श्रीराम पुकार शर्मा, हावड़ा। जनसंख्या के आधार पर भारत दुनिया का सर्वाधिक आबादी वाला देश बन गया है। विश्व का अब हर छठा व्यक्ति भारतीय है। संयुक्त राष्ट्र की ‘द स्टेट ऑप वर्ल्ड पॉपुलेशन रिपोर्ट’ के मुताबिक, भारत की जनसंख्या 17 अप्रैल 2023 को बढ़ कर 142.86 करोड़ हो गई है, जबकि इसके पूर्व सर्वाधिक आबादी वाला चीन की वर्तमान जनसंख्या 142.26 करोड़ है। इस प्रकार भारत की जनसंख्या चीन से लगभग 50 लाख अधिक हो गई है। संयुक्त राष्ट्र (UNFPA) के आंकड़ों ने भी इस तथ्य की पुष्टि कर दी है। कारण स्पष्ट है कि भारत में बच्चे पैदा करने की दर में विगत वर्षों में 0.81 प्रतिशत वृद्धि हुई है, जबकि चीन में बच्चे पैदा करने की दर में बहुत कमी हुई है।
इस वर्ष तो चीन में बच्चे पैदा करने की दर पहले की अपेक्षा ऋणात्मक में दर्ज की गई। इसके साथ ही विश्व का सर्वाधिक जनसंख्या कहलाने का गौरव भी अब चीन के हाथों से पिछल कर भारत के हाथों में आ पहुँच है। अब दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी वाला देश चीन नहीं है, बल्कि अपना देश भारत बन गया है। लेकिन जनसंख्या संबंधित विश्व कीर्तिमान को स्थापित करने से एक भारतीय होने के कारण हम समझ नहीं पा रहे हैं कि हम हर्षित होवें या फिर खेद प्रगट करें। लेकिन जैसा कि हर क्रिया-कलापों के पीछे प्राकृतिक या ईश्वरीय हेतु रहता है। इसके पीछे भी कुछ न कुछ हेतु है।
इस साल की शुरूआत में ही ‘ग्लोबल एक्सपर्ट्स’ ने अनुमान लगाया था कि 2023 के मध्य तक भारत की आबादी सर्वाधिक हो जाएगी, क्योंकि भारत की जनसंख्या की वृद्धि दर 2011 से ही औसतन 17.7 % रहा है। अब इस पर संयुक्त ‘राष्ट्र जनसंख्या कोष’ (UNFPA) के नवीनतम आंकड़ों ने भी अपनी मुहर लगा दी है। 2022 के अंत तक भारत की जनसंख्या 141.70 करोड़ हो चुकी थी। यह कोई आकस्मिक घटना नहीं है, बल्कि यह जनसंख्या वृद्धि क्रमिक घटना है। 1951 में भारत की जनसंख्या 86.10 करोड़ थी। उस समय चीन की आबादी 114.40 करोड़ थी। 73 वर्षों में हमारी जनसंख्या 65.7 % बढ़ी है, जबकि चीन की जनसंख्या मात्र 24.35 % ही बढ़ी है। अर्थात हमारे यहाँ जनसंख्या की बढ़ोतरी चीन की अपेक्षा ढाई गुना से भी अधिक हुई है। अनुमान किया जाता है कि भारत की आबादी 2050 तक बढ़कर 166.8 करोड़ हो जाएगी, जबकि चीन की जनसंख्या घटकर 131.70 करोड़ होने जाने का अनुमान है।
वर्तमान में भारत की मौजूदा जनसंख्या से चीन की जनसंख्या अपेक्षाकृत लगभग 0.5 करोड़ कम। उम्मीद है 2030 तक 1.5 बिलियन से अधिक लोगों वाला विश्व का पहला देश हमारा भारत होगा और इसकी जनसंख्या 2050 तक 1.7 बिलियन तक पहुँचने की आशा है। इसके साथ ही विश्व की जनसंख्या पर दृष्टि रखने वाली अन्य कई संस्थाओं का भी अनुमान है कि भारत की आबादी और करीब तीन दशकों तक बढ़ते रहने की संभावना है। तत्पश्चात इसकी जनसंख्या 165 करोड़ पर पहुँचने के उपरांत इसकी जनसंख्या वृद्धि रफ्तार घटने का अनुमान है।
भारत की जनसंख्या के वर्तमान रूप का विश्लेषण किया जाए, तो सरकारी आकड़े इस प्रकार के डाटा बेस को प्रस्तुत करते हैं – भारत में 0-14 वर्ष आयु वर्ग की आबादी 25 % है, 10-19 वर्ष आयु वर्ग की आबादी 18 % हैं, 10-24 वर्ष आयु वर्ग की आबादी 26 % हैं, 15-64 वर्ष आयु वर्ग की आबादी 68 % और 65 वर्ष के ऊपर के आयु वर्ग की आबादी 7 % हैं। अर्थात भारत में 15-64 वर्ष आयु वर्ग की संख्या सर्वाधिक है। जबकि चीन में 65 वर्ष से अधिक आयु के लोग की संख्या बढ़ी है। वहाँ उनकी संख्या लगभग 20 करोड़ हो गए हैं।
जबकि केरल और पंजाब में बुजुर्गों की आबादी अधिक है। बिहार और उत्तर प्रदेश में युवा आबादी अधिक है। कुछ दशक पहले चीनी सरकार ने एक बच्चे वाली नीति लागू कर दी थी, जिस कारण वहाँ के लोगों ने बच्चे पैदा करने की इच्छा कम कर दी है। इसी का खामियाजा चीन को अपनी जनसंख्या में कमी के रूप में भुगतना पड़ रहा है। जनसंख्या की दृष्टि से देखा जाए तो विश्व की जनसंख्या में भारत की हिस्सेदारी लगभग 18 % हो गई है। इसका मतलब यही है, विश्व का हर छठा व्यक्ति अब भारतीय हो गया है।
1980 में, चीनी अर्थव्यवस्था (191 बिलियन अमेरिकी डॉलर) और भारतीय अर्थव्यवस्था (186 बिलियन अमेरिकी डॉलर) का था, जो लगभग समान ही था। परंतु अपनी आबादी विशेषकर अपनी युवा आबादी का सही उपयोग कर चीनी अर्थव्यवस्था का आकार 15 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर है, जबकि भारतीय अर्थव्यवस्था गिर करके 2.6 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर है। जो लगभग पाँच गुना अधिक है। जबकि विश्व की जनसंख्या में भारत की हिस्सेदारी लगभग 18 % रही है। तब तो वैश्विक जीएनपी का भारतीय हिस्सादारी भी 18 % तक होनी चाहिए थी, परंतु काफी कम है। इसके लिए चीन ने बहुत पहले से ही अपनी अर्थव्यवस्था को वैश्विक आर्थिक प्रतिस्पर्धा के लिए खोल दिया है। जिस कारण चीनी आर्थिक प्रतिस्पर्धा विश्व स्तर पर बढ़ी है, इसलिए चीनी की अर्थव्यवस्था फली-फूली और निरंतर आगे बढ़ी है।
इसके विपरीत भारतीय वैश्विक आर्थिक प्रतिस्पर्धा से वंचित रहे है। अतः भारत की अर्थव्यवस्था पिछड़ गई है। डॉ. शान वेइजियन नामक एक अर्थशास्त्री के अनुसार 50 और 60 के दशक में भारत एक पूंजीवादी राष्ट्र था, परंतु चीन नहीं। परंतु विगत पाँच-छः दशकों में चीन अपने नागरिकों की उद्यम नीति, वैश्वीय आर्थिक प्रतिस्पर्धा नीति, विशेषकर बाजार अर्थव्यवस्था नीति और निजी विशेष उद्यम नीति के आधार पर अमेरिका से भी ज्यादा पूंजीवादी हो गया है। उसका सरकारी व्यय का प्रमुख केंद्र घरेलू बुनियादी उत्पादन है। चीन के पास अब संयुक्त राज्य अमेरिका की तुलना में बेहतर राजमार्ग, रेल प्रणाली, पुल, हवाई अड्डे और अन्य मानवीय सेवाएँ आदि हैं।
केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के ‘हेल्थ मैनेजमेंट इनफार्मेशन सिस्टम’ की 2021-2022 की रिपोर्ट के अनुसार भारत में आबादी की वृद्धि का प्रमुख कारण शिशु मृत्यु दर में काफी कमी को माना जाता है। शिशु, नवजात शिशु और पाँच वर्ष के नीचे के मोरटेलिटी मृत्यु दर में काफी कमी आई है। 2012 में शिशु मृत्यु दर हर एक हजार पर 42 थी, जो 2020 में घट कर 28 पर आ गई। यह तो अच्छी और संतोषजनक उपलब्धि है। इसके लिए आवश्यक चिकित्सा और चिकित्सा क्षेत्र में आवश्यक सुधार और उपयुक्त अन्वेषण प्रमुख कर्क रहें हैं। संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि भारत में हर साल लगभग ढाई करोड़ बच्चे जन्म लेते हैं, इसकी अपेक्षा चीन में जनसंख्या नियंत्रण नीति के कारण प्रति वर्ष इससे आधे बच्चे ही जन्म लेते हैं। चीन में 2022 में 95 लाख बच्चों ने जन्म लिया है, वही पर भारत में 2021-22 में साल भर में 2.03 करोड़ बच्चो का जन्म हुआ है।
जन्म दर तथा मृत्यु दर के अन्तर को ‘प्राकृतिक जनसंख्या वृद्धि दर’ भी कहा जाता है। जिस देश में प्राकृतिक जनसंख्या वृद्धि दर में अंतर जितना ज्यादा होगा, उतना ही उस देश की जनसंख्या में वृद्धि होगी। चिकित्सा क्षेत्र में निरंतर प्रगति, चिकित्सा क्षेत्र में सरकारी भागीदारी, गरीबी उन्मूलन, कार्य के अवसर में वृद्धि, सरकारी सहायता, जीवन शैली में उत्तरोत्तरी विकास आदि कारक भारत में प्राकृतिक जनसंख्या वृद्धि दर को अधिक किये हुए हैं, जो देश की जनसंख्या की वृद्धि में सहायक सिद्ध हुए हैं। भारत की जनसंख्या की वृद्धि में कुछ प्रवासी का भी प्रभाव पड़ा है। बांग्लादेश के सीमा से लगे राज्यों में जनसंख्या वृद्धि का एक बड़ा कारण प्रवासीजन भी है।
आज भी हमारे देश में निरक्षर लोगों की संख्या कम नहीं है। अशिक्षा अज्ञानता को बढ़ावा देता है। फलतः अशिक्षित लोग परिवार-नियोजन संबंधित उपायों की ठीक से जानकारी नहीं ले पाते हैं और फिर अज्ञानतावश लोग आज भी बच्चों को ऊपर वाले की देन ही मानते रहे हैं। सरकार भले ही 18 वर्ष से कम उम्र में लडकियों तथा 21 वर्ष से कम उम्र के लड़कों की शादी कानूनन अपराध घोषणा किया है। पर हमारे देश के दूर-दराज क्षेत्रों में आज भी बाल विवाह तथा कम उम्र में विवाह जैसी कुप्रथाएँ प्रचलित है। जल्दी शादी होने के कारण किशोर जल्दी माँ-बाप बन रहे हैं, जो देश की जनसंख्या में वृद्धि कर रहे हैं। फिर कुछेक विशेष संप्रदाय में बहु-पत्नी प्रथा और उसी के अनुकूल अधिक से अधिक बच्चे पैदा करने की नीति भी भारतीय जनसंख्या को बढ़ाने में अहम भूमिका का निर्वाहन करती है।
जनसंख्या के मामले में विश्व का नंबर एक होने जैसी कीर्तिमान को स्थापित करने की खबर हम भारतीयों के लिए खुशी की बात है, या चिंता बढ़ाने वाली बात है। यह बात भी अति विचारणीय है। आबादी का इस कदर बढ़ना एक दोधारी तलवार हो सकती है। इतनी बड़ी आबादी किसी भी देश के लिए उसके अर्थव्यवस्था के लिए जहाँ एक ओर चुनौती भी बन सकती है, तो दूसरी ओर विशाल जनसमूह उस देश की प्रगति के भी अपार अवसर प्रदान कर देश को विकासशील देश की श्रेणी में ला खड़ा कर सकते हैं। जैसे कि अबतक चीन की विशाल जनसंख्या ने चीन को एक प्रबल विकसित पूंजीवादी देश के रूप में स्थापित की है।
जनसख्या वृद्धि के साथ ही कई सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक एवं पर्यावरणीय समस्याएँ भी पैदा हो सकती हैं। जनसंख्या वृद्धि के साथ-साथ मानवीय आवश्यकताओं में भी तेजी से वृद्धि होती है, जिससे देश के सीमित संसाधनों पर, विशेष रूप से भूमि, वायु तथा पानी पर अत्यधिक दबाव पड़ने की संभावना बढ़ जाती है। मनुष्य सहित लगभग समस्त जीवधारियों के लिए ये तीनों संसाधन अत्यावश्यक है। मानवीय भोगवादी क्रिया-कलापों के कारण भारत में ये पहले से ही बहुत अधिक प्रदूषित हो चुके हैं। कालांतर में अनेक पर्यावरणीय समस्याएँ, जैसे- प्रदूषण, भू-क्षरण, बाढ़, सूखा तथा महामारियाँ आदि विपत्तियाँ पैदा हो सकने की संभावनाएँ बढ़ सकती हैं।
जनसंख्या में निरंतर वृद्धि के कारण हमारे देश भारत में खाद्य सामग्री संबंधित असंतुलन भी पहले से ही व्याप्त है। यह भी सत्य है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से और हरित क्रांति के उपरांत हमारे देश में खाद्यान्न का उत्पादन तीन गुना से भी अधिक अवश्य ही बढ़ा है, किन्तु जनसंख्या में भी तो उसी रफ्तार में अत्यधिक वृद्धि हुई है, जिसके कारण आज भी प्रति व्यक्ति खाद्यान्न का अनुपात अन्य विकसित देशों की अपेक्षा काफी कम ही है। ऐसे में बढ़ती जनसंख्या हमारे सीमित खाद्यान पर बोझ बन सकते हैं। समय-समय पर दुर्भिक्ष भी देखने को मिल सकते हैं। इसे नकारा नहीं जा सकता है।
जनसंख्या में बेहताश वृद्धि हमारे सामाजिक जीवन को भी प्रभावित कर सकते हैं। घर-द्वार, खेत-खलिहान के भाग-बंटवारे से लेकर नौकरी-चाकरी तक के क्षेत्र में अराजकता देखने को मिल सकती है, क्योंकि ये सभी साधन तो सीमित ही हैं। देश की आर्थिक स्थिति डगमगा सकती है। सभी के लिए बुनियादी सुविधा यथा, रोटी, कपड़ा, मकान, चिकित्सा, शिक्षा, परिवहन आदि जुटाना सरकार के लिए भी एक विराट चुनौती बन सकती है।
ये सभी तो संभावित चुनौतियाँ हैं। लेकिन जैसा कि हम सभी जानते हैं कि यदि समय रहते ही अपनी संतानों को सही संस्कार और सही मार्ग दर्शन किया जाए, तो उनके भविष्य के साथ ही हम अभिभावकों और देश के भविष्य को भी सुखकर बनाया जा सकता है। ठीक उसी प्रकार अपनी बढ़ती आबादी का भी सही मार्ग दर्शन करने पर हमारी यह विराट जनसंख्या हमारे देश के लिए शक्ति-संसाधन बन कर देश को विकास के अग्रिम पंक्ति में ले जाकर स्थापित करेंगी। जैसा कि हम जान चुके हैं कि हमारे देश में सबसे ज्यादा आबादी युवा वर्ग की है, जो 68% है। हमारी यह युवा आबादी हमारे देश के लिए फायदेमंद हो सकती है, जो देश के आर्थिक विकास को बेहतर बना सकते हैं। युवा आबादी का मतलब ही है, अधिक बुद्धिवत श्रम शक्ति, जिससे अधिक तेज गति से देश का विकास संभव हो सकता है।
युवा शक्ति का सही उपयोग से ही भारत बन सकता है, विश्व का एक प्रमुख शक्ति। यह सत्य है कि जनसंख्या बढ़ने के साथ ही विभिन्न वस्तुओं और सेवाओं की भी माँग बढ़ेगी। उनका उत्पादन पहले से अधिक बढ़ना होगा। जो नई-नई तकनीकी के आविष्कार पर जोर देगा। जो देश के विकास को अधिक और अधिक रफ्तार दे सकती है। रोटी, कपड़े, मकान, स्वास्थ्य, परिवहन तथा अन्य सेवा तक हर चीजों की माँग और बढ़ेगी। फलतः लगभग हर तरह के व्यापर में विस्तार और वृद्धि के अनेक अवसर पैदा होंगे। ये संभावित सभी अवसर ही रोजगार के रूप में परिणत होंगे। यह कोई कल्पित बात न होकर अब तक के प्रत्यक्ष प्रमाण हैं।
बढ़ती जनसंख्या के साथ ही विभिन्न कार्य-क्षेत्र में रोजगार के बढ़ते अवसर भी सृजित हुए हैं। इस प्रकार से अपने देश की बढ़ती आबादी बढ़ते रोजगार के अवसर के साथ संतुलित होती रही है। आगे भी बढ़ती युवा आबादी के साथ ही भारत में युवा शक्ति में बढ़ोतरी होगी। भारत को सारी दुनिया के लिए उत्पादन का एक बड़ा अवसर बनाते हुए हमारा देश भारत एक बड़ा ‘प्रोडक्ट पावर हाउस’ बन सकता है। अतः देश की बढ़ती आबादी को देखकर निराश होने की आवश्यकता नहीं है। बस समयानुसार उन्हें नई तकनीकी शिक्षा के द्वारा उनका सही मार्ग दर्शन करना अपेक्षित है।
श्रीराम पुकार शर्मा
हावड़ा – 711101 (पश्चिम बंगाल)
ई-मेल सूत्र – rampukar17@gmail.com
(स्पष्टीकरण : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी व व्यक्तिगत है। इस आलेख में दी गई सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई है।)