आजादी विशेष : बलिदानी तारा पद जिनकी याद में रेलवे ने शुरू की है हूल एक्सप्रेस, भूख से बेहाल देशवासियों के लिए दिया था बलिदान

कोलकाता। अमर राष्ट्रपुरुष भारत को अंग्रेजों की बेड़ियों से मुक्त कराने के लिए लाखों क्रांतिकारियों ने आत्म बलिदान दिया था। अब आजादी के इस महीने में ऐसे कई चर्चित क्रांतिकारियों के किस्से तो हर जगह छाए हुए हैं, पर ऐसे लाखों गुमनाम क्रांतिकारी हैं जिनके सर्वोच्च बलिदान को इतिहास में उचित जगह ही नहीं मिली। ऐसे ही क्रांतिकारियों की वीर गाथा को पाठकों के समक्ष लाने की अपनी प्रतिबद्धता के तहत आज हम बात करेंगे क्रांतिकारी बंगाल के लाल तारा पद गुइन की।

देश की मिट्टी और देशवासियों के प्रति इनका ऐसा समर्पण था कि अगस्त क्रांति के दौरान जब अंग्रेजों ने द्वितीय विश्व युद्ध में अपने सिपाहियों के लिए बंगाल के विभिन्न हिस्सों से अनाज वसूल कर विदेश भेजने लगे तो भूखे देशवासियों का कष्ट उनसे देखा नहीं गया। क्रांतिकारियों को एकत्रित किया और अनाज ले जा रही अंग्रेजों की ट्रेन पर हमला बोल दिया।

इसी दौरान अंग्रेजी फौज ने क्रांतिकारियों को घेर कर गोलीबारी शुरू कर दी। मुठभेड़ हुआ, लंबा चला और सीने पर गोली खाकर तारा पद वहीं देश की मिट्टी में ही अपना सर्वोच्च बलिदान दे गए, लेकिन मां भारती के अन्य को विदेश नहीं जाने दिया। इतिहासकार नागेंद्र सिन्हा अपनी किताब अगस्त क्रांति के बलिदानियों में लिखते हैं कि तारा पद को किस तरह इतिहास में गुमनाम रहे हैं कि शायद इसी वजह से उनका जन्म कब किस वर्ष में हुआ यह भी ज्ञात नहीं है।

पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिला अंतर्गत बोलपुर में उनका जन्म हुआ था। यहां रेलवे के बर्धमान खंड में बोलपुर नाम का एक मशहूर रेलवे स्टेशन है। यहां पास में तीन-चार किलोमीटर की दूरी पर विश्वविख्यात शांतिनिकेतन भी है जहां कभी गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने भारतीय सभ्यता और संस्कृति के अनुरूप वैश्विक शिक्षा के लिए विश्व भारती की स्थापना की थी।

1942 में आजादी के लिए जब क्रांतिकारी पूरे देश में अंग्रेजों के खिलाफ अगस्त क्रांति छेड़े हुए थे तो बंगाल भी इससे अछूता नहीं था। बोलपुर में क्रांतिकारियों का नेतृत्व तारा पद कर रहे थे। उसी समय अंग्रेज अपने विस्तृत साम्राज्य को बचाने के लिए दुनिया भर में द्वितीय विश्व युद्ध लड़ रहे थे और इधर भारत में 1942-43 के दौरान घोर अकाल पड़ा था जिसकी वजह से भारतवासी खाने बगैर मर रहे थे।

एक बार खाना खा कर दो दो दिन तक देशवासियों को भूखा रहना पड़ता था। इसके बावजूद अंग्रेजों ने भारत के विभिन्न हिस्सों से अनाज वितरित कर बोलपुर रेलवे स्टेशन के जरिए दुनिया के विभिन्न देशों में मोर्चे पर तैनात अपने सिपाहियों के लिए भेजना शुरू कर दिया। एक तरफ भारतवासी मेहनत से अन्न उगाते थे और उसे अंग्रेज बर्बर और अत्याचारी तरीके से लूट कर अपने सिपाहियों को भेज रहे थे।

देशवासियों की यह दशा क्रांतिकारी तारा पद गुइंन से देखी नहीं गई। उन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर बोलपुर रेलवे स्टेशन पर हमले की योजना बनाई। 29 अगस्त 1942 को पूरे बोलपुर क्षेत्र में एक सामान्य हड़ताल का आयोजन किया गया जो पूर्णतया सफल रहा। तारा पद के नेतृत्व में हजारों की संख्या में ग्रामीणों ने रेलवे स्टेशन पर हमला बोल दिया और अंग्रेजों के लिए हो रही अनाज की ढुलाई को रोक दिया।

कई क्रांतिकारी आसपास की सड़कों को जाम कर चुके थे, जिसकी वजह से वहां मौजूद अंग्रेजी सिपाहियों को बाहर से मदद नहीं मिली। इसके बाद ग्रामीणों पर बर्बर तरीके से लाठीचार्ज शुरू हुआ जिसके बाद हमलावर सिपाहियों को पीटना शुरू कर दिया। इसकी सूचना मुख्यालय में पहुंची तो वहां से निहत्थे क्रांतिकारी पर बिना देरी किए फायरिंग के आदेश दे दिए गए।

अंधाधुंध गोलियां चलने लगीं और सैकड़ो ग्रामीण घायल हो गए। तारा पद ने देखा कि कई लोग मारे जाएंगे। इसके बाद गोली चलाने वाले अंग्रेजों से वह अकेले ही उलझ गए और इस सिलसिले में उन्हें कई गोलियां मार दी गईं। खून से लथपथ होकर वह वहीं गिर पड़े थे। इधर तारा पद को इस हालत में देखकर ग्रामीण और उग्र हो गए तथा स्टेशन पर तोड़फोड़ आगजनी शुरू कर दी जिसकी वजह से अनाजों को विदेश भेजने का काम रोक दिया गया।

दूसरी ओर स्टेशन पर खून से लथपथ हालत में पड़े तारा पद ने अपना जीवन सुमन मातृभूमि के चरणों में समर्पित कर दिया था।इस क्रांतिकारी और क्रांति की याद चिरस्थाई बनाए रखने के लिए बोलपुर स्टेशन परिसर में कांस्य धातु से एक स्मारक का निर्माण किया गया जिसका अनावरण लोकसभा के तत्कालीन अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी ने 29 अगस्त सन 2006 को किया था।

इतना ही नहीं आजादी के इस आंदोलन में बलिदान हुए क्रांतिकारी तारा पद गुइंन व अन्य की याद में भारतीय रेलवे ने हूल एक्सप्रेस नामक रेलगाड़ी की भी शुरुआत की है जो प्रतिदिन हावड़ा जंक्शन से खुलकर बीरभूम जिले के दूसरे अनुमंडल सिउड़ी तक चलती है। इस क्रांतिकारी को इतिहास में ऐसा भुलाया गया है कि आज तक उनकी एक भी तस्वीर उपलब्ध नहीं है।

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