Diwali

दक्षिण 24 परगना जिले के मथुरापुर में काली पूजा की रात महाश्मशान में तांत्रिकों का जमावड़ा

कोलकाता। बंगाल के काली साधकों ने काली साधना के क्षेत्र के रूप में गंगा तट को चुना। किसी भी प्रकार की खोज के लिए नदी के किनारे का क्षेत्र सबसे अच्छा स्थान माना जाता है। तंत्र साधना के लिए त्रिकोणीय आकार की भूमि आदर्श भूमि मानी जाती है। कई काली साधकों ने आदि गंगा के तटों को अपने पूजा स्थल के रूप में चुना। मूल गंगा के तट पर अनेक काली मन्दिरों का निर्माण हुआ। यह मंदिर लगभग कुछ सौ वर्ष पूर्व मूल गंगा के तट पर बनाया गया था।

दक्षिण 24 परगना जिले के मथुरापुर के सतघरा ठाकुरजी गांव के यज्ञबती महाश्मशान में सैकड़ों वर्षों से मां यज्ञेश्वरी काली की पूजा की जाती है। किंवदंती है कि एक समय में उस काली क्षेत्र में कई संन्यासी या तांत्रिक साधना करने आते थे। यह मंदिर उसी श्मशान में बनाया गया था। सुना है कि एक समय यहां शवयात्रा भी निकाली जाती थी।

कहा जाता है कि हर रात इस युद्ध या दुर्घटना में मारे गए लोगों की आत्माएं इधर-उधर भटकती रहती हैं। एक समय आदिगंगा के किनारे घने जंगल से घिरे श्मशान में तांत्रिकों ने काली की पूजा शुरू की। समय के नियम के अनुसार जंगल न होने पर भी श्मशान एकांत वातावरण है। यहां चारों ओर अनगिनत कब्रें फैली हुई हैं। यह श्मशान अब विलुप्त हो चुकी आदि गंगा के तट पर स्थित है।

श्मशान में तीन शिखरों वाला मंदिर है। वहां मां योगेश्वरी काली की पूजा की जाती है. तंत्र के अनुसार देवी को प्रसाद के रूप में शराब, मांस और चना चढ़ाया जाता है। एक समय चैतन्य महाप्रभु ने स्वयं नीलाचल जाते समय इसी श्मशान में विश्राम किया था। उस लिहाज से देखें तो यह जगह खास है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

eighteen − 12 =