गोवत्स द्वादशी 28 अक्टूबर सोमवार को

वाराणसी। प्रदोष काल गोवत्स द्वादशी पूजन शुभ मुहूर्त इस दिन शाम 06 बजकर 10 मिनट से लेकर इस दिन शाम 08 बजकर 40 मिनट तक रहेगा। इस दिन माताएं अपने बच्चों की लंबी उम्र व सुख-समृद्धि की कामना के साथ व्रत रखेंगी। संतान विहीन जोड़े इस दिन गाय माता की पूजा अर्चना और व्रत करें उनकी भी मनोकामना जल्द पूरी होती है।

कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की द्वादशी को गोवत्स द्वादशी मनाई जाती है। धर्म ग्रंथों के अनुसार गोवत्स द्वादशी प्रदोष व्यापिनी मनाई जाती है और कार्तिक कृष्ण पक्ष द्वादशी तिथि 28 और 29 अक्टूबर को है। पर 28 अक्टूबर पूर्णतया प्रदोष व्यापिनी द्वादशी है इसलिए शास्त्रों के अनुसार 28 अक्टूबर सोमवार को ही गोवत्स द्वादशी का पर्व मनाया जाएगा।

प्रदोष काल गोवत्स द्वादशी पूजन शुभ मुहूर्त इस दिन शाम 06 बजकर 10 मिनट से लेकर इस दिन शाम 08 बजकर 40 मिनट तक रहेगा। इस दिन माताएं अपने बच्चों की लंबी उम्र व सुख-समृद्धि की कामना के साथ व्रत रखेंगी। संतान विहीन जोड़े इस दिन गाय माता की पूजन और व्रत करें उनकी भी मनोकामना जल्द पूरी होती है इस दिन गोमाता एवं बछड़े की पूजा की जाती है।

यदि घर के आसपास गाय और बछड़ा नहीं मिले तब शुद्ध मिट्टी से गाय तथा बछडे़ को बनाकर उनकी पूजा कि जाती है। इसी दिन श्रीकृष्ण जी ने गाय का पूजन आरंभ किया था। गोवत्स द्वादशी को गाय माता की पूजा करने के पीछे कई मान्यता प्रचलित है। धर्म ग्रंथों के अनुसार जब देवता और दानव समुद्र मंथन करके अमृत खोजने के लिए होड़ में थे। इस प्रक्रिया के दौरान उन्हें सात महान देवताओं के माध्यम से उपहार के रूप में दिव्य कामधेनु गाय माता भी प्राप्त हुई।

गोवत्स द्वादशी की कथा का उल्लेख हमें भविष्य पुराण में मिलता है। भविष्य पुराण में नंदिनी, दिव्य गाय और उसके बछड़ों की कहानी का उल्लेख हमें मिलता है। हमारे धर्म ग्रंथों में और भी अनेक कथाएं प्राप्त होती है। इस दिन गाय माता को बछडे़ सहित स्नान कराएं। फिर उन दोनों को नया वस्त्र ओढ़ाया जाता है। दोनों के गले में फूलों की माला पहनाते हैं। दोनों के माथे पर चंदन का तिलक करते हैं। सींगों को मढ़ा जाता है।

तांबे के पात्र में सुगंध, अक्षत, तिल, जल तथा फूलों को मिलाकर मंत्र का उच्चारण करते हुए गो का प्रक्षालन करना चाहिए। गोमाता की पूजा करने से घर में खुशियां बनी रहती है। कहा जाता है कि गोमाता की कृपा से परिवार में किसी की अकाल मृत्यु नहीं होती। इस व्रत में गाय के दूध से बनी खाद्य वस्तुओं का उपयोग नहीं किया जाता है। सारा दिन व्रत रखकर रात को इष्टदेव तथा गोमाता की आरती करने के बाद भोजन ग्रहण करें। गोवत्स की पूजन करने के बाद ब्राह्मणों एवं ज़रूरतमंद लोगो को फलादि दान करते हैं।

ज्योतिर्विद रत्न वास्तु दैवज्ञ
पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री
मो. 99938 74848

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