पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री, वाराणसी । बालक के जन्म लेते ही सर्वाधिक चिंता माता-पिता को बालक के जन्म-नक्षत्र के बारे में होती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार 27 नक्षत्रों में से छ: नक्षत्र ऎसे होते हैं जिन्हें गंडमूल नक्षत्र कहा जाता है। यह नक्षत्र दो राशियों की संधि पर होते हैं। एक नक्षत्र के साथ ही राशि समाप्त होती है और दूसरे नक्षत्र के आरंभ के साथ ही दूसरी राशि आरंभ होती है। बुध व केतु के नक्षत्रों को गंडमूल नक्षत्रों में शामिल किया गया है। मीन-मेष, कर्क-सिंह, वृश्चिक-धनु राशियों में गंडमूल नक्षत्र होता है।
रेवती, अश्विनी, आश्लेषा, मघा, ज्येष्ठा तथा मूल नक्षत्र को गंडमूल नक्षत्र माना जाता है। इन नक्षत्रों में से किसी एक में भी शिशु के जन्म लेने पर बच्चा माता, पिता, स्वयं अथवा परिवार पर भारी पड़ता है, ऐसा माना गया है!
इसके लिए बच्चे के जन्म के 27वें दिन शांति पूजा का विधान है जिससे उस गंडमूल नक्षत्र के किसी भी दुषप्रभाव को शांत किया जा सके। हर बुद्धिमान ज्योतिषी/व्यक्ति गंड मूल की स्थिति में हर हाल में उसकी शांति कराने की ही सलाह देते है। गंड मूल की पूजा एक तकनीकी पूजा होती है। जन्म नक्षत्र के अनुसार देवता का पूजन करने से अशुभ फलों में कमी तथा शुभ फलों की प्राप्ति होती है।
* यदि कोई बच्चा अश्विनी, मघा, मूल नक्षत्र में जन्मा हैं तो उसके लिए गणेश जी का पूजन करना चाहिए। इस नक्षत्र में जन्में बच्चे के लिए माह के किसी भी एक बुधवार को हरे रंग के वस्त्र, लहसुनिया, हरे मूंग आदि वस्तु का दान करना उत्तम रहता है। गाय को हरा चारा खिलाने से भी लाभ मिलता है।
* इस नक्षत्र में जन्में बच्चे के लिए माह के किसी भी एक बुधवार को हरी सब्जी, हरा धनिया, आँवले, पन्ना, कांसे के बर्तन, आदि वस्तुओं का दान करना विशेष फलदायी माना जाता है।
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जोतिर्विद वास्तु दैवज्ञ
पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री
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