आशा विनय सिंह बैस, रायबरेली। ओस सुबह-सवेरे घास पर मोतियों सी बिखरने लगी है। रात में अब हल्की ठंडक लगने लगी है। सर्दी की सुगबुगाहट हौले-हौले आने लगी है। कुआर के महीने में बरी जैसा उसरहा गांव भी पूरा हरा भरा हो जाता है। जहां तक नजर जाती है, वहां तक हरियाली फैली है। मानो कोई नई नवेली दुल्हन सोलहो सिंगार करके अपने पिया की राह देख रही हो। धान के पौधों से निकली बालियां अब पुष्ट होने लगी हैं। जैसे कोई किशोरी अब तरुणाई की ओर बढ़ चली हो। बालियों का हरा रंग भी धीरे-धीरे सुनहरा होने लगा है।
बाबा कल ही मामा लोगों को गरियाते हुए कह रहे थे -“ये ससुर पूरब वाले जेठ-बैसाख के महीने में बरदेखी करने तब आते हैं जब यह गांव उजाड़, बियाबान सा दिखता है। भादों में आएं तो पता चले की बरी गांव क्या चीज है!! इससे सुंदर और समृद्ध गांव शायद ही कोई आसपास हो। जितनी किस्में धान की हम उगाते हैं, उतने तो उन लोगों ने नाम भी नहीं सुने होंगे।”
फौजी भैया को कल ही अम्मा फोन करके कह रही थी कि-” मुन्ना, इस बार कातिक में घर जरूर आना। अपनी श्यामा गइया बियाने को है। बताओ पूरा मोहल्ला खोजरी खायेगा और जिसकी गइया है, उसी को खोजरी नसीब नहीं है।”
बाबूजी कह रहे थे कि-“मुन्ना इस बार समय से छुट्टी आ जाओ तो धान पीटने के बाद खलिहान से सीधे एफसीआई में बेच देंगे। लाला जी को बिल्कुल भी नहीं देंगे। पिछली बार उन्होंने सरकारी रेट से पूरे 4 रुपये किलो कम में धान खरीदे थे। घर में भी खाने भर का महीन और बासमती धान ही रखेंगे। सारा मोटिया धान तुरंत बेच देंगे। तुरत दान, महाकल्याण।
पिछले से पिछले साल रेट बढ़ने के इंतजार में जिस डहरी और कोठरी में धान रखे थे, उसे तो आधा मूस ही खा गए थे। पूरी देवार में बड़े बड़े छेद कर दिए थे सो अलग।”
बाबूजी वह यह भी कह रहे थे कि- “इस बार पैरा की खरही भी तुरंत ही लगा देंगे। पिछली बार 10-15 दिन पैरा ऐसे ही पड़े रह गए तो आधे तो मोहल्ले वाले दो- दो, चार-चार पूरा करके उठा ले गए थे। अब सब लोग जान पहचान के हैं, पड़ोसी हैं तो दो-चार पूरा के लिए किसी को मना करते भी तो नहीं बनता है।”
सबसे बाद में भउजी अपने कमरे में जाकर पलंग में लेटे हुए और गाल पर अनायास आ गए बालों को हटाते हुए फौजी भइया से बड़े प्यार से कह रही थी कि-“इस बार करवा चौथ में छुट्टी लेकर घर जरूर आ जाना। पिछली बार तुमने जो गुलाबी रंग वाली महंगी बनारसी साड़ी दिलवाई थी, वही पहन कर पूजा करूंगी और तुम्हारे पैर पूजूंगी।” बाद में उन्हीं बालों को स्टाइल से एक तरफ फूंकते हुए धमकी भी दे रही थी कि इस बार नहीं आए तो अगले साल से करवा चौथ नहीं रखूंगी।
अंत मे भउजी लजाते हुए धीरे से यह भी कह रही थी कि-“इस बार से तुम्हें 10 -11 बजे रात तक दरवाजे वाले छप्पर के नीचे लेटने और बाद में रात को चुपके से मेरे कमरे में आने की जरूरत नहीं है। अम्मा कल ही हमसे कह रही थी कि मुन्ना को इस बार कमरे में ही लेटने को बोलना। पिछली बार बच्चा बाहर लेटता था, इसलिए उसे सर्दी लग गई थी।”