आशा विनय सिंह बैस की कलम से : महापर्व छठ

आशा विनय सिंह बैस, रायबरेली। पिछले कुछ वर्षों में अगर कोई त्यौहार पूरे भारत में सबसे तेजी से फैला है तो वह महापर्व छठ ही है। हालांकि इसके प्रचार-प्रसार में बिहार और उत्तर प्रदेश की तथाकथित पिछड़ी, समाजवादी, सेकुलर सरकारों का भी बड़ा योगदान रहा है जिनके ‘सामाजिक न्याय’ के कारण पूरे भारत में बिहारी, पूर्वी उत्तर प्रदेशवासी रोजगार की तलाश में जाते हैं और जहां पर ये जाते हैं, वहां पर अपना त्यौहार मनाते हैं।

महापर्व छठ के पूरे भारतवर्ष में वृहद स्तर पर मनाए जाने का एक कारण वोट बैंक की राजनीति भी है। सबसे पहले मुंबई में छठ मनाने वालों को लुभाने के लिए समुद्र के किनारे छठ घाट बनाए गए थे। अब यह वोट बैंक की फसल लगभग हर राज्य में काटी जा रही है। हालांकि हमारे गृह जनपद रायबरेली में छठ नहीं मनाई जाती लेकिन मुझे यह त्यौहार इसलिए अत्यधिक पसंद है क्योंकि इसमें सब कुछ घर का बना हुआ प्रयोग होता है। विदेशी कंपनियां अभी इस त्यौहार में सेंध नहीं लगा पाई हैं। यही एक ऐसा अनोखा त्यौहार है जिसमें डूबते हुए सूर्य की भी पूजा-अर्चना की जाती है।

इस त्यौहार के बहाने हम अपने तालाब, नदी, पोखर के महत्व को समझ सकें तथा हमें यमुना के जहरीले, झाग भरे पानी या घर के स्विमिंग पूल/टब/बाल्टी में भगवान सूर्य का अर्घ्य न देना पड़े, इसी कामना के साथ लोक आस्था के महापर्व छठ की सभी सनातनियों को हार्दिक बधाई।

Asha
आशा विनय सिंह बैस, लेखिका

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