केंद्र सरकार ने खेत से लेकर थाली तक बागवानी उत्पाद (सब्जियों) की कीमत में भारी अंतर की नब्ज पकड़कर साइंटिफिक व्यवस्था बनाने कमेटी बनाई
किसानों से कौड़ियों के रेट में बिका बागवानी उत्पाद (सब्जियां) उपभोक्ता की थाली तक पहुंचते तक कीमतें आसमान कैसे छूने लगती है? तुरंत एक्शन की जरूरत- अधिवक्ता के.एस. भावनानी
अधिवक्ता किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र। वैश्विक स्तर पर हर देश में किसान का महत्वपूर्ण दर्ज़ा होता है, क्योंकि वह जीवन यापन करने के लिए अति महत्वपूर्ण खाद्यान्न को कड़ी मेहनत कर बीज रोपण से लेकर मंडी तक बिकवाली के लिए लाने तक अपना पूरा खून पसीना एक कर देता है, परंतु आश्चर्य व खेद की बात है कि उसे उतनी मेहनत की तुलना में मेंहनताना नहीं मिल पाता। इसलिए ही वह एमएसपी के लिए जद्दोजद व आंदोलन पर उतारू हो जाता है। हालांकि भारत सहित हर देश में किसानों पर विशेष ध्यान दिया जाता है व उन्हें संतुष्ट करने की कोशिश की जाती है। भारत में तो अन्नदाता के लिए कई स्कीमें योजनाएं व उन्हें सुविधा सरकारें देती रहती है परंतु लाख टके की एक बात मैं कहना चाहता हूं कि जिस बागवानी फसल या सब्जियों के लिए किसानों को मात्र 5 या 10 रूपए मिलते हैं वह चिल्लर मार्केट में 70 से 80 रुपए तक कैसे बिकता है? बड़ा सोचनीय प्रश्न है, यही बात दिनांक 19 अक्टूबर 2024 को हमारे केंद्रीय कृषि मंत्री जो हमारी राइस सिटी गोंदिया के सगे जवाई राजा भी हैं, उनके जेहन में भी यह बात आई और उन्होंने रबी अभियान 2024 को एक दिन के राष्ट्रीय सम्मेलन में कही और बताया कि इसकी नब्ज़ पकड़ने के लिए एक समिति बनाई गई है, जो अध्ययन कर अपनी रिपोर्ट देगी उसके अनुसार रणनीति बनाई जाएगी।
कृषि मंत्री की मीडिया में यह बात सुनकर, मैं रविवार दिनांक 20 अक्टूबर 2024 को इसकी ग्राउंड रिपोर्टिंग की तो यह बात 100 प्रतिशत सही व सटीक साबित हुई। किसानों ने बताया हम जो सब्जी या बागवानी फसल का रेट मार्केट में देते हैं या नीलामी में बिकता है, वही हमारा माल चिल्लर मार्केट में हमारी बिक्री से 6 से 7 गुना अधिक कीमत में बिकता है जो मैंने सही पाया, इसलिए केंद्रीय कृषि मंत्री का संज्ञान सटीक लगा। इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे। किसानों से कौड़ियों के रेट में बिका बागवानी उत्पाद अर्थात सब्जियां उपभोक्ता की थाली तक पहुंचने तक कीमतें आसमान कैसे छूती है इस पर तुरंत एक्शन की जरूरत है।
साथियों बात अगर हम दिनांक 19 अक्टूबर 2024 को रबी अभियान राष्ट्रीय सम्मेलन 2024 में केंद्रीय कृषि मंत्री के संबोधन की करें तो उन्होंने शनिवार को कहा कि सरकार खेत से लेकर थाली तक बागवानी उत्पाद (सब्जियों) की कीमतों में भारी अंतर को दूर करने के लिए समिति गठित करेगी। राष्ट्रीय राजधानी में कृषि सम्मेलन को संबोधित करते हुए चौहान ने कहा, किसान 5 रुपए में सब्जियां बेचता है, तो उपभोक्ता 50 रुपए चुकाता है। इस अंतर को कम करने की जरूरत है और बीच में जो पैसा जाता है, इसकी साइंटिफिक व्यवस्था बन रही है जिससे किसान को उसके हक का पैसा मिले।
साथियों बात अगर हम खेतों के लिए 6 सूत्र तय करने की करें तो उन्होंने कहा, हमने खेती के लिए 6 सूत्र तय किए हैं।
(1) उत्पादन बढ़ाना, इसके लिए अच्छे बीज चाहिए। नया बीज रिलीज तो हो गया लेकिन साइकिल ऐसी है कि तीन चार साल लग जाते हैं किसान तक पहुंचते-पहुंचते।
(2) सिंचाई की व्यवस्था चाहिए। खाद की उपलब्धता भी हो। जो फ़ीडबैक आया है, उसपर हमें चिंता से काम करना है।
(3) कैमिकल फर्टिलाइजर का उपयोग हम कैसे कम करें, इस पर हमें धीरे-धीरे ध्यान देना होगा।
(4) ऑर्गेनिक और नेचुरल फ़ार्मिंग की ओर जब हम बढ़ेंगे, तब हम धीरे-धीरे इसका उपयोग भी कम कर लेंगे।
(5) खाद के लिए केंद्र के साथ राज्य जो भी ध्यान देना होगा। भारी सब्सिडी के बाद भी अव्यवस्था के कारण हमारा परिश्रम बेकार हो जाता है।
(6) उत्पादन की लागत घटाना हमारा दूसरा लक्ष्य है। पर हेक्टेयर ईल्ड तो बढ़े लेकिन लागत कैसे घटे, इस पर काम हो रहा है। जो चीज हम तय करते हैं, वो कैसे किसान तक जाए, इसके लिए राज्यों का सहयोग चाहिए। उन्होंने बताया कि कृषि चौपाल हम अगले महीने शुरू कर देंगे, इसमें किसान बैठेंगे और वैज्ञानिक बैठेंगे। आगे कहा कि व्यावहारिक रूप से केंद्र और राज्यों के सामने अगर कोई समस्या आती है तो उसे पूरा करने में हम कोई कमी नहीं छोड़ेंगे। पीएम के नेतृत्व में हर कैबिनेट में किसानों के हित में क्रांतिकारी फैसले लिए जा रहे हैं।
पीएम ने लाल किले के प्राचीर से कहा था कि तीसरे टर्म में तीन गुणी ज़्यादा शक्ति से काम करना चाहता हूं। कृषि विभाग के अधिकारियों ने भी प्रण लिया कि अकेले पीएम ही तीन गुनी शक्ति से काम नहीं करेंगे बल्कि हम भी कोई कमी नहीं छोड़ेंगे। कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है और किसान उसकी आत्मा है। कृषि का भारतीय अर्थव्यवस्था में आज भी 18 से 19 प्रतिशत तक का योगदान है और 55 प्रतिशत से ज्यादा लोगों को कृषि ही रोजगार प्रदान कर रही है। कृषि ने ही कोविड में भी भारत की अर्थव्यवस्था को प्रभावित नहीं होने दिया। किसान की सेवा मेरे लिए भगवान की पूजा है और मैं दिन और रात इसे करने की कोशिश करूंगा।
साथियों बात अगर हम कृषि विभाग के महत्व को समझने की करें तो, सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि हमारा काम कोई साधारण काम नहीं है। कृषि विभाग का मतलब है देश की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने वाले किसानों की जिंदगी कैसे बेहतर बने उसके प्रयास करना। उन्होंने कहा कि कृषि राज्य का विषय है। केंद्र सरकार हर संभव सहयोग करने का प्रयास करती है। केंद्र और राज्य दो अलग- अलग नहीं है हमारा संघीय ढांचा है, हम दोनों को ही मिलकर काम करना है। कृषि मंत्री के रूप में मैं आश्वस्त करना चाहूंगा कि कोई भी राज्य हो, सभी हमारे लिए बराबर हैं। हम किसी के साथ भी भेदभाव नहीं करेंगे। केंद्र सरकार अकेले काम नहीं कर सकती है सभी मिलकर काम करेंगे, राज्यों के सहयोग की भी आवश्यकता होती है।
इस सम्मेलन का संकल्प यही है कि हम मिलकर काम करेंगे। विभिन्न राज्यों से आए कृषि मंत्रियों को मैं आश्वस्त करना चाहता हूं कि आपके अनेकों ठोस सुझाव हमें मिले हैं और अनेकों समस्याएं भी बताई हैं। मैं अधिकारियों से यह कहना चाहता हूं कि मंत्रियों ने जो समस्याएं रखी हैं उन पर ठोस परिणाम आने चाहिए। राज्यों के मंत्रियों को अधिकारियों के साथ बातचीत के लिए आमंत्रित किया है ताकि समस्याओं पर चर्चा की जा सके। अभी तक हम 17 राज्यों से बात कर चुके हैं और बाकी राज्यों के कृषि मंत्रियों व अधिकारियों को भी हम चर्चा के लिए बुला रहे हैं। किसानों से भी हर सप्ताह संवाद कर रहे हैं। किसानों व किसान संगठनों से प्राप्त राज्यों से संबंधित सुझावों को हम राज्यों को भेजते हैं और केंद्र के विषयों पर विभाग समाधान करते हैं।
साथियों बात अगर हम कृषि रणनीति के बारे में बात करें तो उन्होंने कहा हम एमएसपी बढ़ा रहे हैं। 2019 से तय हुआ कि उत्पादन की लागत पर 50 प्रतिशत जोड़कर मुनाफा देना है। खरीदी की भी प्रभावी व्यवस्था हो, इस पर काम हो रहा है। हम दलहन और तिलहन के सबसे उत्पादन भी हैं लेकिन आयात भी हम करते हैं। इसका उत्पादन हमें बढ़ाना है, लेकिन किसान दाम भी देखेगा कि किसमें फायदा है। हमने मिनिमम एक्सपोर्ट प्राइस की व्यवस्था खत्म की है, चावल के एक्सपोर्ट पर प्रतिबंध को खत्म किया है। दालों की खरीद की व्यवस्था हमने की है। दालों की पूरी खरीदी होगी, किसन चिंता न करें। हम किसी राज्य में 25 प्रतिशत से ज्यादा भी खरीदेंगे अगर जरूरत पड़ी तो। उन्होंने बताया कि गाँव में टमाटर पैदा हुआ, यहाँ पर आते हुए उसके रेट बढ़ जाते हैं, बीच के ट्रांसपोर्टेशन के खर्च को अगर केंद्र, राज्य मिलकर वहन कर लें तो शहर वाले को सस्ती सब्जी मिलेगी और किसान को बेहतर दाम मिल जायेगा।
जल्दी खराब होने वाली फसलों विशेष कर सब्जियों को कैसे बचाया जा सके, इसके लिए कमेटी बनाई है। हमें कृषि का विविधीकरण करना है। कई बार किसी फसल का जरूरत से ज्यादा उत्पादन हो जाता है। राज्य और केंद्र एक प्रयोग करे, एक मॉडल फार्म कैसे बने। एक, दो या ढाई एकड़ जमीन में किसान कैसे खेती करे, इस पर काम हो। कई किसानों ने बताया है कि वो एक एकड़ में अच्छा कमा लेते हैं।अलग-अलग राज्यों में प्रयोग होना चाहिए। हमें परंपरागत खेती का स्वरूप बदलना होगा। उन्होंने कहा कि भारत में इतने एग्रो-क्लाइमेटिक ज़ोन हैं कि भारत दुनिया का फूड बास्केट बन सकता है। हम संवेदनशील बनें। किसानों को कई बार नुकसान हो जाता है, उस समय हमें किसानों के साथ खड़े होना है। फसल बीमा योजना का पैसा किसानों को समय पर मिल जाना चाहिए। लगातार रिव्यू हो जिससे अधिक से अधिक पैसे किसानों को मिलें।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि किसानों की जिंदगी बेहतर करने का फंडा- किसानों द्वारा 5 रूपए में बेची सब्जी बाजार में 50 रूपए कैसे बिकती है? केंद्र सरकार ने खेत से लेकर थाली तक बागवानी उत्पाद (सब्जियों) की कीमत में भारी अंतर की नब्ज़ पकड़कर साइंटिफिक व्यवस्था बनाने कमेटी बनाई। किसानों से कौड़ियों के रेट में बिका बागवानी उत्पाद (सब्जियां) उपभोक्ता की थाली तक पहुंचते तक कीमतें आसमान कैसे छूने लगती है? तुरंत एक्शन की जरूरत।
(स्पष्टीकरण : इस आलेख में दिए गए विचार लेखक के हैं और इसे ज्यों का त्यों प्रस्तुत किया गया है।)
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