरु ही ब्रह्मा है, गुरु ही विष्णु है और गुरु ही भगवान शंकर है। गुरु ही साक्षात परब्रह्म है। ऐसे गुरु को मैं प्रणाम करता हूं।

एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी : संकलनकर्ता, लेखक, कवि, स्तंभकार, चिंतक, कानून लेखक, कर विशेषज्ञ

अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि गुरु पूर्णिमा महोत्सव 21 जुलाई 2024-गुरु, ज्ञान प्रेरणा व मार्गदर्शन का प्रतिबिंब है तो, माता पृथ्वी से भी भारी व पिता आकाश से भी ऊंचा है। गुरू ब्रह्मा गुरू विष्णु,गुरु देवो महेश्वरा गुरु साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नम:। गुरु पूर्णिमा गुरु और शिष्य के पवित्र संबंध का प्रतीक व ज्ञान, मार्गदर्शन के लिए कृतज्ञता व्यक्त कर चरण स्पर्श करना है।

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