आजादी विशेष : बंगाल के देवीपद ने 14 साल की बाली उमर में दिया था बलिदान, पिता ने खुद भेजा था आंदोलन में

कोलकाता: हमारे प्यारे वतन की आजादी का महीना चल रहा है और स्वतंत्रता दिवस की तैयारियां अंतिम चरणों में हैं। ऐसे समय में देश भर में मां भारती को गुलामी की बेड़ियों से मुक्त करने के लिए आत्म बलिदान देने वाले क्रांतिकारियों की अमर गाथाएं गूंज रही हैं। जिन गुमनाम क्रांतिकारियों को सर्वोच्च बलिदान के बावजूद इतिहास में उचित जगह नहीं मिल, उनकी दास्तां पाठकों के समक्ष लाने की अपनी प्रतिबद्धता के तहत आज हम बात करेंगे पश्चिम बंगाल के लाल देवीपद चौधरी की। इनकी बहादुरी का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि महज 14 साल की बाली उम्र में इन्होंने मातृभूमि पर अपना जीवन सुमन समर्पित कर दिया था।

इतिहासकार नागेंद्र सिंह बताते हैं की देवी पद चौधरी के पिता देवेंद्र नाथ चौधरी भी क्रांतिकारी विचारधारा के थे और पिता से ही प्रेरित होकर बचपन से ही देवी पद आजादी की लड़ाई का हिस्सा बन गए थे। 1942 के अगस्त क्रांति के दौरान जब पूरे देश से अंग्रेजी हुकूमत तख्तापलट के लिए सशस्त्र आंदोलन हो रहे थे तब 11 अगस्त 1942 को बिहार विधानसभा परिसर में लहरा रहे अंग्रेजी ध्वज को उतारने के लिए क्रांतिकारियों ने धावा बोला था, उसमें देवीपद चौधरी भी शामिल थे।

आतताई ब्रिटिश हुकूमत ने निहत्थे क्रांतिकारियों पर अंधाधुंध फायरिंग की ओर गोलियों से छलनी होकर भी अपने छह अन्य क्रांतिकारियों के साथ मिलकर बिहार विधानसभा पर तिरंगा लहराया था और फिर मां भारती पर जीवन सुमन समर्पित कर दिया था। तब उनकी उम्र महज 14 साल थी। इतिहासकार नागेंद्र सिन्हा अगस्त क्रांति के बलिदानियों को लेकर लिखी अपनी किताब में बताते हैं कि देवीपद चौधरी का जन्म तत्कालीन अविभक्त बंगाल के सिलहट जिला अंतर्गत विश्वनाथ थाना क्षेत्र के जमालपुर गांव में 16 अगस्त 1928 को हुआ था।

वर्तमान में यह जगह बांग्लादेश में है। हालांकि उनके पिता पटना हाई स्कूल में बंगाली पाठशाला के अध्यापक थो। माता प्रमोदिनी देवी भी एक धार्मिक महिला थीं। उस समय पूरे देश के साथ बिहार में भी अंग्रेजों के खिलाफ सशस्त्र क्रांति जोरों पर थी। पटना में डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद के नेतृत्व में अंग्रेजो के खिलाफ लगातार आंदोलन की रणनीति बन रही थी। इसमें देवीपद चौधरी के पिता देवेंद्र नाथ चौधरी भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते थे। 8 अगस्त 1942 को जब कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति द्वारा भारत छोड़ो का प्रस्ताव पारित हुआ तो ब्रिटिश सरकार तिलमिला गई थी।

भविष्य में क्रांतिकारी आंदोलन को रोकने के लिए अगले दिन यानी 9 अगस्त के तड़के से ही नेताओं की धड़ाधड़ गिरफ्तारी होने लगी। उस समय पटना में डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद बीमार थे लेकिन उसी हालत में उन्हें गिरफ्तार कर बांकीपुर के सेंट्रल जेल में नजरबंद कर दिया गया। गोरों के इस काले करतूत के विरुद्ध संपूर्ण बिहार में क्रांति की लहर चल पड़ी है। पटना में अंग्रेजों ने संभावित विरोध प्रदर्शन को रोकने के लिए धारा 144 लगा दी। लेकिन 11 अगस्त 1942 को छात्रों के नेतृत्व में क्रांतिकारियों के बड़े दल ने बिहार विधानसभा परिसर का घेराव कर वहां तिरंगा फहराने की घोषणा कर दी।

देवीपद चौधरी के देशभक्ति पिता ने अपने 14 साल के जिगर के टुकड़े को इस आंदोलन में सक्रिय भागीदारी का निर्देश दिया था जिसका बहुत कम उदाहरण दुनिया के दूसरे क्रांति में देखने को मिलता है। इधर आंदोलनकारियों को रोकने के लिए ब्रिटिश सरकार भी काफी सक्रिय हो गई थी। उस समय पटना का अंग्रेज जिला मजिस्ट्रेट डब्ल्यू जी आर्थर, पुलिस महा निरीक्षक ए ई बिषोन तथा भारतीय पुलिस अधीक्षक आरएसपी सिन्हा ने गोरखा पलटन के साथ पूरे विधानसभा परिसर की सुरक्षा चाक-चौबंद की थी।

हालांकि यहां क्रांतिकारियों की इतनी विशाल भीड़ उमड़ी कि अंग्रेजों के लिए उन्हें रोक पाना मुश्किल हो गया। इसके बाद मजिस्ट्रेट आर्थर ने निहत्थे छात्रों पर गोली चलाने का हुक्म दे दिया। अंधाधुंध फायरिंग होने लगी जिसमें देवीपद चौधरी लहूलुहान हो गए लेकिन बाकी साथियों के साथ फिर उठा और विधानसभा पर लहरा रहा अंग्रेजी ध्वज उतार कर तिरंगा फहराया था। उसके बाद मां भारती की गोद में गिर पड़े। जब गोलियों का शोर थमा तो कई नौनिहाल मातृभूमि पर जीवन सुमन समर्पित कर चुके थे।

उसमें देवी पद चौधरी के अलावा उमाकांत प्रसाद सिंह, रामानंद सिंह, सतीश प्रसाद झा, जगपति कुमार, राजेन्द्र सिंह और राम गोविंद सिंह थे। इस पूरे अभियान का नेतृत्व देवी प्रसाद कर रहे थे। महज 14 साल की उम्र में मां भारती के सपूतों ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बगावत का यह जो उदाहरण पेश किया है वह दुनिया में दूसरा नहीं है।बाद में इन बलिदानियों की याद में बिहार सरकार के राज्यपाल जयराम दास दौलतराम ने बिहार विधानसभा भवन के सामने स्मारक का शिलान्यास किया। तब इस सर्वोच्च बलिदान के दृश्य को साकार करने वाली उस भव्य प्रतिमा का अनावरण भारतीय गणतंत्र के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने किया।

24 अक्टूबर 1956 को राजेंद्र प्रसाद ने जब इसका अनावरण किया तो वह बेहद भावुक थे क्योंकि 1942 में उन्हीं की गिरफ्तारी के खिलाफ जो आंदोलन हुआ था जिसमें 14 साल के फौलादी जिगर वाले क्रांतिकारियों ने सर्वोच्च बलिदान दिया था। इसके अलावा पटना उच्च न्यायालय से सटे मिलर हाई स्कूल का नाम बदलकर देवी पद चौधरी शहीद स्मारक महाविद्यालय कर दिया गया। इसके अतिरिक्त उनके सम्मान में राष्ट्रभक्त पिता और बलिदानी पुत्र के नाम से एक जीवनी भी बांग्ला भाषा में प्रकाशित की गई है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

three × 5 =