ममता सरकार के एंटी-रेप बिल पर राज्यपाल ने जताई नाराजगी

  • कहा- नहीं भेजी गई टेक्निकल रिपोर्ट

कोलकाता। पश्चिम बंगाल (West Bengal) विधानसभा में पिछले दिनों ममता सरकार (Mamata government) ने एंटी-रेप बिल (Anti-Rape Bill) पारित किया लेकिन इसके कानून बनने का रास्ता आसान नहीं लग रहा है। यह विधेयक तब तक कानून नहीं बनेगा, जब तक इस पर राज्यपाल की सहमति नहीं होगी।

बंगाल के राज्यपाल सीवी आनंद बोस (Governor CV Anand Bose) ने बिल को लेकर ममता सरकार पर नाराजगी जताई है। इसके पीछे की वजह है कि राज्यपाल के पास विधेयक से जुड़ी टेक्निकल रिपोर्ट नहीं भेजी गई है।

ममता बनर्जी सरकार की आलोचना करते हुए सीवी आनंद बोस ने कहा, “मेरे पास एंटी-रेप विधेयक के साथ टेक्निकल रिपोर्ट नहीं भेजी गई है, जो इसे मंजूरी देने के लिए जरूरी है।”

 राज्यपाल ने दावा कि वे बहुत निराश हैं क्योंकि राज्य में विधेयकों के साथ तकनीकी रिपोर्ट न भेजना और फिर उन्हें मंजूरी न देने के लिए राज्यपाल कार्यालय को दोषी ठहराना एक नियमित प्रक्रिया बन गई है।

एजेंसी के मुताबिक, राजभवन के एक अधिकारी बताया, “राज्यपाल ने अपराजिता विधेयक के साथ टेक्निकल रिपोर्ट अटैच करने में फेल रहने के लिए राज्य प्रशासन की आलोचना की है। नियम के मुताबिक, विधेयक को मंजूरी देने पर फैसला लेने से पहले राज्य सरकार के लिए टेक्निकल रिपोर्ट भेजना जरूरी है।”

राज्यपाल ने राज्य सरकार को इस तरह के अहम मामलों में होमवर्क न करने के लिए भी फटकार लगाई है। उन्होंने आगे कहा, “विधेयक आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और अरुणाचल प्रदेश द्वारा पारित इसी तरह के विधेयकों की नकल है।”

सूत्रों के मुताबिक, राज्यपाल ने अपनी राय व्यक्त की है कि ममता बनर्जी केवल पश्चिम बंगाल के लोगों को धोखा देने के लिए धरने की धमकी दे रही हैं, क्योंकि वह भी अच्छी तरह से जानती हैं कि इसी तरह के विधेयक भारत के राष्ट्रपति के पास लंबित हैं।

पश्चिम बंगाल विधानसभा ने 3 सितंबर को सर्वसम्मति से ‘अपराजिता महिला एवं बाल विधेयक (पश्चिम बंगाल आपराधिक कानून एवं संशोधन) विधेयक 2024’ पारित किया, जिसमें रेप के दोषियों के लिए मृत्युदंड की मांग की गई है।

अगर उनके कृत्यों के परिणामस्वरूप पीड़िता की मृत्यु हो जाती है या वह अचेत अवस्था में चली जाती है और अन्य अपराधियों के लिए पैरोल के बिना आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान है।

प्रस्तावित कानून की अन्य अहम विशेषताओं में प्रारंभिक रिपोर्ट के 21 दिनों के अंदर रेप के मामलों की जांच पूरी करना, पिछली दो महीने की समय सीमा में कमी और एक स्पेशल टास्क फोर्स शामिल है, जहां महिला अधिकारी जांच का नेतृत्व करेंगी।

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