कोरोना और रूस-यूक्रेन युद्ध की दोहरी मार भी नहीं रोक सकेगी भारतीय अर्थव्यवस्था की रफ्तार

संयुक्त राष्ट्र । वैश्विक अर्थव्यवस्था कोरोना महामारी के प्रभाव से पूरी तरह उबरी भी नहीं थी कि यूक्रेन पर रूस के हमले ने इस पर दोहरा आघात कर दिया। दो महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों के अनुसार, आर्थिक उथल पुथल के इस दौर में भी भारत दुनिया की सबसे तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था है। मंगलवार को जारी विश्व आर्थिक परिदृश्य (डब्ल्यूईओ) की रिपोर्ट के अनुसार, चालू वित्त वर्ष भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 8.2 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान है।

भारत के बाद दूसरी तेज रफ्तार चीन की है। चीन 4.4 प्रतिशत की वृद्धि दर के साथ दूसरी सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है। स्पेन का विकास दर अनुमान 4.8 प्रतिशत है लेकिन यह अर्थव्यवस्था आकार में 14वें स्थान पर है, जिसकी वजह से चीन को दूसरा स्थान मिला है।

चालू वित्त वर्ष में भारत के लिये आईएमएफ विकास अनुमान पिछले वर्ष हासिल की गई 8.9 प्रतिशत की वृद्धि से कम है। भारत के लिये आईएमएफ का विकास अनुमान इस महीने की शुरूआत में विश्व बैंक के 8 प्रतिशत के वृद्धि अनुमान से थोड़ा अधिक है। विश्व बैंक की कई रिपोटरें में भारत को सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था के रूप में बताया गया है जबकि चीन 5 प्रतिशत के विकास अनुमान के साथ इसके पीछे है।

इन वैश्विक संगठनों के विपरीत भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने वित्त वर्ष 2022-2023 के लिये 7.2 प्रतिशत वृद्धि दर अनुमान बताया है, जो पहले के 7.8 प्रतिशत के अनुमान से कम है। आईएमएफ के मुख्य अर्थशास्त्री पियरे-ओलिवियर गौरींशस ने भारत के लिये आईएमएफ के विकास अनुमान में कटौती के लिये यूक्रेन युद्ध के प्रभावों को जिम्मेदार ठहराया है।

उन्होंने मंगलवार को कहा, भारत एक बड़ा तेल आयातक देश है और इसी वजह से युद्ध के परिणाम को अन्य देशों की तरह झेल रहा है। उन्होंने कहा, खाद्य पदार्थों और ऊर्जा की बढ़ती कीमतें भारत के व्यापार संतुलन पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रही हैं। उन्होंने कहा, इससे भारत का निर्यात भी प्रभावित हो रहा है क्योंकि बाकी दुनिया धीमी गति से बढ़ रही है। इसीलिए, हम विदेशी मांग से कुछ नरमी देख रहे हैं।

वैश्विक परिदृश्य पर टिप्पणी करते हुये उन्होंने कहा, यूक्रेन युद्ध से होने वाली आर्थिक क्षति चालू वित्त वर्ष 2022 में वैश्विक विकास दर अनुमान में कमी आने की मुख्य वजह होगी। डब्ल्यूईओ ने विश्व अर्थव्यवस्था के 3.6 प्रतिशत की दर से बढ़ने का अनुमान जताया है, जो जनवरी में जारी अनुमान 4.4 प्रतिशत से 0.8 प्रतिशत कम है। इस वर्ष अमेरिका के 3.7 प्रतिशत और यूरो क्षेत्र के 2.8 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान है।

डब्ल्यूईओ ने कहा, युद्ध के कारण कमोडिटी की कीमतों में बढ़ोतरी से वित्त वर्ष 2022 के दौरान उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रास्फीति का अनुमान 5.7 प्रतिशत और उभरते बाजार और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में इसके 8.7 प्रतिशत रहने का अनुमान है। मुद्रास्फीति का संशोधित अनुमान जनवरी में जारी अनुमान से उन्नत अर्थव्यवस्था में 1.8 कम और उभरते बाजार तथा विकासशील अर्थव्यवस्था में 2.8 प्रतिशत अधिक है। आईएमएफ ने यह भी चेतावनी दी है कि यूक्रेन युद्ध की वजह से खाद्य पदार्थो और ऊर्जा की कीमतों में आयी तेजी के कारण सामाजिक तनाव की संभावना भी बढ़ गयी है। इसका असर भी आर्थिक परिदृश्य पर दिखेगा।

भारत में चालू वित्त वर्ष खुदरा कीमतों में 6.1 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान है, जो पिछले वित्त वर्ष 5.5 प्रतिशत थी। अगले वित्त वर्ष इसके 4.8 प्रतिशत रहने का अनुमान है। डब्ल्यूईओ ने कहा है कि दक्षिण एशिया में भारत के बाद बंगलादेश दूसरी तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था रहेगा। बंगलादेश के इस वित्त वर्ष 6.4 फीसदी और अगले वित्त वर्ष 6.7 फीसदी से विकास करने का अनुमान जताया गया है। आईएमएफ ने गंभीर वित्तीय संकट से गुजर रहे श्रीलंका के लिये चालू वित्त वर्ष 2.6 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान जताया है।

पाकिस्तान के लिये आईएमएफ ने इस साल 4 फीसदी और अगले साल 4.2 फीसदी की वृद्धि दर का अनुमान व्यक्त किया है। नेपाल का विकास अनुमान इस वर्ष 4.1 प्रतिशत है जो अगले वर्ष बढ़कर 6.1 प्रतिशत हो जायेगा। मालदीव इस साल 6.1 फीसदी और अगले साल 8.9 फीसदी और भूटान का चालू वित्त वर्ष के लिये विकास अनुमान 4.4 फीसदी और अगले वित्त वर्ष के लिये 4.5 फीसदी है। आईएमएफ ने अफगानिस्तान के लिये कोई अनुमान जारी नहीं किया है। अफगानिस्तान पर तालिबान का शासन है।

इससे पहले डेलॉइट ने इस महीने एक रिपोर्ट में 2021-22 के दौरान भारत के विकास अनुमान के 8.3 प्रतिशत से 8.8 प्रतिशत के बीच रहने का अनुमान जताया था। उसने अपनी रिपोर्ट में कहा, भारत के आर्थिक बुनियादी ढांचे मजबूत हैं और इस अल्पकालिक अस्थिरता का अर्थव्यवस्था पर दीर्घकालिक प्रभाव मामूली होगा। डेलॉइट ने यूक्रेन युद्ध को भारत के लिये अनोखा अवसर बताते हुये कहा, भू-राजनीतिक संघर्षों के प्रभाव भारत को एक पसंदीदा वैकल्पिक निवेश स्थान के रूप में बढ़ा सकते हैं। बहुराष्ट्रीय कंपनियां पूर्वी यूरोपीय बाजारों (विशेषकर यूक्रेन की सीमावर्ती इलाकों वाले) की जगह भारत को तरजीह दे सकती हैं।

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