Diwali 2024, लखनऊ : हाल के वर्षों में दीपोत्सव एवं अन्य वजहों से मिट्टी के दीयों की उस परम्परा में नयी जान सी आ गयी है, जो कभी समाप्ति के कगार पर थी।
मिट्टी के दीयों की ओर बढ़ते रुझान के कारण इस विधा से जुड़े कुम्हारों के जीवन में न केवल आशा की नई किरण जगी है, बल्कि यह अगली पीढ़ी के लिए भी उम्मीद जगा रही है।
उत्तर प्रदेश सरकार ने वर्ष 2017 से अयोध्या में बड़े पैमाने पर दीपोत्सव की शुरुआत की थी। इसके बाद वहां के भव्य आयोजन के समान ही विभिन्न शहरों में मिट्टी के दीयों से दीपावली मनाने की परंपरा एक बार फिर जीवंत हो गयी।
इसके कारण मिट्टी के दीयों की न केवल मांग बढ़नी शुरू हुई, बल्कि इसकी लोकप्रियता भी हाल के वर्षों में साल-दर-साल बढ़ी तथा कुम्हारों की नयी पीढ़ी भी इस पेशे के प्रति आकृष्ट हुई है।
माटीकला को पेशे के तौर पर अपनाने वाले सचिन प्रजापति इस बदलाव के प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। इंजीनियरिंग छोड़कर वह अपने पूर्वजों के कारोबार और अपनी जड़ों की ओर लौट आए तथा उन्होंने दीया एवं कुल्हड़ सहित माटीकला के उत्पादों से संबंधित एक ‘वर्कशॉप’ की स्थापना की।
सचित ने कहा, ”मेरा लक्ष्य माटीकला से बने दैनिक उपयोग के उत्पादों के साथ बाजार में एक खास प्रभाव डालना है।’
वह अन्य स्थानीय कुम्हारों के साथ सहयोग स्थापित करने, कौशल विकास को बढ़ावा देने और इस कला की स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं।
सचिन गोंडा जिले के बाहरी इलाके और अयोध्या की सीमा पर स्थित एक छोटे कस्बे ‘मनकापुर’ में मिट्टी के बर्तनों की एक वर्कशॉप चलाते हैं।
उन्होंने कहा, ‘मैंने 2020 में कोविड-19 की पहली लहर में अपनी नौकरी खो दी और घर लौट आया। तभी मैंने मिट्टी के बर्तनों को एक व्यवसाय के रूप में देखना शुरू किया।’
सचित ने कहा, ”मेरा गांव प्रजापतियों (कुम्हारों) का है जो मिट्टी के बर्तन बनाने की परंपरा से जुड़े हुए हैं। अब भी हर दूसरे घर में एक चाक (मिट्टी के बर्तनों को आकार देने वाला ढांचा) पाया जा सकता है और युवाओं ने इसे एक व्यवहार्य पेशे के रूप में देखना शुरू कर दिया हैा”
बाराबंकी के राजेश कुमार प्रजापति ने भी अपने परिवार की विरासत को अपनाया है। वह भी इंजीनियर का पेशा छोड़कर कुम्हार बने हैं। अब वह व्यस्त मौसम के दौरान 20 कुम्हारों को रोजगार देने वाला एक वर्कशाप चलाते हैं और उत्तर प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में दीयों की आपूर्ति करते हैं।
सचिन और राजेश प्रजापति दोनों दीपोत्सव के लिए दीये बेचते हैं।
गोरखपुर की प्रसिद्ध गोरक्षपीठ के महंत एवं राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में 2017 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सरकार बनने के बाद अयोध्या में लाखों दीयों के साथ दीपोत्सव की भव्य शुरुआत हुई थी।
अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अयोध्या में दीपोत्सव के आठवें संस्करण (2024) के लिए राज्य सरकार ने 25 लाख से अधिक मिट्टी के दीयों को प्रज्वलित करने का लक्ष्य रखा है।
इसके कारण इस आयोजन और मिट्टी के दीयों के प्रति राज्य के सभी जिलों में निरंतर आकर्षण और लोकप्रियता बढ़ रही है। अब लगभग हर जिले में इसी तरह के उत्सव आयोजित किए जाते हैं, जो माटीकला से जुड़े कारीगरों के लिए एक बड़ा बाजार उपलब्ध कराते हैं।
बस्ती जिले के कपिल प्रजापति (30) और उनके हमउम्र दोस्त सार्थक सिंह ने दीयों और एकल-उपयोग मिट्टी कटलरी में विशेषज्ञता वाले कारीगरों की एक सफल कार्यशाला की स्थापना की है।
उन्होंने अपनी पहुंच बढ़ाने और राष्ट्रव्यापी बाजार तक सेवाएं पहुंचाने के लिए ऑनलाइन प्लेटफॉर्म का लाभ उठाया है।
अपने बचपन के दोस्त कपिल के साथ कारोबार कर रहे सार्थक ने बिजनेस मैनेजमेंट की पढ़ाई की है।
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