गरीफा मैत्रेय ग्रंथागार व ‘पड़ाव’ साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था ने मनाया प्रेमचंद जयंती

नैहट्टी, उत्तर चौबीस परगना। 30 जुलाई मंगलवार को संध्या 4.30 बजे प्रेमचंद-जयंती की पूर्व संध्या पर गरीफा मैत्रेय ग्रंथागार व ‘पड़ाव’ साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था के संयुक्त तत्वावधान में एक अंतरंग संगोष्ठी का आयोजन किया गया है। संगोष्ठी की अध्यक्षता वरिष्ठ कवयित्री, कथाकारा, आलोचक, समाजसेवी एवं संपादक डॉ. इंदु सिंह द्वारा किया गया। संगोष्ठी में विशिष्ट वक्ता के रूप में उपस्थित रहें पश्चिम बंग राज्य विश्वविद्यालय, हिंदी विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. विनोद कुमार एवं वक्ता के रूप में उपस्थित रहें बैरकपुर राष्ट्रगुरु सुरेंद्रनाथ कॉलेज, हिंदी विभाग के डॉ. बिक्रम कुमार साव।

संगोष्ठी का आरंभ प्रेमचंद के छायाचित्र पर श्रद्धा सुमन अर्पित करके किया गया। इसके बाद टीटागढ़ एंगलो वर्नाकुलर हाई स्कूल उच्च माध्यमिक के शिक्षक पप्पू रजक द्वारा प्रेमचंद की कहानी ‘गिल्ली-डंडा’ की एकल नाट्य वाचन प्रस्तुत की गई। संगोष्ठी सत्र में ‘प्रेमचंद की रचनाओं का लोक पक्ष’ विषय पर अपनी बात रखते हुए डॉ. बिक्रम कुमार साव ने प्रेमचंद के रचनाओं का मूल्यांकन साहित्य की सांख्यिकी के आधार पर किया और बताया की किस प्रकार से प्रेमचंद अपनी रचनाओं में एक रचनात्मक समीकरण तैयार करते हैं।

उनके रचनाओं का लोक पक्ष बहुत ही मजबूत है और वे मानवीय संबंधों और संवेदनाओं के गणित के गणितज्ञ हैं। उनकी रचनाएं हमें संवेदनशील बनाती है और यह संवेदनशीलता ही लोकपक्ष है। समाज से, मानव से, मानवेत्तर प्राणियों से, किसान से, मजदूर से, गांव से, जमीन से, मानवीय संबंधों, व्यापारों, व्यवहारों से जुड़ना, उन्हें समझना, पाठकों को उनके प्रति संवेदनशील बना देना ही प्रेमचंद की रचनाओं के लोकपक्ष का मूल उद्देश्य है।

संगोष्ठी के विशिष्ट वक्ता पश्चिम बंग राज्य विश्वविद्यालय, हिंदी विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. विनोद कुमार ने  प्रेमचंद के साहित्य में लोकतत्व पर अपनी बात रखते हुए शास्त्र और लोक में अंतर स्पष्ट करते हुए लोक पक्ष की सरलता को व्याख्यायित किया। उन्होंने कहा कि प्रेमचंद सबसे अधिक पढ़ें जाने वाले साहित्यकार हैं जिन्हें अन्य भाषाओं में भी उतना ही पढ़ा जाता है जितना हिन्दी साहित्य में और यह पठनीयता उनके लोकपक्ष के कारण ही संभव है। प्रेमचंद का लोक उनका गांव है। गांव अथवा ग्राम संस्कृति ही मूलतः लोक संस्कृति है। जिसमें अभी भी इमानदारी, जीवंतता और सच्चापन है जो हमें जीवन के तमाम मूल्यों को गहन दृष्टि से देखने की समझ देती है।

संगोष्ठी के अध्यक्षीय भाषण में वरिष्ठ कवयित्री, कथाकारा, आलोचक, समाजसेवी एवं संपादक डॉ. इंदु सिंह ने लोक पक्ष क्या है? स्पष्ट करते हुए कहा कि कहानीकार व रचनाकार जो भी लिखता है वह अपने आस-पास के वातावरण, परिवेश के घेरे से अनुभव को लिखता है। उसका वह आयतन ही लोक है। कोई भी रचनाकार अपनी समाज से कट कर नहीं लिख सकता।

प्रेमचंद का समाज अथवा लोक किसान, मजदूर, परित्यक्त नारी, शोषित समाज है। इसके हरेक पात्र पूरे लोक का प्रतिनिधित्व करने वाली होती है। धनिया हो या निर्मला सभी अपने पूरे समाज को साथ लिए चलती है। यह उनकी विशेषता है। प्रेमचंद को पढ़ कर भी ऐसा लगता है कि अभी कुछ नहीं पढ़ा है हर बार उनके कृति हमें नयी सीख देती है। यह नयापन लोकतत्व ही ला सकता है।

इस अवसर पर प्रसिद्ध विश्व यात्रा- वृतांत लेखिका एवं कथाकारा माला वर्मा की नवीनतम कहानी-संग्रह ‘हम दोनों’ का लोकार्पण हुआ। कार्यक्रम में शिक्षक डॉ. कार्तिक कुमार साव, शिक्षक सुभाष कुमार साव, शिक्षक विजय चौधरी, विदिप्ता, नैंसी पाण्डेय, हर्ष साव, शुभम साव, चेतन दास, सोंटु चौधरी, रितेश सिंह, पूजा मिश्रा, अफसाना खातुन, सुजल चौधरी सहित अन्य महाविद्यालय व विश्वविद्यालय के विद्यार्थीगण उपस्थित रहें। कार्यक्रम का सफल संचालन सावनी कुमारी राम और धन्यवाद ज्ञापन रूद्रकान्त ने किया।

ताज़ा समाचार और रोचक जानकारियों के लिए आप हमारे कोलकाता हिन्दी न्यूज चैनल पेज को सब्स्क्राइब कर सकते हैं। एक्स (ट्विटर) पर @hindi_kolkata नाम से सर्च करफॉलो करें।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

4 + 13 =