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वाराणसी। पंचांग के अनुसार देवउठनी (प्रबोधिनी) एकादशी व्रत कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को रखा जाता है। इस दिन भगवान विष्णु चार महीने की लंबी नींद के बाद जगते हैं। इस दिन से सभी शुभ-मांगलिक कार्य पुनः शुरू हो जाते हैं।
देवउठनी एकादशी के दिन “तुलसी विवाह” भी किया जाता है अतः तुलसी विवाह 12 नवंबर 2024, मंगलवार देवउठनी एकादशी के दिन किया जाएगा।
देवउठनी एकादशी व्रत : इस बार एकादशी व्रत/तुलसी जी का विवाह 12 नवंबर 2024, मंगलवार को रखा जाएगा।
व्रत का पारण : एकादशी का पारण अगले दिन 13 नवंबर, बुधवार सुबह सूर्योदय से सुबह 9:00 बजे तक किया जा सकेगा।
देवउठनी एकादशी : इस दिन प्रातः जल्दी उठकर स्नान वगैरा से निवृत हो जाए। और साफ स्वच्छ वस्त्र धारण करें काले-नीले कपड़ों से परहेज करें।
भगवान श्रीहरि विष्णु जी को सुबह सबसे पहले तुलसी दल अर्पित करें, और भगवान सुंदर व पवित्र भाव के साथ व लोकगीत/श्लोक, प्रार्थना व मंत्रों के साथ उठाएं और उनसे जगत के कल्याण की कामना करें। आप यह मंत्र भी पूरे भाव के साथ उच्चारित कर सकते हैं :
“उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविन्द उत्तिष्ठ गरुडध्वज,
उत्तिष्ठ कमलाकान्त त्रैलोक्यं मङ्गलं कुरु।”
एकादशी व्रत के सामान्य नियम : जो लोग एकादशी का व्रत रखते हैं उन्हें दशमी तिथि से ही व्रत की तैयारी करनी चाहिए। उन्हें दशमी तिथि को भी सात्विक व सुपाच्य भोजन लेना चाहिए।
एकादशी व्रत के दिन किसी भी तरह का अन्न (अनाज) नहीं खाया जाता। इस दिन चावल खाना व खिलाना बिल्कुल वर्जित है।
एकादशी व्रत के दिन ज्यादा से ज्यादा मौन व्रत का पालन करें। भगवान के मंत्रों का जाप, श्री गोपाल सहस्त्रनाम, श्रीविष्णु सहस्त्रनाम, श्री रामचरित्र मानस भागवत गीता आदि का पठन व श्रवण करना चाहिए।
एकादशी व्रत के दिन फल, दूध इत्यादि भगवान को भोग लगाने के उपरांत ग्रहण किया जा सकता हैं।
भगवान श्री हरि विष्णु या भगवान श्री हरि के अवतार श्री राम, श्री कृष्ण के भोग में तुलसी दल का उपयोग जरूर करना चाहिए। बिना तुलसी दल के भोग स्वीकार नहीं होता!
एकादशी के दूसरे दिन व्रत का पारण किया जाता है, व्रत पारण के दिन भगवान को सात्विक भोजन का भोग लगाकर पारण करें और इस दिन अपनी श्रद्धा अनुसार दान-पुण्य करें। उसके उपरांत स्वयं प्रसाद ग्रहण करके व्रत खोले।
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ज्योतिर्विद रत्न वास्तु दैवज्ञ
पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री
मो. 99938 74848
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