जंगल महल में उत्साहपूर्वक मना लोक उत्सव “मोशा खेदा”

तारकेश कुमार ओझा, खड़गपुर : ग्रामीण बंगाल के अन्य स्थानों की तरह, जंगल महल में विभिन्न प्रकार के लोक उत्सव बिखरे हुए हैं। ऐसा ही एक विलुप्त हो चुका सांसारिक त्योहार है ‘मोशा खेदा ‘ या ‘मोशा खेदानो’। इसका शाब्दिक अर्थ है मच्छरों को भगाना।

मोशा खेदा ‘ उत्सव काली पूजा की अमावस्या की रात के बाद सुबह आयोजित की जाती है। भोर में घर के बड़ों द्वारा लड़कों को तड़के नींद से जगा दिया जाता है।

कई लोग काली पूजा के दौरान पूरी रात जागते हैं और सुबह-सुबह ‘मशा खेदा को ‘ जाते हैं, मूल रूप से मच्छर खेदा टीम का गठन बच्चों की पहल और बड़ों की मदद से किया जाता है।

मोशा खेदा के दौरान, पुराने खाली तेल के डिब्बे, टूटे हुए डिब्बे, टूटी हुई बेड़ियाँ, टूटी टोकरियाँ छोटी छड़ियों या छोटी लोहे की छड़ों के साथ कुछ अन्य संगीत वाद्ययंत्रों के साथ बजाई जाती हैं।

कुल मिलाकर कानफोड़ू शब्दों के साथ-साथ मच्छर मारने से जुड़ी तरह-तरह की तुकबंदी भी मुंह से बोली जाती है । सड़कपर देखने के लिए मिट्टी के बर्तन के अंदर मोमबत्ती जलाई जाती है और बर्तन के मुँह को टॉर्च की रोशनी के रूप में उपयोग किया जाता है।

अन्य लोग अपने साथ मशालें लेकर चलते हैं। जहां पुराने टायर भी जलाए जाते हैं। कई जगहों पर लड़के मुंह में मिट्टी का तेल लेकर उसे अजीब तरीके से मशाल पर फेंकते हैं और आग के गोले बनाते हैं।

मेदिनीपुर सदर के चुआडांगा हाई स्कूल के शिक्षक और झाड़ग्राम जिले के मूल निवासी सुदीप कुमार खांडा के अनुसार, ”लोक मान्यताओं के अनुसार, यदि आप इस तरह से मच्छरों को भगाते हैं, तो मच्छरों का प्रकोप कम हो जाएगा।

Folk festival "Mosha Kheda" celebrated enthusiastically in Jangal Mahal

दरअसल, कई लोगों का मानना ​​है कि यह पहल मानसून खत्म होने के बाद सर्दी के आगमन के दौरान मच्छरों के प्रकोप के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए की गई है। फिर ऐसा माना जाता है कि मोशा खेदा वास्तव में अलक्षी को विदा करने का त्योहार है।

पहले के दिनों में अलक्षी की काल्पनिक मूर्तियाँ भी गोबर से बनाई जाती थीं, मच्छर और अन्य हानिकारक कीड़े अलक्षी के साथी होते हैं।

जो लोगों, मवेशियों और फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं, अलक्षी और उसके साथियों को मोशा खेदा के रास्ते गांव से भगाने का प्रयास किया जाता है। उन्हें अफसोस इस बात का है कि आधुनिकता की चकाचौंध में मच्छरदानी लगभग गायब हो गई है।

इन सबके बावजूद इस बार गोपीबल्लबपुर-1 ब्लॉक के छतीनाशोल के टिकायतपुर, गोपीबल्लबपुर-2 ब्लॉक के जुनशोला, सांकराइल ब्लॉक के मऊभंडार समेत कई इलाकों में ‘मच्छर खेदा ‘ आयोजित किया गया है।

मोशा खेदा में भाग लेने वालों में जुनशोला में विश्वजीत पाल, सुब्रत पाल, रिधम पाल, रिपन मन्ना, सागर दे, सुदीप्त दे, आकाश शर्मा, सायन पांजा, गौरांग राउत, लंबुधर बाग, संजीव गिरी, सुदीप खमकट, अनिक जाना, शिल्पा डे, स्वागता डे, रनिता प्रधान, सयंतिका दास, पॉलोमी पांजा आदि प्रमुख रहे।

ज्ञात हो कि उत्तर पूर्व भारत के असम राज्य में कुछ मच्छर खेदा का चलन हैं, हालांकि यह अग्रहायण मास की पूर्णिमा की रात को आयोजित किया जाता है। यहां भी लड़के की छड़ी हाथ में लेकर घूम-घूमकर खेड़ा गीत गाते है… गाकर घर-परिवार से आशीर्वाद मांगते हैं।

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