आशा विनय सिंह बैस की कलम से : दिल्ली मेट्रो…

रायबरेली। एक दिन हुआ यूं कि हमारे रायबरेली जिले के सबसे बड़े कस्बे लालगंज के सब्जी मंडी में एक युवा जोड़ा एक दूसरे का हाथ पकड़े और एक दूसरे से लगभग चिपटा हुआ, कोई रोमांटिक सा गीत गाता हुआ सड़क पर चला जा रहा था। सामाजिक-नैतिक मूल्यों को अब भी महत्व देने वाले वाले पारंपरिक लालगंजवासियों को यह खुलेआम प्रेमालाप नागवार गुजर रहा था, पर संकोचवश कोई कुछ बोल नहीं रहा था।

तभी निहस्था गांव के एक स्वनामधन्य वकील साहब की नजर इस रोमांटिक जोड़े पर पड़ गई। उन्होंने लड़के को हड़काते हुए कहा- “यहां हाथ में हाथ डाले क्यों घूम रहा है बे?? जरा तमीज से रोड पर चल”।

इस पर उस लड़के ने जो कुछ दिन पहले ही दिल्ली से कमा कर लौटा था, सफाई दी-“यह मेरी पत्नी है। इसका हाथ पकड़ कर चलने में क्या दिक्कत है आपको?”

“साआले#@%^&* तू हाथ छोड़ देगा तो क्या यह भाग जाएगी?? अगर इतना ही डर है भागने का तो इसे कमरे में बंद करके रखा कर। किशोर लड़के-लड़कियों पर इसका गलत प्रभाव पड़ता है। यहां का माहौल खराब न कर। इसे दिल्ली मेट्रो समझ रखा है क्या? ”

वकील साहब की डांट और अन्य लोगों के मौन समर्थन के कारण युवा जोड़े को मन मसोसकर एक दूसरे का हाथ छोड़ना ही पड़ा।

आशा विनय सिंह बैस, लेखिका

(आशा विनय सिंह बैस)
लालगंज बैसवारा वाले

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