आशा विनय सिंह बैस, नई दिल्ली। मैं दिल्ली की जिस सोसायटी में रहता हूँ उसमें 272 फ्लैट हैं। मेरी सोसाइटी में सेना के कई पूर्व अधिकारी, बैंक अधिकारी, डॉक्टर, नामी गिरामी वकील और व्यवसायी रहते हैं। किरन बेदी, जे.एफ. रिबेरियो जैसे नामचीन पुलिस अधिकारी इस सोसाइटी में रह चुके हैं।
मेरी सोसायटी के बिल्कुल सामने रोड के उस पार बड़ा सा एरिया झुग्गियों का है, जो सरकारी जमीन पर अनधिकृत तौर पर बनी हुई हैं। सरकार उनके लिए मुफ्त में फ्लैट बना रही है, जहां वो जाने को तैयार नहीं है। कहते हैं कि एक मुर्गी के दड़बे जैसे फ्लैट में आसमान में कैसे टंगे रहेंगे। यहां पर जमीन से लेकर आसमान तक उनका है।
कुछ दिन पूर्व हमारे एरिया के काउंसलर हमारी सोसाइटी में वोट मंगने आए थे, तो सोसायटी के कुछ संभ्रांत लोगों ने अपनी समस्याओं को लेकर उन्हें घेर लिया। उनसे बोले कि- “काउंसिलर साहब, यह HIG/MIG सोसाइटी है। इस सोसाइटी में प्रत्येक फ्लैट ओनर टैक्सपेयर है। बिजली, पानी का बिल, प्रॉपर्टी टैक्स सब कुछ देते हैं। लेकिन हम यह देखते हैं कि आपका ध्यान झुग्गियों की समस्याओं की तरफ ज्यादा रहता है और सोसाइटी की तरफ काफ़ी कम। जबकि सच यह है कि हमारे टैक्स के पैसों से ही झुग्गियों को खैरात और freebees दी जा रही है।
काउंसलर जो कि पुराने घाघ हैं, बोले- “सर आपकी बात तो बिल्कुल ठीक है कि आप सभी लोग टैक्स देते हैं। यह भी बिल्कुल ठीक है कि शायद ही कोई झुग्गी वाला टैक्स देता हो। लेकिन आप लोग मुझे बताइए मैं तो नेता हूं, मुझे वोटों से मतलब है। आपकी सोसाइटी में 272 फ्लैट हैं और लगभग 800 वोटर हैं। मतदान सिर्फ 200-250 लोग करते हैं यानि लगभग 25 से 30 प्रतिशत और उसमें से बमुश्किल आधे मत मुझे मिलते हैं। जबकि झुग्गियों में 80 से 90% तक मतदान होता है। एक बड़ा हिस्सा वोट का मुझे मिलता है। तो आप ही बताइए कि मुझे किसकी तरफ ज्यादा ध्यान देना चाहिए??”
काउंसलर की बात कड़वी जरूर है, लेकिन बिल्कुल सच है आज। अगर आप चाहते हो कि आपके टैक्स की पूरी रकम खैरात में न जाए, कुछ आपके भी काम आए। अगर आप मुफ्तखोरी की व्यवस्था बदलना चाहते हो तो अपने घर से बाहर निकलिए और मताधिकार का प्रयोग कर सही उम्मीदवार का चुनाव करें।
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