
नई दिल्ली । ‘देवशयनी एकादशी’ से शुरू होकर ‘देवोत्थान एकादशी’ को समाप्त हुआ चातुर्मास (श्रावण, भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक महीना) का कठिन समय गुजर चुका है। हेमंत ऋतु का पहला और हिंदू पंचांग का नवां मास अगहन (अग्रहायण/मार्गशीर्ष) दस्तक दे चुका है। अगहन आने का मतलब मांगलिक कार्य करने का उचित समय आ गया है। क्योंकि इसके बाद दिन और छोटे होने लगेंगे –
“अगहन है चूल्हे का अदहन, पूस तो काना टूस होगा।”
फिर पौष और माघ की हाड़ कंपाने वाली ठंड भी तो शुरू हो जाएगी।
यह महीना इसलिए भी अत्यंत प्रिय है क्योंकि अभी ठंड गुलाबी है और जाड़े की धूप खुशनुमा लगती है। बाजार में खूब हरी सब्जियां आने लगी हैं तथा सेब, अमरूद जैसे मौसमी और सेहतमंद फल रेहड़ी, ठेलिया में सजे दिखने लगे हैं। गांवों की हाट में गुलैया, गजक, गुड़पट्टी की खुशबू भी बिखरने लगी है। हाट के किसी कोने में भुनी करारी मूंगफली धनिया-लहसुन वाले गीले नमक तथा काले वाले सूखे नमक (पदनवा नोन) की पुड़िया के साथ बिकने लगी है।
बाजरे की रोटी और सरसो के साग का दिव्य स्वाद लेने का समय आ गया है। बिल्कुल ताज़े आलू को आग में भुनकर गरम-गरम खाने तथा गन्ने के रस को दही में मिलाकर पीने का महीना आ चुका है। राब, ताजे सुस्वादु गुड़ को सीधे गन्ने के कोल्हू के पास जाकर चखने का समय आ गया है।
ऐसी मान्यता है कि अगहन मास में नदी स्नान और दान-पुण्य का विशेष महत्व है। श्रद्धा और भक्ति से प्राप्त पुण्य के बल पर हमें सभी सुखों की प्राप्ति होती है। शायद इसीलिए मनुष्यों के अतिरिक्त देवताओं को भी यह महीना अत्यंत प्रिय है। गीता में भगवान कृष्ण स्वयं कहते हैं कि-
“बृहत्साम तथा साम्नां गायत्री छन्दसामहम्।
मासानां मार्गशीर्षोऽहमृतूनां कुसुमाकरः।।
अर्थात
सामवेदके प्रकरणोंमें जो बृहत्साम नामक प्रधान प्रकरण है, वह मैं हूँ। छन्दों में मैं गायत्री छन्द (मंत्र) हूँ। महीनों में मार्गशीर्ष नामक महीना और ऋतुओं में मैं बसन्त ऋतु हूँ।
तो आइए हम सब मनुष्यों और देवताओं के इस अति प्रिय महीने का दिल से स्वागत करें और इसका भरपूर आनंद लें।
जय श्री राम
