हिमालयी कच्चे पहाड़ों के लिए ईजाद हुई पर्यावरण अनुकूल सुरंग तकनीक

देहरादून:  हिमालय की शिवालिक श्रेणी के कच्चे या युवा मिट्टी वाले कम पथरीले पहाड़ों में प्रकृति एवं पर्यावरण के अनुकूल सुरंग बनाने की नयी तकनीक की ईजाद हुई है जिसे विश्व भर में सराहा जा रहा है। रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने इस बात का खुलासा किया है कि उत्तराखंड में ऋषिकेश कर्णप्रयाग रेलवे लाइन परियोजना में इस तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है। वैष्णव ने कल देर शाम मुख्यमंत्री आवास में आयोजित एक कार्यक्रम में संवाददाताओं से बातचीत में कहा कि ऋषिकेश और कर्णप्रयाग के बीच एक नई ब्रॉडगेज रेल लाइन उत्‍तराखण्‍ड राज्‍य की बेहद महत्‍वपूर्ण विकासात्‍मक परियोजना है।

यह 125 किलोमीटर की लाइन में 104 किलोमीटर सुरंगें बननी है। उन्होंने कहा कि हिमालय में पहली बार टीबीएम (टनल बोरिंग मशीन) का प्रयोग किया जा रहा है। पहले सुरंग एनएटीएम तकनीक से बनाई जाती है। लेकिन अब वैज्ञानिकों एवं अभियंताओं ने हिमालयन टनलिंग मैथड को ईजाद किया है। रेल मंत्री ने कहा कि सुरंग में स्थिरता लाने के लिए पारंपरिक डिजाइन को बदल कर अर्ध दीर्घवृत्ताकार बनाया गया है जिससे पहाड़ के दबाव को ही सुरंग की स्थिरता का कारक बनाया गया है।

इस प्रकार से सुरंग बनाने के लिए पर्यावरण एवं प्रकृति का तकनीक से सामंजस्य स्थापित किया गया है। उन्होंने कहा, “हम कहते हैं कि पहाड़ महाराज, हमको थोड़ा रास्ता दे दो। उन्होंने कहा कि अभी तक आॅस्ट्रिया एवं स्विट्जरलैंड की डिजाइन एवं तकनीक को विश्व में सबसे उत्तम माना जाता था लेकिन कम चट्टान एवं अधिक मिट्टी वाले पर्वतीय क्षेत्र में भारत की हिमालयन टनलिंग मैथड की उन देशों में भी प्रशंसा हो रही है।

उन्होंने कहा कि कि इस विधि पर एक शोध पत्र तैयार किया गया है और उसे कई बड़े मुल्कों ने साझा करने का अनुरोध किया है। वैष्णव ने कहा कि सुरंग बनाने की नई तकनीक का सड़क परियोजनाओं और अन्य अवसंरचना परियोजनाओं में भी इस्तेमाल किया जा सकता है। ऋषिकेश में निर्माणाधीन टनल-1 में परियोजना प्रबंधक रविकांत के अनुसार शुरुआती पहाड़ मिट्टी के होने के कारण सुरंग बनाने का काम अपेक्षा कृत धीरे-धीरे होता है।

इसमें टीबीएम की जगह जम्बो मशीनों से सुरंग बनायी जा रही है। इसमें पहले सुरंग की संरचना का प्रोफाइल ड्रा किया जाता है। फिर उसकी लाइन से बाहर कुछ दूरी पर 12-12 फुट तक पाइप डाले जाते हैं और उनमें शक्ति के साथ कंक्रीट/मोर्टार इंजेक्ट किया जाता है। इससे भूस्खलन की संभावना खत्म हो जाती है। तब नीचे से मिट्टी खोद कर रास्ता बनाया जाता है।

उन्होंने कहा कि इस तरह से प्रतिदिन 75 सेंटीमीटर से एक मीटर तक की खुदाई हो पाती है। यदि पथरीले पहाड़ हों तो रोजाना चार मीटर तक की खुदाई होती है। अधिकारियों के अनुसार यह परियोजना सितम्बर 2020 में शुरू ही गयी थी तथा दिसम्बर 2025 तक पूरी करके रेल परिचालन शुरू करने का लक्ष्य है। इस 125 किलोमीटर की परियोजना का काम दस पैकेजों में किया जा रहा है और क़रीब-क़रीब 50 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है।

अगले दो वर्षों में ऋषिकेश से कर्णप्रयाग की दूरी रेल मार्ग से आधी हो जाएगी। ट्रेन से ऋषिकेश से दो घंटे में कर्णप्रयाग और करीब साढ़े चार घंटे में बद्रीनाथ पहुँच सकेंगे। अभी यह दूरी तय करने में सड़क मार्ग से आठ घंटे का समय लगता है। दिल्ली से बद्रीनाथ धाम एक दिन में पहुँचा जा सकेगा। इस रेलमार्ग पर 100 किलोमीटर की गति से ट्रेनों का आवागमन हो सकेगा। चूँकि पहले से ही योगनगरी ऋषिकेश तक रेललाइन है।

इसलिए कर्णप्रयाग तक देश के विभिन्न शहरों से ट्रेन और मालगाड़ियां पहुँच जाएगी। अधिकारियों ने बताया कि इस परियोजना में 17 सुरंगों, 13 सहायक सुरंगों, पांच महत्वपूर्ण पुल, 13 प्रमुख पुल एवं 34 छोटे पुल बनाए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि सबसे बड़ी सुरंग की लंबाई 14.58 किलोमीटर है। इस परियोजना में रेलवे स्टेशनों की संख्या 12 होगी। 17 प्रमुख पुलों पर काम चल रहा है, जिनमें से 2 पूरा होने के करीब हैं।

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