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राजनीति का अखाड़ा बन रही है दुर्गा पूजा, जनसंपर्क के लिए इस्तेमाल कर रहे राजनीतिक दल

कोलकाता। पश्चिम बंगाल की दुर्गा पूजा न केवल राज्य की सांस्कृतिक पहचान है बल्कि राजनीतिक दलों के लिए जनसंपर्क का भी जरिया बनती जा रही है। सूबे में इन दिनों दुर्गा पूजा की धूम है, वहीं प्रतिद्वंद्वी राजनीतिक दल तृणमूल कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) भी इस अवसर का उपयोग 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले अपने राजनीतिक प्रभाव को बढ़ाने के लिए करने में लगे हैं। दोनों दल जनता से संपर्क साधने के लिए जुटे हैं और राज्य के चुनावी परिदृश्य में धर्म को विमर्श का विषय बनाने का प्रयास कर रहे हैं।

दोनों दल वार्षिक पूजा समारोह को लोगों तक पहुंचने के लिए अवसर के रूप में देखते हैं और इसके दौरान उन्होंने लोगों तक अपने संदेश पहुंचाने के लिए व्यापक रणनीतियां तैयार की हैं। अपनी परंपरा को जारी रखते हुए सत्तारूढ़ तृणमूल ने कई सामुदायिक पूजा के लिए अनुदान की घोषणा की है, हालांकि पार्टी की यह कहते हुए आलोचना की गई है कि वह सरकारी खजाने की मदद से धार्मिक भावनाओं को भड़का रही है।

तृणमूल ने जनता से जुड़ाव के लिए विभिन्न पूजा पंडालों में बुक स्टॉल, स्वास्थ्य शिविर स्थापित करने जैसे कदम भी उठाए हैं। दूसरी ओर भाजपा ने इस बार राज्य में कई सामुदायिक पूजा का उद्घाटन करने के लिए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा सहित कई वरिष्ठ नेताओं को उतारा। इसने राज्य सरकार की मदद से वंचित 400 से अधिक पूजा समितियों को पहली बार वित्तीय सहायता भी दी है।

पार्टी ने राज्य में मंदिर से जुड़ी राजनीति लाने की भी कोशिश की और भाजपा नेता सजल घोष अयोध्या में निर्माणाधीन मंदिर की प्रतिकृति संतोष मित्रा चौराहा पूजा समिति के पूजा स्थल पर लेकर आए। गृह मंत्री शाह ने पिछले हफ्ते इसका उद्घाटन किया था।

तृणमूल नेता सौगत रॉय ने कहा कि पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा सिर्फ त्योहार ही नहीं है, बल्कि एक सांस्कृतिक उत्सव है, जिसे राजनीतिक और धार्मिक सीमाओं से परे हर कोई मनाता है। उन्होंने कहा कि इस त्योहार का उपयोग अपनी पार्टी के माध्यम से आम लोगों तक पहुंचने के साधन के रूप में किया जाता है।

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