– संकाय के छात्र ने बनाया दोशी का रेखाचित्र, दिखाया गया वृतचित्र।
– प्रख्यात वास्तुविद दोशी के व्यक्तित्व एवं कृतियों से अवगत हुए वास्तुकला के प्रथम वर्ष के छात्र।
भूपेंद्र कुमार अस्थाना, लखनऊ। देश के प्रख्यात वास्तुविद बालकृष्ण विट्ठलदास दोशी (बी.वी. दोशी) का जन्म पुणे, महाराष्ट्र में 26 अगस्त 1927 को हुआ था। वे एक प्रख्यात भारतीय वास्तुकार थे। उन्हें भारतीय वास्तुकला का एक महत्वपूर्ण व्यक्ति माना जाता है और भारत में वास्तुकला के विकास में उनके अहम योगदान के लिए विशेष रूप से जाना जाता है। ले कोर्बुज़िए और लुइस आई कान के अधीन काम करने के बाद, वह भारत में आधुनिकतावादी वास्तुकलाऔर Brutalist architecture के अग्रेता रहे। ज्ञातव्य हो की अभी पिछले दिनों अहमदाबाद, गुजरात में 24 जनवरी 2023 को उनका निधन हो गया, वे 96 वर्ष के थे।
बुधवार को वास्तुकला एवं योजना संकाय, डॉ. ए.पी.जे.अब्दुल कलाम, प्राविधिक विश्वविद्यालय,लखनऊ टैगोर मार्ग में प्रख्यात वास्तुविद बी.वी. दोशी को याद किया गया। साथ ही साक्षी अग्रवाल ने दोशी का एक रेखांकन बनाया और उनके जीवन और कृतियों पर आधारित वृतचित्र भी दिखया गया। संकाय के कला शिक्षक गिरीश पाण्डेय ने चर्चा करते हुये कहा कि बी.वी. दोशी मानवीय संवेद तथा व्यवहार से गुम्फित आकारों के सृजक थे। उनके वास्तुशिल्प मानव स्वाभाव को प्रकृति, सांस्कृतिक रहन-सहन से जुड़कर अपने परिवेश से बातें करते हुये लगते हैं। बी.वी. दोशी सदैव सिद्धांतों से मुक्त हो कर कार्य करते रहे। ‘अहमदाबाद नी गुफा’ बी.वी. दोशी के कलात्मक मनोभाव का बेहतरीन उदाहरण है। जिसमें प्रसिद्ध चित्रकार एम.एफ. हुसैन ने भी अपने कलात्मक अभिव्यक्ति का प्रदर्शन किया है।
विभागाध्यक्ष प्रो. रितु गुलाटी ने बताया कि दोशी हमेशा से मेरे आदर्श रहे हैं। उन्होने आगे बताया कि जब वे प्रेजेंटेशन देते थे तो उसके साथ कोलाज का भी बड़ी संख्या में प्रयोग करते थे। 1987-88 में वे लखनऊ आईआईएम के हाउसिंग साइट प्लान के संदर्भ में लखनऊ आए थे। उन्हे लखनऊ के वास्तु बहुत प्रभावित करते थे। संकाय की अधिष्ठाता डॉ. वंदना सहगल ने बताया की दोशी देश के सभी वास्तुकारों के आदर्श थे और रहेंगे। आगे बताया कि मैं अपने शोध के दौरान 1999-2000 मे उनसे मिली थी। उन्होने भारतीय वास्तुकला के मूल को समकालीन के साथ संबंध स्थापित करने के लिए सदैव तत्पर रहे। वे बहुत की ऊर्जावान वाले व्यक्ति थे। उन्होने अपने जीवन के अंतिम क्षणों तक कार्य किया और बेशकीमती योगदान दिया। संकाय के शैक्षणिक भवन के एक हिस्से का नाम उनके नाम पर “दोशी ब्लॉक” रखा गया है।
भूपेंद्र कुमार अस्थाना ने छात्रों को बताया की उन्होंने 1947 और 1950 के बीच मुंबई में सर जेजे स्कूल ऑफ आर्ट में अध्ययन किया था। उनके अधिक उल्लेखनीय डिजाइनों में फ्लेम यूनिवर्सिटी, आईआईएम बैंगलोर, आईआईएम उदयपुर, एनआईएफटी दिल्ली, अमदवाद नी गुफा, सीईपीटी यूनिवर्सिटी और इंदौर में अरण्य लो कॉस्ट हाउसिंग डेवलपमेंट शामिल हैं। जिसे आर्किटेक्चर के लिए आगा खान पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। 2018 में वह प्रित्ज़कर आर्किटेक्चर पुरस्कार प्राप्त करने वाले पहले भारतीय वास्तुकार बने, जिसे वास्तुकला में सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों में से एक माना जाता है। उन्हें पद्मश्री और पद्म भूषण से भी सम्मानित किया गया। उन्हें 2022 के लिए रॉयल इंस्टीट्यूट ऑफ ब्रिटिश आर्किटेक्ट्स के रॉयल गोल्ड मेडल से सम्मानित किया गया। इस अवसर पर बी आर्क प्रथम वर्ष के समस्त छात्र और शिक्षक गिरीश पाण्डेय, धीरज यादव आदि लोग उपस्थित रहे।