इजरायल-ईरान जंगी टकराहट- पश्चिम एशिया में जबरदस्त तनाव-जी-7 की आपात बैठक हुई
भारत सहित युद्ध में तटस्थता बनाए रखने की नीति वाले देशों को नाटो, ईयू सदस्य देशों की नाराजगी झेलनी पड़ सकती है?- एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र। वैश्विक स्तर पर ईरान व इजरायल के बीच बढ़ते तनाव का असर पूरी दुनियाँ में दिख रहा है। 1अक्टूबर 2024 को ईरान द्वारा इजराइल पर दागी गई सैकड़ो बैलिस्टिक मिसाइलों का जवाब देने की रणनीति इसराइल जरूर तैयार कर चुका होगा, बस!क्रियान्वयन की जरूरत है, परंतु मुझे इस युद्ध में एक फिक्स कूटनीति या रणनीति समझ में आ रही है, जिसमें मुझे लगता है इजराइल सीधे तौर पर ईरान के तेल संयंत्रों या एयर डिफेंस सिस्टम पर सीधे तौर पर हमला करेगा? इसमें मुझे संदेह नजर आ रहा है, क्योंकि शुरू से ही पूरे मामले पर मेरी पैनी नजर लगी हुई है। 1 अक्टूबर 2024 को ईरान के हमले के कुछ घंटे पहले ही अमेरिका का ईरान के हमले संबंधी इजरायल को आगाह करना, फिर 3 अक्टूबर 2024 को इजरायल द्वारा संभावित जवाबी कार्रवाई की उम्मीद नहीं जताना, तेल संयंत्रों के हमले के जवाब से कन्नी काटना सहित कुछ बातें हैं जो अमेरिका के सटीक अंदाज से हो रही है, जिससे मुझे ऐसा लग रहा है कि शायद इजरायल ईरान पर सीधा हमला न कर पहले उसकी सहयोगी ताकतों लेबनान, हमास, जकार्ता इत्यादि को तोड़ने या नुकसान पहुँचाने की कोशिश कर सकता है।
5 नवंबर 2024 को अमेरिका में होने वाले चुनाव को ध्यान में रखते हुए रणनीति तैयार हो सकती है, क्यों कि ट्रंप और हैरिस दोनों ही इजरायल के पक्ष में है, फिर उनके पीछे पूरा नाटो, ईयू भी खड़ा है। हालांकि इजरायल ईरान की अपेक्षा क्षेत्रफल में बहुत ही छोटा है परंतु आधुनिकता के लिहाज से बहुत बड़ा है। ईरान के पास अगर अंदरूनी परमाणु वेपेंस है, तो इजरायल के पास नाटो व ईयू साथ हैं। परंतु इस सब के बीच इस पूरे कयास में नुकसान पूरे विश्व की जनता को ही भुगतना होगा, क्योंकि ईरान, फारस, ओमान, कैस्पियन की खाड़ी के रास्तों से वैश्विक व्यापार होता है जिसका असर भारत सहित पूरे विश्व पर पड़ेगा।तैलिय पदार्थों में भारी बढ़ोतरी होगी। आज 3 अक्टूबर 2024 को हमने देखे कि वैश्विक स्तर पर शेयर मार्केट में भारी मात्रा में गिरावट हुई है, तैलिय पदार्थ में भारी मात्रा में वृद्धि हुई। भारत में भी बीएसई सेंसेक्स 1600 से अधिक अंकों व निफ्टी 500 से भी अधिक अंकों के साथ गिरा था। चूँकि इजरायल ईरान जंगी टकराहट से पश्चिम एशिया में जबरदस्त तनाव दिख रहा है जी7 की आपात बैठक भी 2 अक्टूबर 2024 को हो चुकी है।इसलिएआज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आलेख के माध्यम से चर्चा करेंगे, इजरायल ईरान महासंग्राम के साए में वैश्विक इकोनामी ट्रेड, तेल, नौकरी, मार्केट पर संकट गहराया है, जिससे भारत सहित युद्ध में तटस्थता बनाए रखने की नीति वाले देशों को नाटो, ईयू सदस्य देशों की नाराजगी झेलनी पड़ सकती है।
साथियों बात अगर हम दिनांक 3 अक्टूबर 2024 को देर रात्रि, ईरान के खिलाफ इजरायल द्वारा जवाबी हमले पर अमेरिका के राष्ट्रपति के बयान की करें तो ईरान के खिलाफ इजरायली हमलों पर अमेरिकी राष्ट्रपति जो का बड़ा बयान सामने आया है। उन्होंने कहा कि उनका प्रशासन ईरान के तेल संयंत्रों पर संभावित इजरायली हमलों पर चर्चा कर रहा है। साथ ही बोले कि ईरान पर गुरुवार को इजरायल का कोई हमले की उम्मीद नहीं है। इस सवाल का जवाब देते हुए कि क्या वह इजरायल द्वारा ईरानी तेल संयंत्रों पर हमले के पक्ष में हैं? इस पर अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा कि हम इस पर चर्चा कर रहे हैं। इस टिप्पणी के बाद गुरुवार को तेल की कीमतों में पांच फीसदी का उछाल आया। उन्होंने आगे संकेत दिया कि गुरुवार को ईरान के मंगलवार के मिसाइल हमले पर किसी भी संभावित इजरायली जवाबी कार्रवाई की उम्मीद नहीं है। ईरान के मिसाइल हमले का इजरायल तगड़ा जवाब देने की तैयारी में जुटा है। इजरायल का कहना है कि इस बार ईरान को संभलने तक का मौका नहीं दिया जाएगा। इजरायल अपनी जवाबी कार्रवाई में ईरान के एयर डिफेंस सिस्टम पर हमला करने की तैयारी में है। हमास नेता इस्माइल हानिया की तरह ईरान के बड़े नेता की हत्या भी हो सकती है?
साथियों बात अगर हम इजरायल ईरान के संभावित युद्ध में भारत सहित पूरी दुनियाँ में दिख रहे तनाव की करें तो, ईरान और इजरायल के बीच बढ़ रहे तनाव का असर पूरी दुनिया पर दिखने लगा है। कच्चे तेल की कीमत में पिछले दो दिन में काफी उछाल आई है जबकि शेयर बाजारों में भारी गिरावट देखने को मिली है। बीएसई सेंसेक्स आज कारोबार के दौरान 1,600 अंक से अधिक गिर गया जबकि निफ्टी में भी 500 अंक से ज्यादा गिरावट रही। जानकारों का कहना है कि अगर ईरान और इजरायल के बीच युद्ध होता है तो इसका भारत समेत पूरी दुनियाँ पर व्यापक असर हो सकता है। खासकर भारत के लिए इसके व्यापक मायने हो सकते हैं। मसलन खाड़ी देशों के साथ व्यापार प्रभावित हो सकता है, पेट्रोल-डीजल की कीमत बढ़ सकती है, वहां काम कर रहे भारतीयों की दिक्कतें बढ़ सकती हैं और देश की ग्रोथ पर असर हो सकता है।
भारत के लिए सबसे बड़ा मसला एनर्जी सिक्योरिटी का है। देश अपना 85 फीसदी तेल आयात करता है। ईरान रोजाना करीब 30 लाख बैरल कच्चे तेल का उत्पादन करता है। दुनिया की 20 प्रतिशत और भारत की 60 प्रतिशत ऑयल सप्लाई होरमूज की खाड़ी से होती है। वहां संघर्ष बढ़ता है तो कच्चे तेल की कीमत 80 बैरल प्रति डॉलर तक पहुंच सकती है। इससे भारत के व्यापार घाटा, चालू खाते का घाटा और राजकोषीय घाटा प्रभावित हो सकता है। निगेटिव सेंटीमेंट से भारतीय शेयर बाजारों पर असर दिखने लगा है। ईरान-इजरायल युद्ध से ग्लोबल जीडीपी और ट्रेड ग्रोथ पर असर हो सकता है जो भारत के लिए अच्छी स्थिति नहीं होगी।जानकारों का कहना है कि अगर ईरान के बंदरगाहों पर हमला होता है तो इसका विश्व व्यापार पर व्यापक असर होगा। ईरान फारस की खाड़ी, ओमान की खाड़ी और कैस्पियन सागर के स्थित है। इस संघर्ष से भारत का एक्सपोर्ट और इम्पोर्ट प्रभावित हो सकता है। भारत सऊदी अरब और इराक से बड़ी मात्रा में कच्चे तेल का आयात करता है। लाल सागर में जहाजों पर हूतियों के हमले के कारण पहले ही फ्रेट कॉस्ट में काफी तेजी आई है। इससे भारतीय एक्सपोर्टर्स की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।
भारत के तेल आयात में पश्चिम एशिया की हिस्सेदारी 23 फीसदी है। ईरान अपने कच्चे तेल का 90 फीसदी हिस्सा चीन को देता है। पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के कारण कई देश ईरान से तेल नहीं खरीदते हैं। ईरान और इजरायल का संघर्ष लंबे समय तक रहता है तो इसका असर भारत सहित वैश्विक स्तरपर रोजगार के मोर्चे पर भी देखने को मिल सकता है। बड़ी संख्या में भारत के लोग पश्चिम एशियाई देशों में नौकरी के लिए जाते हैं। इतना ही नहीं उन देशों में काम कर रहे भारतीय स्वदेश लौट सकते हैं जिससे दूसरी तरह की समस्या हो सकती है। भारतीय कामगार इन देशों में अलग परिस्थितियों में रहते हैं और सालाना सात लाख रुपये तक बचाते हैं। लेकिन भारत में यह संभव नहीं है। ईरान और इजराइल के बीच बढ़ते तनाव का असर कच्चे तेल पर पड़ेगा।
भारत अपनी जरूरत का 85 फीसदी कच्चा तेल आयात करता है और कुल खपत का 7 फीसदी सऊदी अरब कुवैत इराक से लेता है। ऐसे में भारत के लिए यह जंग बड़ी चुनौती बन सकती है। कच्चे तेल के अलावा भारत और इजराइल के बीच हथियार समेत अरबों डॉलर का व्यापार होता है, जो इस जंग से प्रभावित हो सकता है। जानकारों का कहना है कि ईरान और इजराइल का संघर्ष भारतीय अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित कर सकता है। वहीं, भारत सहित अन्य देशों के लिए लंबे समय तक तटस्थता वाली नीति पर बने रहना भी मुश्किल हो सकता है। अगर भारत सहित तटस्थता वाले देश इजराइल के साथ अपने संबंध बनाए रखने की कोशिश करते है तो ईरान के साथ उसके रिश्ते बहुत खराब हो सकते हैं और अगर उसने ईरान से करीबी दिखाई तो उसे इजराइल के साथ ही अमेरिका की भी नाराजगी झेलनी पड़ सकती है।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि इजरायल-ईरान महासंग्राम के साए में वैश्विक इकोनामी ट्रेड, तेल, नौकरी, मार्केट पर संकट गहराया। इजरायल-ईरान जंगी टकराहट- पश्चिम एशिया में जबरदस्त तनाव-जी-7 की आपात बैठक हुई।भारत सहित युद्ध में तटस्थता बनाए रखने की नीति वाले देशों को नाटो, ईयू सदस्य देशों की नाराजगी झेलनी पड़ सकती है?
(स्पष्टीकरण : इस आलेख में दिए गए विचार लेखक के हैं और इसे ज्यों का त्यों प्रस्तुत किया गया है।)
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