अशोक वर्मा “हमदर्द”, कोलकाता। भारत और इजरायल के बीच संबंध कई स्तरों पर गहरे और जटिल हैं। भले ही इन दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंध 1992 में औपचारिक रूप से स्थापित हुए हों, लेकिन इजरायल और भारत के बीच सांस्कृतिक, धार्मिक और ऐतिहासिक संबंध हजारों साल पुराने हैं। कुछ महत्वपूर्ण कारणों से, इजरायली भारत को अपनी “मां” के रूप में मानते हैं, जो मुख्य रूप से सांस्कृतिक और धार्मिक संदर्भों से जुड़े हैं।
प्राचीन इतिहास और यहूदी समुदायों की उपस्थिति पर ध्यान दिया जाय तो भारत में यहूदी समुदाय की उपस्थिति 2,000 वर्षों से भी अधिक पुरानी है। माना जाता है कि यहूदी भारत में लगभग 70 ईस्वी में आए थे, जब यरूशलेम पर रोमन साम्राज्य का आक्रमण हुआ था। उस समय से यहूदी भारत में बस गए और उन्होंने भारत की संस्कृति और समाज में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन यहूदियों को कभी भी भारत में धार्मिक उत्पीड़न का सामना नहीं करना पड़ा, जैसा कि उन्हें कई अन्य देशों में झेलना पड़ा था। इस सद्भावना और सहिष्णुता को इजरायल में बहुत सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है।
धार्मिक सहिष्णुता और विविधता भी दोनों के लगाव का कारण है। भारत अपने धार्मिक विविधता और सहिष्णुता के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है। यहूदी समुदाय जो भारत में बसे, वे कभी भी अपने धर्म या संस्कृति को खोने का भय नहीं रखते थे। वे स्वतंत्र रूप से अपनी धार्मिक मान्यताओं का पालन कर सकते थे और स्थानीय लोगों के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखते थे। यह इजरायली समाज के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि यहूदी इतिहास में भारत एकमात्र ऐसा देश रहा है जहां उन्हें अपने धर्म का पालन करने की पूरी स्वतंत्रता मिली। इस कारण भारत को इजरायली समाज एक “आश्रय स्थल” के रूप में देखते हैं और इसे “मां” के रूप में सम्मानित करते हैं।
गहरी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक जुड़ाव हमेशा एक दूसरे के प्रति रहा है। भारत और इजरायल के बीच सांस्कृतिक और आध्यात्मिक जुड़ाव भी एक प्रमुख कारण है जिसके चलते इजरायल भारत को सम्मानित करता है। भारत योग, ध्यान और वैदिक ज्ञान का केंद्र रहा है, जो इजरायल और यहूदी समुदाय के लिए गहरे आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखता है। दोनों देशों के लोग अध्यात्म, धार्मिकता और मानवता के प्रति गहरी आस्था रखते हैं, जो उन्हें एक-दूसरे के करीब लाता है।
भारत की यहूदियों के प्रति सहिष्णुता का सम्मान हमेशा किया गया है। भारत ने हमेशा यहूदी समुदाय के साथ सम्मान और गरिमा के साथ व्यवहार किया है, जबकि अन्य देशों में यहूदी समुदायों को उत्पीड़न का सामना करना पड़ा। भारत ने यहूदियों को कभी भी उनके धर्म, संस्कृति, या जीवनशैली के लिए दमन नहीं किया। यहां तक कि स्वतंत्रता के बाद भी, भारत में यहूदी समुदाय को अपने धर्म का पालन करने और अपने सांस्कृतिक परंपराओं को बनाए रखने की पूरी स्वतंत्रता मिली। इस ऐतिहासिक सौहार्दपूर्ण संबंध को इजरायल एक विशेष श्रद्धा से देखता है।
भारतीय यहूदी और इजरायली समाज में योगदान को लेकर अगर देखा जाए तो भारतीय यहूदी समुदाय ने इजरायल के निर्माण और समाज में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। कई भारतीय यहूदी इजरायल की सेना, राजनीति और सामाजिक जीवन में सक्रिय हैं। भारतीय यहूदी, जिनमें बेने इजराइल, कोचिन यहूदी और बगदादी यहूदी शामिल हैं, इजरायली समाज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गए हैं। उनके योगदान को इजरायल में सराहा जाता है और उनके भारत से जुड़ाव को गर्व के साथ देखा जाता है।
राजनीतिक और सैन्य सहयोग पर ध्यान दें तो 1992 में औपचारिक राजनयिक संबंध स्थापित होने के बाद, भारत और इजरायल ने राजनीति, सुरक्षा और रक्षा के क्षेत्रों में घनिष्ठ सहयोग किया है। दोनों देशों ने आतंकवाद, सुरक्षा, और उच्च तकनीक में सहयोग बढ़ाया है, जिसने दोनों देशों के संबंधों को और मजबूत किया है। इजरायल भारत को एक महत्वपूर्ण सामरिक साझेदार के रूप में देखता है, जो दोनों देशों के बीच सम्मान और आपसी विश्वास का आधार बनाता है।
इजरायल भारत को अपनी मां मानने के पीछे ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, धार्मिक और राजनीतिक कारणों का मिश्रण है। भारत ने सदियों से यहूदी समुदाय को सुरक्षा और स्वतंत्रता प्रदान की है, जो इजरायली समाज के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। दोनों देशों के बीच संबंधों का आधार सहिष्णुता, आपसी सम्मान और सांस्कृतिक समानताएं हैं, जो इन्हें निकटतम सहयोगियों और मित्रों के रूप में स्थापित करती हैं।
(स्पष्टीकरण : इस आलेख में दिए गए विचार लेखक के हैं और इसे ज्यों का त्यों प्रस्तुत किया गया है।)
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