वाराणसी। मंगल मूर्ति भगवान श्री गणेश की आराधना का महापर्व हर कोई भक्तिभाव के साथ धूम-धाम से मना रहा है। सभी लोग प्रथम पूज्य श्री गणेश की पूजा-अर्चना कर परिवार की विघ्न-बाधाओं को दूर करने एवं सुख-सौभाग्य की प्राप्ति की कामना कर रहे हैं। चौतरफा गणपति के जयकारों की ही गूंज सुनाई दे रही है। गणेशोत्सव में खुशियों के बीच लोगों के मन में गणपति विसर्जन एवं पंचक भ्रम को लेकर असमंजस की स्थिति बन गई है। इस विषय पर पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री जी ने बताया कि
अनंत चतुर्दशी के बाद पितृपक्ष प्रारंभ हो जाता है और पितृपक्ष में गणेश प्रतिमा विसर्जन पूर्णत निषिद्ध है, क्योंकि पितृपक्ष में विसर्जन शास्त्रों में दोष माना गया है। इससे घर में दरिद्रता का वास होने के साथ बुद्धि नष्ट हो जाती है।
गणेश विसर्जन के लिए अनंत चतुर्दशी की तिथि निर्धारित है अत: इसी दिन गणेश प्रतिमा विसर्जित की जाना चाहिए। कुछ लोग पंचक दोष मानकर या तो अनंत चतुर्दशी से पहले या बाद में शास्त्रों के नियमों के विरुद्ध गणेश विसर्जन करते हैं, जबकि पंचकों का प्रभाव किसी भी रूप में गणेश विसर्जन पर नहीं पड़ता। अत: हर हाल में अनंत चतुर्दशी को ही गणेश विसर्जन करना चाहिए।
भगवान गणेश या किसी भी देवी-देवता की पूजन में पंचकों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। लोग भ्रम को छोड़कर अनंत चतुर्दशी को पूजन-हवन कर गणपति का विसर्जन करें। विसर्जन तो पूजन की प्रक्रिया है। पूजन, यज्ञ आदि पंचक के प्रभाव से मुक्त होते हैं। विसर्जन में पंचक के प्रभाव की धारणा गलत है, यह दूर होनी चाहिए। अनंत चतुर्दशी 28 सितंबर 2023 गुरूवार को है, इसलिए गुरूवार को दिन में कभी भी पूजन, हवन आदि कर विसर्जन किया जा सकता है।
इन कार्यों में लगता है दोष : शास्त्री जी ने बताया कि ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मृत्यु होने पर शव का अग्नि संस्कार, दक्षिण दिशा में यात्रा, काष्ठ संचयन-लकड़ी काटना व एकत्रीकरण, तृण तोड़ना व एकत्रीकरण जैसे कार्यों को पंचक में करने से मना किया गया है। जबकि शुभ कार्यों खास तौर पर देव पूजन में पंचक का विचार नहीं किया जाता। पंचक में भगवान श्रीगणेश सहित अन्य किसी देवता की प्रतिमा का विसर्जन अशुभ नहीं माना गया है।
ज्योर्तिविद वास्तु दैवज्ञ
पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री
मो. 9993874848