अशोक वर्मा “हमदर्द”, कोलकाता। जॉर्ज सोरोस का जाल और सोनिया का बवाल दो ऐसे मुद्दे हैं जो न केवल भारत की राजनीति बल्कि समाज के ताने-बाने को भी प्रभावित करते हैं। जॉर्ज सोरोस, जो एक प्रसिद्ध अंतरराष्ट्रीय निवेशक और उदारवादी विचारधारा के समर्थक माने जाते हैं, अक्सर विकासशील देशों में अपनी नीतियों और धन के माध्यम से हस्तक्षेप करने के लिए जाने जाते हैं। भारत में सोरोस पर आरोप है कि वे बहुसंख्यको को कानून के जाल में फंसाने के षड्यंत्र में अप्रत्यक्ष रूप से सहायक हैं।
सोरोस का एजेंडा और भारतीय संदर्भ की अगर बात करें तो जॉर्ज सोरोस कई गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) को वित्तीय सहायता देते हैं जो कथित रूप से भारत में “मानवाधिकार” और “सामाजिक न्याय” के नाम पर कार्यरत हैं। परंतु, इन संगठनों का कार्य कहीं न कहीं भारतीय सांस्कृतिक और धार्मिक ढांचे को निशाना बनाने तक सीमित रहता है। एक पक्ष यह मानता है कि ये संगठन अक्सर उन नीतियों को बढ़ावा देते हैं जो हिंदू समाज में फूट डालने या भारतीय परंपराओं के विरुद्ध एजेंडा सेट करने का काम करते हैं।
सोनिया गांधी और उनके शासनकाल काल के संदर्भ में देखा जाए तो सोनिया गांधी के नेतृत्व वाले दौर में ऐसा महसूस किया गया कि सेकुलरिज्म की आड़ में हिंदू समाज को कानूनों के माध्यम से हाशिए पर धकेलने की कोशिश हुई। कई विवादित कानून और नीतियाँ लाई गई, जिससे “अल्पसंख्यक तुष्टीकरण” को बढ़ावा मिला। सोनिया के नेतृत्व में ऐसे कानून भी प्रस्तावित किए गए, जिन्होंने बहुसंख्यक हिंदू समाज के अधिकारों पर सवाल खड़ा किया।
मकड़जाल में फंसाने का तरीका बहुत ही आसान है, सोरोस समर्थित संगठनों का एक प्रमुख हथियार है “कानून का दुरुपयोग।” वे सामाजिक तनावों या विवादों को बढ़ावा देने के लिए न केवल घटनाओं को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करते हैं, बल्कि स्थानीय समाज के खिलाफ मीडिया और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की छवि को भी खराब करने का प्रयास करते हैं। उदाहरण के लिए, सांप्रदायिक मामलों में केवल हिंदुओं को ही दोषी ठहराने का प्रयास होता है, जबकि अन्य वर्गों के कृत्यों को नजरअंदाज कर दिया जाता है।
वर्तमान में सोशल मीडिया और वैकल्पिक मीडिया के कारण इन षड्यंत्रों का भंडाफोड़ हो रहा है। जनता जागरूक हो रही है कि किस प्रकार “बाहर से आए एजेंडे” और “अंदरूनी राजनीतिक चालें” भारत के समाज को तोड़ने का कार्य कर रही हैं। जागरूकता फैलने से लोगों में यह समझ बढ़ रही है कि भारत के सांस्कृतिक मूल्यों और धार्मिक एकता के खिलाफ होने वाले षड्यंत्रों का मुकाबला किस प्रकार किया जाए।
जॉर्ज सोरोस और उनके द्वारा समर्थित एजेंडे का उद्देश्य भारत की एकता और सांस्कृतिक जड़ों को कमजोर करना प्रतीत होता है। वहीं, सोनिया गांधी के कार्यकाल में हिंदुओं को कानून के नाम पर दबाने की घटनाएँ और उनके तुष्टीकरण की नीतियाँ इस पूरे जाल का एक हिस्सा है। आज आवश्यक है कि भारत के लोग इन षड्यंत्रों को समझें और एकजुट होकर अपनी संस्कृति और समाज की रक्षा के लिए खड़े हों।
(स्पष्टीकरण : इस आलेख में दिए गए विचार लेखक के हैं और इसे ज्यों का त्यों प्रस्तुत किया गया है।)
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